अब संरक्षित वन क्षेत्रों का एक किमी का दायरा सेंसेटिव जोनकिसी भी गतिविधि के लिए इजाजत अनिवार्य

दुर्ग. बेलोदी गांव की शिवनाथ नदी में खनन करते रेत माफिया…

दिल्ली. पर्यावरण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। इसके मुताबिक देशभर के संरक्षित वनों, वन्यजीव अभयारण्यों और नेशनल पार्क के आसपास एक किलोमीटर का पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र (ईएसजेड) होगा। इस क्षेत्र में खनन या पक्के निर्माण की इजाजत नहीं होगी। ईएसजेड की सीमा के भीतर किसी भी तरह की गतिविधि के लिए मुख्य वन संरक्षक की अनुमति जरूरी होगी।

जस्टिस एल. नागेश्वर राव, जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने टी.एन. गोदावर्मन थिरुमलपद मामले में दायर याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए हरेक राज्य के मुख्य वन संरक्षक को ईएसजेड में मौजूद संरचनाओं की सूची बनाने तथा तीन माह में कोर्ट को रिपोर्ट देने निर्देश दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर कही भी मौजूदा ईको सेंसेटिव जोन का दायरा एक किलोमीटर से ज्यादा है या किसी अभयारण्य में इससे ज्यादा सीमा है तो वही बाउंड्री प्रभावी होगी।

भोपाल, इंदौर में होगा ज्यादा असर

भोपाल. सुप्रीम कोर्ट के संरक्षित वनों संबंधी फैसले का सबसे ज्यादा असर भोपाल व इंदौर में होगा। भोपाल में वन विहार राष्ट्रीय उद्यान व इंदौर में रालामंडल है। राज्य में 35 नेशनल पार्क और सेंचुरी हैं। इनके आसपास यानी एक किलोमीटर के दायरे में सौ गांव हैं। ऐसे में यहां पक्के निर्माण सहित अन्य विकास कार्य रुक जाएंगी। इंदौर में रालामंडल सेंचुरी के ईको सेंसटिव जोन की अधिसूचना जारी नहीं हुई है, जो अगले हफ्ते तक जारी हो जाएगी।

पुरी हेरिटेज कॉरिडोर के निर्माण को हरी झंडी

नई दिल्ली. ओडिशा में जगन्नाथ मंदिर के आसपास राज्य सरकार के पुरी हेरिटेज कॉरिडोर के निर्माण कार्य को सुप्रीम कोर्ट ने हरी झंडी दे दी। निर्माण कार्य के खिलाफ दायर याचिकाओं को खारिज करते हुए कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं पर एक-एक लाख रुपए का जुर्माना लगाया। कोर्ट ने कहा कि याचिकाओं में कोई मेरिट नहीं है। मंदिर में आने वाले लाखों लोगों के लिए निर्माण जरूरी है। जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने पीआइएल के गिरते स्तर पर चिंता जाहिर की। पीठ ने कहा कि याचिकाओं पर जल्द सुनवाई के लिए ऐसा माहौल बनाया गया कि बात नहीं सुनी तो आसमान गिर जाएगा। हाल के दिनों में मशरूम की तरह ऐसी याचिकाओं में बढ़ोतरी हुई है। यह न्यायिक समय की बर्बादी है।

 

 

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