सुबह 3.30 बजे जाग जाती हैं द्रौपदी …? 4 साल में 2 बेटे और पति को खोया, शिव बाबा का ध्यान करके डिप्रेशन से निकलीं मुर्मू

ओडिशा का पहाड़पुर गांव। एंट्री गेट पर बैनर लगा है। जिसके दोनों तरफ द्रौपदी मुर्मू की बड़ी-बड़ी तस्वीरें लगी हैं। लिखा है- राष्ट्रपति पद की प्रार्थिनी द्रौपदी मुर्मू, पहाड़पुर गांव आपका स्वागत करता है। यहीं पर एक बड़ी सी प्रतिमा लगी है, जो द्रौपदी के पति की है। जिस पर ओडिशा के दो महान कवियों सच्चिदानंद और सरला दास की कविता की पंक्तियां उकेरी हुई हैं।

 

द्रौपदी मुर्मू के पति श्याम मुर्मू की प्रतिमा पर उड़िया में एक कविता की चंद लाइनें लिखी हैं। जिसका हिंदी में मतलब है- खाली हाथ आए हैं, खाली हाथ जाएंगे, इसलिए सदा अच्छे काम करना।

यहां से करीब 2.5 किलोमीटर अंदर दाखिल होने पर एक स्कूल है। नाम- श्याम, लक्ष्मण, शिपुन उच्च प्राथमिक आवासीय विद्यालय। कभी यहां एक घर था। वही घर जहां 42 साल पहले देश की होने वाली राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू दुल्हन बनकर आईं थीं। तब न तो पक्की दीवारें थीं और न पक्की छत। खपरैल-फूस से बना घर और बांस का छोटा सा दरवाजा।

4 साल के भीतर इस घर ने 3 ट्रेजडी देखीं। एक के बाद एक 3 लाशें गांव में दफन हुईं। 2010 से 2014 के बीच द्रौपदी के 2 बेटों और पति की मौत हुई। बड़े बेटे की मौत रहस्यमयी ढंग से हुई थी। करीबियों ने बताया कि वह अपने दोस्तों के घर पार्टी में गया था। रात घर लौटा, कहा मैं थका हूं, डिस्टर्ब मत करना।

सुबह दरवाजा खटखटाया गया तो खुला नहीं। किसी तरह दरवाजा खोला गया तो वह मरा हुआ मिला। 2 साल बाद छोटे बेटे की मौत सड़क हादसे में हो गई। इस इमारत में कभी सन्नाटा ना पसरे, इसलिए द्रौपदी ने छात्र-छात्राओं का यहां आवास बनवा दिया।

द्रौपदी ने अगस्त 2016 में अपने घर को स्कूल में तब्दील कर दिया। इसके भीतर द्रौपदी के दोनों बेटों और पति की प्रतिमा हैं। हर साल द्रौपदी इन लोगों की डेथ एनिवर्सरी पर यहां आती हैं।

द्रौपदी के जीवन की पहली ट्रेजडी, जिसका जिक्र गांव में कोई नहीं करता। उनकी पहली संतान की मौत। जो महज 3 साल की उम्र में दुनिया छोड़ गई।

इतना दुख। द्रौपदी ने सहा कैसे…

उनकी भाभी शाक्यमुनि कहती हैं, ‘जब बड़े बेटे की मौत हुई तो द्रौपदी 6 महीने तक डिप्रेशन से उबर नहीं पाईं थीं। उन्हें संभालना मुश्किल हो रहा था। तब उन्होंने अध्यात्म का सहारा लिया। शायद उसी ने उन्हें पहाड़ जैसे दुखों को सहने शक्ति दी।’

वे कहती हैं, ‘जो द्रौपदी बड़े बेटे की मौत से टूट गई थी, उसी द्रौपदी ने छोटे बेटे की मौत की खबर फोन पर देते वक्त कहा- रोकर घर मत आना। जैसे सामान्य समय में घर में मेहमान आते हैं वैसे आना।’

सदमे से उबरने के लिए ध्यान का रूख किया, एक दिन भी रूटीन मिस नहीं करतीं

रायरंगपुर में ब्रह्मकुमारी संस्थान की मुखिया सुप्रिया कहती हैं, ‘जब बड़ा बेटा खत्म हुआ था तो द्रौपदी बिल्कुल हिल गईं थीं। उन्होंने अपने घर हमें बुलाया और कहा कि कुछ समझ नहीं आ रहा क्या करें?’

मैंने कहा- आप सेंटर पर आइए। आपके मन को शांति मिलेगी। फिर वह सेंटर पर आने लगीं। वक्त की पाबंद इतनी कि कभी हम लोग भी 5 मिनट लेट हो जाते थे, पर वह कभी नहीं हुईं। 2014 तक तो वह सेंटर आती रहीं। गवर्नर बनने के बाद एक दो बार ही आईं, लेकिन उनका ध्यान कभी नहीं छूटा। रूटीन कभी नहीं टूटा। वो जितनी मिलनसार हैं, उतनी ही डाउन टु अर्थ। अंह तो किसी बात का है ही नहीं। उनके अपने छूटे तो उन्होंने दूसरों को अपना बना लिया।’

