दूध दागदार:देसी गाय के दूध के 50 बड़े ब्रांड; महज 10 ही दिखाते हैं गायों का डीएनए सर्टिफिकेट, असली की पहचान मुश्किल
रोजाना दूध पीने वाले आपको इसके अनगिनत फायदे गिना सकते हैं। हेल्दी डाइट को लेकर ज्यादा फिक्रमंदों की सलाह होगी कि ए-2 दूध पिया करो। ए-2 दूध यानी देसी नस्ल की गायों से मिलने वाला दूध। इस दूध के फायदे गिनाना आसान है मगर इसकी पहचान करना मुश्किल।
यदि आपको लगता है कि दूध की पहचान पर बवाल क्यों? तो दोबारा सोचिए…देसी गाय का दूध, सामान्य दूध की तुलना में दोगुना से तीन गुना कीमत पर बेचा जाता है। यह कारोबार सिर्फ आपके लोकल दूधिये तक सीमित नहीं है।
ब्रांडेड देसी गाय के दूध का कारोबार आज 50 से ज्यादा कंपनियों तक फैला हुआ है। हाल ही में स्टार्ट-अप रियालिटी शो ‘शार्क टैंक’ में पुणे के ए-2 दूध ब्रांड ‘हम्पी’ ने एक करोड़ की फंडिंग जुटाई थी। हैदराबाद की ए-2 दूध कंपनी डोडला डेयरी ने 2021-22 में 2200 करोड़ रु. का रेवेन्यू कमाया। हालांकि दूध के इस कारोबार में सब कुछ सफेद नहीं है।
दरअसल, गाय की नस्ल के आधार पर दूध की गुणवत्ता का कोई तय पैमाना ही नहीं है। फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) के मानकों में ए-1 या ए-2 जैसी दूध की कोई कैटेगरी ही नहीं है। इस कारोबार में उतरी सभी कंपनियां दावा करती हैं कि वे सिर्फ देसी नस्ल की गाय का दूध ही बेचती हैं…मगर सिर्फ 10 ही कंपनियों ने गायों के DNA सर्टिफिकेट सार्वजनिक किए हैं।
आधी कीमत के सामान्य पैकेज्ड दूध में भी 90% ए-2 मिल्क प्रोटीन ही होता है
ए-2 दूध का कारोबार कर रही कंपनियां यह प्रचार करती हैं कि उनका दूध सिर्फ देसी नस्ल की गायों से ही आता है। नेशनल ब्यूरो ऑफ एनिमल जेनेटिक रिसोर्सेज ने 22 देसी गायों की नस्लों पर अध्ययन कर यह बताया था कि देश की अधिसंख्य गायों के दूध में ए-2 मिल्क प्रोटीन ही है। अमूल जैसा ब्रांड भी ‘अमूल देशी’ के नाम से ए-2 की ब्रांडिंग का दूध बेचता है।
हालांकि अमूल के मैनेजिंग डायरेक्टर रूपिंदर सिंह सोढ़ी इसे सिर्फ ‘मार्केटिंग का तरीका’ मानते हैं। सच्चाई ये है कि सामान्य अमूल दूध में 58% भैंस के दूध का होता है। भारत में देसी नस्ल की भैंसें ही हैं यानी यह दूध ए-2 ग्रुप का ही है। इसके अलावा 20-22% दूध देसी गाय पालकों से लिया जाता है। बचा हुआ 20% दूध संकर नस्ल की गायों से आता है।
यह गायें ए-1/ए-2 जेनेटिक ग्रुप की होती हैं, यानी इनके दूध में 50% ए-2 मिल्क प्रोटीन होता है। यानी सामान्य अमूल दूध में भी ए-1 प्रोटीन का हिस्सा बमुश्किल 10% होता है। विएना की यूनिवर्सिटी ऑफ नेचुरल रिसोर्सेज एंड लाइफ साइंसेज के प्रोफेसर हेलमट मेयर ने भी 2021 में प्रकाशित अपने शोध में यह दावा किया है कि जो लोग ए-2 दूध को ज्यादा फायदेमंद मानकर ज्यादा पैसे खर्च कर रहे हैं, उनके साथ धोखा हो रहा है।
एक गाय के DNA टेस्ट का खर्च 7000 रु. तक
कंपनियां अपने दूध की ए-2 ब्रांडिंग तो करती हैं, मगर ज्यादातर कंपनियां इसका कोई प्रमाण नहीं देतीं। FSSAI इस तरह का कोई सर्टिफिकेट जारी ही नहीं करता। ऐसे में सिर्फ गायों का DNA सर्टिफिकेट या दूध के सैंपल का प्रोटीन टेस्ट ही दावे की सत्यता जांचने का तरीका है। एक गाय के DNA टेस्ट का खर्च 5000 से 7000 रुपए तक है। ऐसे में यदि कोई कंपनी 400 गायें रखने का दावा करती है तो सिर्फ DNA सर्टिफिकेशन पर ही 28 लाख तक का खर्च आ जाएगा। दूध के सैंपल का प्रोटीन टेस्ट करवाएं तो यह रोज करवाना होगा। एक बैच के टेस्ट पर ही 4000 तक खर्च आता है।
कंपनियां ही उठाती रही हैं एक-दूसरे पर सवाल
इस कारोबार में कुछ कंपनियां खुद जमीन खरीदकर गायें पाल रही हैं। सिर्फ उनके अपने फार्म की गायों का दूध ही वे बेचती हैं। मगर ऐसी ज्यादातर कंपनियों का आकार छोटा है और मुनाफा भी कम है, जबकि बाह्य स्रोतों से दूध खरीदकर पैकेजिंग और ब्रांडिंग करने वाली कंपनियों का आकार और मुनाफा ज्यादा है। हर शहर में ऐसी छोटी-छोटी कंपनियां खुल गई हैं जो बाह्य स्रोत से दूध खरीदकर पैकेजिंग कर बेचती हैं। इनमें जो कंपनियां खुद की गायें रखती हैं और उनका DNA सर्टिफिकेट सार्वजनिक करती हैं उनका सीधा आरोप होता है कि ए-2 दूध के नाम पर बाजार में कुछ भी बेचा जा रहा है।
दूध तो दूध…घी में बड़ा घपला
ए-1 और ए-2 दूध का सेहत पर कितना अलग असर होता है यह अभी किसी भी वैज्ञानिक अध्ययन से साबित नहीं हुआ है। अपनी पसंद के हिसाब से अगर आप देसी या जर्सी गाय का दूध पसंद करते हों तो वह आपका निजी चुनाव हो सकता है। इनमें फर्क मिल्क प्रोटीन का ही होगा। मगर दूध से बड़ा घपला कंपनियां घी में करती हैं। सामान्य दूध के मुकाबले ए-2 दूध को उसके अलग मिल्क प्रोटीन के नाम पर कई गुना महंगा बेचा जाता है। मगर इस ए-2 दूध से बने घी को भी इसी प्रोटीन की ब्रांडिंग से 5,000 से 10,000 रुपए प्रति लीटर तक बेचा जाता है, जबकि घी में कोई भी प्रोटीन नहीं होता।