अपनों को लपेट गईं BJP की मेयर प्रत्याशी …?

चुनावी मंच से कहा- निगम को भ्रष्टाचार मुक्त कराऊंगी; चंबल के साहब को कलेक्टरी नापसंद…? 

भोपाल से BJP की महापौर उम्मीदवार मालती राय ने नामांकन दाखिल करने के बाद एक कार्यक्रम में प्राथमिकता गिनाई। पहले उन्होंने मंच से ऐलान कर दिया कि महापौर बनने के बाद नगर निगम को भ्रष्टाचार से मुक्त कराऊंगी। यह सुनते ही मंच पर बैठे पूर्व महापौर आलोक शर्मा का चेहरा देखने लायक था। उनकी भौहें तन गई थीं। मालती राय ने यह ऐलान आवेश में आकर दिया या वाकई नगर निगम में भ्रष्टाचार हुआ? लेकिन दाग तो पार्टी के दामन पर ही लगेंगे, क्योंकि भोपाल नगर निगम में पिछले 10 साल BJP की सरकार रही है।

वाह… उस्ताद वाह…

जो अखाड़े में उतरने के लिए दिन-रात मेहनत करता है, जरूरी नहीं कि दंगल में भी उसे मौका मिलेगा। कई बार उसे कोच यानी उस्ताद बना दिया जाता है। ऐसा ही नगर निगम चुनाव में देखने को मिला। इंदौर में BJP विधायक रमेश मेंदोला महापौर बनना चाहते थे। लेकिन संगठन ने किसी विधायक को मैदान में नहीं उतारा। बावजूद मेंदोला के लिए लॉबिंग चलती रही। पार्टी को चिंता थी कि मेंदोला नाराज हो गए तो नुकसान हो सकता है। ऐसे में उन्हें उम्मीदवार का चुनाव प्रभारी बनाकर जीत की जिम्मेदारी सौंप दी गई। इससे पहले लोकसभा चुनाव में उन्हें प्रभारी बनाया गया था। जिसमें बीजेपी उम्मीदवार शंकर लालवानी रिकॉर्ड मतों से जीते थे।

नेताजी का शहर निकाला…

नगरीय निकाय व पंचायत चुनाव के दौरान बीजेपी-कांग्रेस ताकत झोंक रही हैं। रूठों को मनाया जा रहा है। विरोधियों को अपनी पार्टी में शामिल करने की कोशिशें हो रही हैं। बीजेपी के एक पूर्व मंत्री को कोई नहीं पूछ रहा है। उन्हें डर है कि उन पर भितरघात का आरोप फिर ना लग जाए। इससे बचने के लिए उन्होंने शहर ही छोड़ दिया है।

सुना है कि वे समर्थकों को यह बताकर निकले कि एक महीने के लिए धार्मिक यात्रा पर जा रहे हैं, लेकिन चुगलखोरों ने पार्टी कर्ताधर्ता तक संदेश पहुंचा दिया कि नेताजी भोपाल में हैं। उनके घर पर रात में बैठकें हो रही हैं। पूर्व मंत्री वही हैं, जिन पर उपचुनाव के दौरान भितरघात का आरोप लगा था।

टिकट बंटवारे में गुरु तो गुरु, चेले भी भारी पड़े

ऐसा पहली बार हुआ, जब महापौर-पार्षद के उम्मीदवार तय करने में बीजेपी को मशक्कत करना पड़ी। इंदौर-ग्वालियर में महापौर उम्मीदवार के चयन में गुटबाजी खुलकर सामने दिखी, जबकि पर्दे के पीछे का सियासी खेल अलग ही था। हर बड़ा नेता अपने-अपने नगर की सरकार में होल्ड बनाने के लिए चेलों को टिकट दिलाना चाहता था। इसमें एक नेता की सबसे ज्यादा चली। चाहे इंदौर का टिकट हो या फिर संघ की सिफारिश पर छिंदवाड़ा का उम्मीदवार तय करना हो। उन्होंने प्रेशर पॉलिटिक्स को झेला। अधिकतर टिकट उनकी मर्जी से ही तय हुए। सुना है कि उन्होंने इसकी ट्रेनिंग संघ के लिए झारखंड जैसे पिछड़े राज्य में काम के दौरान ली थी।

उनके चेले भी अपने शागिर्दों को टिकट दिलाने में पीछे नहीं रहे। भोपाल में पार्षदों के अधिकतर टिकट चेले की मर्जी से ही बांटे गए। बीजेपी दफ्तर में इस नेता के इर्द-गिर्द टिकट चाहने वालों की भीड़ जमा रहती थी, उस वक्त चेले के घर पर पार्षद बनने की चाहत रखने वाले युवा कार्यकर्ताओं का हुजूम था। बता दें गुरु-चेला दोनों की पृष्टभूमि युवा मोर्चा की है।

संघ ने बड़े पदाधिकारी को किया बाहर

संघ से BJP में आए एक बड़े पदाधिकारी की छुट्‌टी हो गई है। एक समय था, जब मध्यप्रदेश में इस पदाधिकारी की तूती बोलती थी। भले ही सह संगठन मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, लेकिन सरकार में उनकी अच्छी खासी पैठ थी। सुना है कि संघ के पास उनकी जम्मू से शिकायत आई थी, जिसके आधार पर उन्हें संघ ने बाहर का रास्ता दिखाया।

यह भी कहा जा रहा है कि मप्र BJP में एक प्रवक्ता से उनकी नजदीकियां भी संघ से विदाई की एक वजह है। बता दें कि सह संगठन मंत्री रहते हुए जबलपुर में BJP कार्यालय के एक फ्लोर की चाबी अपने कब्जे में रखने का विवाद चर्चा का विषय बना था। इसके बाद उन्हें संघ ने BJP से वापस बुला लिया था।

और अंत में…

रास नहीं आ रही कलेक्टरी

चंबल के एक जिले में पदस्थ एक IAS अफसर को कलेक्टरी रास नहीं आ रही। वे मुख्यमंत्री कार्यालय के चक्कर लगाते देखे जा रहे हैं। वे मैदानी पोस्टिंग छोड़कर भोपाल में रहना चाहते हैं। अंदर की बात यह है कि कलेक्टर साहब BJP के दो पावर सेंटर के बीच फंसना नहीं चाहते। लिहाजा उन्होंने मुख्यमंत्री कार्यालय में पदस्थ अपने प्रशासनिक गुरू को मौखिक आवेदन कर दिया है। अब देखना है कि ‘सरकार’ का रुख क्या होता है?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *