पुलिस ने न्यायालय से छिपाया इनामी बदमाश का आपराधिक रिकॉर्ड

डायरी देख बोले न्यायाधिपति – आरोपी पर अपराध ही नहीं तो 5000 का इनामी कैसे एसपी के हलफनामे से असंतुष्ट न्यायालय ने डीजीपी से मांगा जवाब

भिण्ड. दबोह थाने के तत्कालीन थाना प्रभारी की ओर से 06 मई 2022 को उच्च न्यायालय ग्वालियर में पेश की गई केस डायरी में पांच हजार रुपए के इनामी बदमाश का आपराधिक रिकॉर्ड ही नहीं दर्शाया गया। जब एसपी से न्यायालय ने इसका जवाब मांगा तो उप निरीक्षक पर पांच हजार व निरीक्षक पर दो हजार का अर्थदंड लगाकर उसे कदाचार बता दिया गया। भिण्ड एसपी के जवाब से असंतुष्ट उच्च न्यायालय के न्यायाधिपति ने डीजीपी से इस संबंध में हलफनामा मांगा है।

शासकीय अधिवक्ता संजीव उपाध्याय के अनुसार दबोह थाने के अपराध क्रमांक 30/20 में पांच हजार रुपए के इनामी आरोपी कुलदीप दोहरे के प्रकरण में 06 मई 2022 को केस डायरी उच्च न्यायालय ग्वालियर में भेजी गई थी जो 23 मई को पेश की गई। इसमें न्यायालय को अवगत कराया गया था कि आरोपी को केस डायरी के साथ भेजा गया है, जबकि अधीनस्थ न्यायालय की आदेश पत्रिका के अनुसार आरोपी कुलदीप दोहरे के खिलाफ छह संगीन मामले दर्ज बताए गए। उक्त संगीन अपराध केस डायरी में संलग्न नहीं होने पर एसपी शैलेंद्र सिंह चौहान से हलफनामा मांगा गया। शपथ पत्र के माध्यम से एसपी ने उच्च न्यायालय को 20 जून को दिए जवाब में बताया कि

तत्कालीन एसएचओ प्रमोद साहू, एएसआई महेंद्र सिंह ऊंचाडिया, आरक्षक नरेंद्र शाक्य को नहीं भेजकर कदाचार का दोषी पाया गया है। आरोपी का आपराधिक पूर्ववृत्त पता चला कि एएसआई महेंद्र ऊंचाडिया जांच अधिकारी थे जिन्होंने एसएचओ के सामने डायरी रखी थी। इस प्रकार महेंद्र उच्चाडिया द्वारा कदाचार किया गया है। लिहाजा उन पर 5000 रुपए का जुर्माना लगाया गया है। जहां तक प्रमोद साहू का संबंध है उन्होंने हस्ताक्षर करने से पहले केस डायरी को भी सत्यापित नहीं किया ऐसे में उन पर 2000 रुपए का जुर्माना लगाया है।

7 दिन में मांगा है जवाब

न्यायाधिपति जीएस अहलूवालिया ने 30 जून को डीजीपी को दिए आदेश में बताया कि पुलिस अधिकारियों ने आवेदक के आपराधिक इतिहास को नहीं भेजा। इसलिए यह स्पष्ट है कि आवेदक आपराधिक रिकॉर्ड छिपाकर आवेदक को जमानत दिलाने की सुविधा प्रदान करने का एक स्पष्ट प्रयास है किया गया है। चूंकि यह स्थिति विभिन्न थानों में बनी हुई है, इसलिए डीजीपी मध्यप्रदेश राज्य को एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया जाता है कि क्या आवेदक के आपराधिक इतिहास का संचार न करना एक मामूली कदाचार है। या आपराधिक न्याय व्यवस्था में हस्तक्षेप करने के बराबर है। डीजीपी से एक सप्ताह के अंदर शपथ पत्र पेश करने के लिए कहा गया है।

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