उज्जैन : ऐसे काम करता है सरकारी तंत्र … सहायक यंत्री भार्गव का 32 साल में 5 बार ट्रांसफर, गंभीर लापरवाही बरतने पर तीसरी बार सस्पेंड, हर बार लौट आते हैं उज्जैन नगर निगम

नगर निगम के सहायक यंत्री और प्रभारी कार्यपालन यंत्री पीयूष भार्गव….

नगर निगम के सहायक यंत्री और प्रभारी कार्यपालन यंत्री पीयूष भार्गव का अजीब राजनीतिक गणित है। 32 वर्षों में भार्गव के केवल 5 बार ट्रांसफर हुए लेकिन किसी न किसी तरह वह अपना ट्रांसफर वापस उज्जैन नगर निगम में ही करवा लाते हैं। सहायक यंत्री की कारनामें बताते हैं कि सरकारी सिस्टम में किस तरह गड़बड़ियां हैं।

भार्गव के खिलाफ भ्रष्टाचार की कई शिकायतें भी हैं, इसके बावजूद अब तक तीन बार उनका निलंबन हुआ परंतु हर बार वह किसी न किसी तरीके से वापस बहाल हो जाते हैं। हाल ही में निगमायुक्त अंशुल गुप्ता ने भार्गव को तीन मामलों में निगम के हित के विरुद्ध कार्य करने, प्रकरण में गंभीर लापरवाही बरतने और कूटरचना किए जाने के कारण निलंबित किया है। भार्गव का यह तीसरा निलंबन है। सूत्रों के मुताबिक भार्गव पर विभागीय कार्रवाई की जा रही है। इधर भार्गव ने मामले में कुछ भी कहने से इंकार किया।

ट्रांसफर हिस्ट्री: स्टे लेकर आए, कहीं कार्य पर ही नहीं गए

1 वर्ष 1994 में भार्गव का पहली बार इंदौर ट्रांसफर हुआ। करीब सालभर किसी तरह इंदौर में कार्य करने के बाद वह वापस किसी तरह उज्जैन नगर निगम आ गए। 2 वर्ष 2016 में भार्गव का ट्रांसफर मंदसौर किया गया लेकिन इस बार वह न्यायालय पहुंच गए आैर ट्रांसफर के आदेश पर स्टे लेकर आ गए। 3 वर्ष 2018 में ग्वालियर ट्रांसफर हुआ लेकिन दोबारा स्टे लेकर आ गए। दो माह बाद स्टे खारिज हुआ तो ग्वालियर जाकर ज्वाइनिंग दी लेकिन इसके बाद लगभग सालभर तक ग्वालियर कार्यालय नहीं गए आैर गोटी बैठाकर वापस उज्जैन तबादला करवा लिया। 4 1 मार्च 2019 को भार्गव वापस ग्वालियर से उज्जैन नगर निगम ट्रांसफर लेकर आ गए लेकिन 7 मार्च को ही ट्रांसफर वापस देवास कर दिया परंतु इस बार भी भार्गव पूरे तंत्र को चकमा देते हुए वापस उज्जैन आ गए। 5 वर्ष 2021 में भार्गव का बुरहानपुर ट्रांसफर हुआ परंतु वह कोर्ट से स्टे लेकर आ गए। बाद में भार्गव ने ऐसा गणित बैठाया कि विभागीय मुख्यालय से वह ट्रांसफर आदेश ही कैंसिल करवा लाए।

सिंहस्थ में डामर कांड में पहली बार हुआ निलंबन

  • 1992 सिंहस्थ में हुए डामर कांड के आरोप में सबसे पहली बार भार्गव को निलंबित किया गया। इस मामले में वह वर्ष 2005 से 2008 तक निलंबित रहे।
  • वर्ष 2011 में महाकाल मंदिर टनल निर्माण में टनल की डिजाइन परिवर्तन की। जिसके कारण एक महिला की मृत्यु हो गई थी। इस वजह से इन्हें निलंबित किया गया था। यह जांच अब तक जारी है।
  • मई 2022 में तीन मामलों में निगम हित के विरुद्ध कार्य करने, प्रकरण में गंभीर लापरवाही करने और कूटरचना करने के मामले में निलंबित किया गया।

भार्गव के कारनामों की लंबी लिस्ट जुआ खेलते पकड़ाने के अलावा भ्रष्टाचार के कई गंभीर आरोप

  • वर्ष 2004 में त्रिवेणी क्षेत्र में स्वयं के प्लॉट पर जुआ खेलते हुए पकड़ाए। हालांकि बाद में मामले में बरी हो गए।
  • 2015 में निगम की एक महिला कर्मचारी की बहन की इंदौर में हुई शादी में एक निगम कर्मचारी को भेजा, जहां उक्त कर्मचारी की गिरने से मृत्यु हो गई।
  • सिंहस्थ 1992 में लाखों रुपए का डामर घोटाला।
  • वर्ष 1994-1995 में लोकायुक्त का छापा भी पड़ चुका है।
  • जेएनएनयूआरएम के अंतर्गत 2 से 3 करोड़ रुपए के घपले के आरोप लगे। वरिष्ठ आईएएस अधिकारी व कार्यपालन यंत्री के फर्जी हस्ताक्षर किए। सांसद एवं विधायक ने फर्जी हस्ताक्षर की हैंड राइटिंग एक्सपर्ट से जांच की मांग की लेकिन वह जांच निगम में रुकवा दी गई।
  • महाकाल मंदिर के यहां सिंहस्थ 2016 में जो लाइट के पोल लगे हुए थे, उसका फर्जी भुगतान 2017 में बिल बनवाकर लिया गया। ऐसे आरोपों की शिकायत भी इनके खिलाफ की गई।
  • सिंहस्थ 2016 के अंतर्गत करोड़ों रुपये का घोटाला किया। जिसमें पंचक्रोशी में शौचालय का 3 करोड़ का फर्जी भुगतान के आरोप हैं। यह शिकायत आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ मे जांच पंजीबद्ध है।
  • सिंहस्थ 2016 में एमआर-5 पर ट्रांसपोर्ट स्टेशन के कार्य में भ्रष्टाचार के आरोप लगे। ठेकेदार को एसडी/एनएस मनी नही लौटाई गई। जिसमें ठेकेदार द्वारा थाने में शिकायत की गई कि भार्गव द्वारा उनसे रुपयों की मांग की जा रही है।
  • वर्ष 2020 व 2021 में लक्ष्मी नगर, अशोक नगर में गार्डन की जमीन के ऊपर फर्जी नक्शा पास किया गया और जीरो पॉइंट ब्रिज के यहां अनुबंध वाली जगह का नक्शा पास किया।
  • वर्ष 2015 में हरसिद्धि पाल के यहां हॉकर्स झोन बनाना था, जबकि पार्टनर ठेकेदार से भवन निर्माण करवा लिया गया और बिना स्वीकृति के अत्यधिक राशि का भुगतान करवा लिया गया।
  • बीएसयूपी योजना के अंतर्गत 100 करोड़ रुपए के काम में पार्टनर ठेकेदार से काम करवाने के साथ 3 करोड़ रुपए का भुगतान एस्क्लेशन के नाम पर करने के भी आरोप हैं। उसके बाद तत्कालीन उपयंत्री ने रोक लगाई। बाद में इस मामले की नस्तियां भी गायब हो गई।

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