चिंता सताएगी:शहर में पहली बार कांग्रेस की महापौर और एमआईसी, लेकिन परिषद में बहुमत भाजपा का
- महत्वपूर्ण प्रस्ताव भी दलगत राजनीति के कारण परिषद में ठुकरा दिए जा सकते हैं
- पिछले चार चुनाव से नगर निगम में भाजपा का ही परचम लहराता रहा
महापौर के प्रत्यक्ष चुनाव होने के बाद दो दशक में यह पहली नगर सरकार होगी जहां महापौर और उनका मंत्रिमंडल (मेयर-इन-काउंसिल) तो कांग्रेस का होगा, लेकिन परिषद में बहुमत और सभापति भाजपा का रहेगा। ऐसे में सामंजस्य के अभाव में मतभेद की स्थिति बनी रहेगी। एमआईसी द्वारा भेजे गए महत्वपूर्ण प्रस्ताव भी दलगत राजनीति की भावना से परिषद में बहुमत के आधार पर ठुकरा दिए जाएंगे। इसका असर जनता के कामों से लेकर शहर विकास पर भी पड़ेगा।
पिछले चार चुनाव से नगर निगम में भाजपा का ही परचम लहराता रहा है। महापौर, एमआईसी, सभापति और परिषद में बहुमत भाजपा का होने के कारण शहर के लोगों को तकनीकी दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ा। नीतिगत मामलों में निर्णय लेने का अधिकार परिषद हो है, ऐसे में मेयर-इन-काउंसिल की ओर से परिषद में भेजे गए नीतिगत मामलों के प्रस्ताव बहुमत के आधार पर निरस्त हो सकते हैं।
विकास योजनाओं पर पड़ेगा प्रभाव
जानकारों के अनुसार भाजपा की सरकार कांग्रेस के महापौर को श्रेय न लेने देने के चक्कर में योजनाएं कम स्वीकृत करेगी। केंद्र और राज्य की ओर से मिलने वाली योजनाओं में महापौर और एमआईसी को रिव्यू के अधिकार नहीं दिए जाएंगे।
ये अपने आप में विरोधाभासी
महापौर और मेयर-इन-काउंसिल कांग्रेस और परिषद में भाजपा का बहुमत ये अपने आप में विरोधाभासी है। विकास कार्यों के साथ जनता से जुड़े मामलों पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा। सरकार की ओर से मिलने वाली अनुदान राशि भी प्रभावित हो सकती है।
-विनोद शर्मा, पूर्व कमिश्नर ननि
राजनीतिक प्रतिस्पर्धा होगी
कांग्रेस का महापौर और एमआईसी तथा परिषद में भाजपा का बहुमत और सभापति होने के कारण काम में दिक्कत तो आएगी। राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के चलते विकास तो प्रभावित होगा ही जनता से जुड़े मामलों में भी आपत्तियां लगेंगी।
-रमाकांत चतुर्वेदी, पूर्व सचिव नगर निगम परिषद