वे कहती हैं, ‘द्रौपदी अपने साथ हमेशा एक ट्रांसलाइट और शिव बाबा की छोटी पुस्तिका रखती हैं। ताकि कहीं दूसरी जगह जाने-आने पर भी उनका ध्यान का क्रम न टूटे। उम्मीद है कि राष्ट्रपति बनने के बाद भी वो इसे जारी रखेंगी।’

रायरंगपुर स्थित द्रौपदी के घर में भी उनका पूजा का कमरा बिल्कुल वैसा ही है जैसा ब्रह्मकुमारी सेंटर का। गुरू की तस्वीर, उसके ऊपर लाल रंग की ट्रांसलाइट। इससे निकलने वाली रोशनी का वह ध्यान करती हैं।

हर रोज सुबह साढ़े तीन बजे जाग जाती हैं

उसी गांव की रहने वाली सुनीता मांझी, पिछले साल दिसंबर में द्रौपदी मुर्मू के साथ रही थीं। कहती हैं, ‘द्रौपदी जी कितनी भी व्यस्त रहें, लेकिन ध्यान, सुबह की सैर और योग कभी नहीं छोड़ती थीं। हर रोज सुबह 3.30 बजे बिस्तर छोड़ देती थीं।’

उनके करीबी और रायरंगपुर में एमपी के रिप्रेजेंटेटिव संजय महतो कहते हैं, ‘मुर्मू के गवर्नर रहते हुए झारखंड राजभवन के दरवाजे सबके लिए खुले रहते थे। किसी ने मिलने की इजाजत मांगी तो जवाब हां में ही मिला। उन्होंने अपने पुराने दिनों को खुद पर हावी नहीं होने दिया।’

तस्वीर में पीछे खड़ीं मुर्मू मंद-मंद मुस्कुरा रही हैं। राजनीति में आने से पहले वे रायरंगपुर में स्कूल में टीचर थीं। वे पढ़ाने के लिए कोई सैलरी नहीं लेती थीं।

गवर्नर रहते अपनी पार्टी की सरकार का बिल लौटा दिया था

द्रौपदी बचपन से ही दृढ़ और सच के साथ मजबूती से डटे रहने वाली रही हैं। एक किस्सा याद करते हुए मुर्मू को पढ़ाने वाले बासुदेव बेहरा कहते हैं, ‘वो क्लास टॉपर थीं। हमेशा सबसे ज्यादा नंबर उन्हीं के आते थे। नियम के मुताबिक मॉनिटर उन्हें ही बनना चाहिए था, लेकिन क्लास में लड़कियों की संख्या काफी कम थी। 40 छात्रों में सिर्फ 8 लड़कियां थीं।

इस वजह से हमारे मन में शंका थी कि लड़की होकर वो पूरे क्लास को कैसे संभालेंगी, लेकिन द्रौपदी अड़ गईं। आखिरकार वही मॉनिटर बनीं।’

ये बासुदेव बेहरा हैं। मुर्मू के टीचर रहे हैं। वे कहते हैं कि द्रौपदी 7वीं के बाद ही पढ़ाई के लिए भुवनेश्वर चली गई थीं। तब वे अपने गांव उपरवाड़ा से भुवनेश्वर जाकर पढ़ने वाली इकलौती लड़की थीं।

इसकी एक और बानगी पढ़िए। साल 2017 की बात है, तब मुर्मू झारखंड की राज्यपाल थीं। भाजपा की सरकार सीएनटी-एसपीटी संशोधन विधेयक लेकर आई थीं। तब मुर्मू ने उस विधेयक को वापस कर दिया था। उन्होंने आदिवासियों के हित को दरकिनार करने और इस बिल के मकसद पर सवाल उठाए थे।

पहली कड़ी में आपने पढ़ा- द्रौपदी का प्रेम विवाह हुआ था, दहेज में मिली एक गाय, एक बैल और 16 जोड़ी कपड़े

द्रौपदी की भाभी शाक्यमुनि कहती हैं, ‘पिताजी यानी बिरंची नारायण टुडू को जब उनके प्रेम के बारे में पता चला तो वे द्रौपदी से गुस्सा हो गए। वे इस रिश्ते से खुश नहीं थे, लेकिन पहाड़पुर के श्याम भी ठानकर आए थे कि द्रौपदी से संबंध पक्का करके ही जाएंगे। उन्होंने अपने रिश्तेदारों के साथ तीन-चार दिन के लिए उपरवाड़ा गांव में डेरा डाल लिया था। उधर द्रौपदी ने भी मन बना लिया था कि शादी करुंगी तो उन्हीं से।’ (पढ़िए पूरी खबर)

द्रौपदी मुर्मू का मायका उपरवाड़ा गांव में है। यहां उनके आंगन में सहजन का बड़ा सा प्लांट है। इसकी सब्जी मुर्मू को काफी पसंद है। वो जब भी यहां आती हैं तो अपनी भाभी से सहजन की सब्जी बनवाती हैं।
द्रौपदी मुर्मू का मायका उपरवाड़ा गांव में है। यहां उनके आंगन में सहजन का बड़ा सा प्लांट है। इसकी सब्जी मुर्मू को काफी पसंद है। वो जब भी यहां आती हैं तो अपनी भाभी से सहजन की सब्जी बनवाती हैं।

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