संसद में 10 दिन में टैक्सपेयर्स के 100 करोड़ खर्च …? दोनों सदनों में 120 घंटे की जगह 26.8 घंटे काम हुआ, सिर्फ दो बिल पास…
दोनों सदनों में 120 घंटे की जगह 26.8 घंटे काम हुआ, सिर्फ दो बिल पास…
संसद का मानसून सत्र हंगामे के कारण चल ही नहीं पा रहा है। 18 जुलाई से 12 अगस्त तक चलने वाले मानसून सत्र के पहले दो हफ्तों में कभी विपक्ष तो कभी सत्ता पक्ष के हंगामे के कारण कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी। लोकसभा और राज्यसभा में इन दो हफ्तों में 60-60 घंटे यानी 120 घंटे काम होना था, लेकिन लोकसभा 15.7 घंटे और राज्यसभा में 11.1 घंटे यानी कुछ 26.8 घंटे ही काम हुआ।
मानसून सत्र में सरकार ने दोनों सदनों में 32 बिल पेश करने का ऐलान किया था। अब तक टैक्सपेयर के करीब 100 करोड़ रुपए खर्च होने के बावजूद सिर्फ दो ही बिल पास हो पाए हैं। ये दोनों ही बिल लोकसभा से पास हुए हैं। राज्यसभा से एक भी बिल पास नहीं हुआ है। 30 बिल अब भी बाकी हैं।
मानसून सत्र में विपक्ष महंगाई, बेरोजगारी, GST और अग्निपथ के मुद्दे पर हमलावर रहा तो सत्ता पक्ष ने कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी द्वारा राष्ट्रपति पर दिए गए विवादित बयान पर हंगामा किया। कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने राज्यसभा में कामकाज रोककर अग्निपथ पर चर्चा कराने के लिए नियम 267 के तहत स्थगन प्रस्ताव दिया, लेकिन इस पर चर्चा नहीं हुई।
हंगामों के बीच लोकसभा में अंटार्कटिका बिल और परिवार न्यायालय संशोधन बिल पास जरूर किया गया, लेकिन अन्य बिलों पर चर्चा ही नहीं हो सकी। राज्यसभा में एक भी बिल पास नहीं हुआ। ऐसे में दो हफ्ते में भारत के करदाताओं के 100 करोड़ रुपए बर्बाद हो गए।
पहले जानिए 100 करोड़ कैसे बर्बाद हुए
संसद में हफ्ते में पांच दिन काम होता है। रोज सुबह 11 बजे से शाम 6 बजे तक सदन चलती है, इसमें एक घंटे का लंच ब्रेक होता है। यानी एक दिन में 6 घंटे कार्यवाही का समय होता है। साल 2018 में लोकसभा सचिवालय की रिपोर्ट के अनुसार सदन चलाने में हर घंटे 1.6 करोड़ रुपए खर्च होते हैं। तब से अब तक चार साल में महंगाई बढ़ी है। लेकिन, 2018 की रिपोर्ट के ही आधार पर चलें तो सदन चलाने का एक दिन का खर्च करीब दस करोड़ रुपए आता है। मानसून सत्र के पहले दो हफ्तों में दस दिन की कार्यवाही में इस हिसाब से करीब 100 करोड़ रुपए खर्च हुए।
सांसदों-सचिवों की सैलरी और सचिवालय पर होता है खर्च
संसद की कार्यवाही में होने वाले खर्च में सांसदों का वेतन, सत्र के दौरान सांसदों को मिलने वाली सुविधाएं और भत्ते, सचिवालय के कर्मचारियों की सैलरी और संसद सचिवालय पर होने वाला खर्च शामिल है। इस खर्च का औसत करीब एक लाख साठ हजार रुपए प्रति मिनट आता है।
कार्यवाही कम कार्रवाई ज्यादा
मानसून सत्र में लोकसभा 15.7 घंटे और राज्यसभा में 11.1 घंटे ही काम हुआ है। जबकि, दस दिन में 60 घंटे काम होना चाहिए था। यानी, दोनों सदनों में एक चौथाई काम भी नहीं हुआ। सदन में कार्यवाही भले ही न हुई हो, सांसदों पर कार्रवाई जरूर हुई। सत्र के दूसरे हफ्ते में 27 सांसदों को निलंबित किया गया। सोमवार को लोकसभा से 4, मंगलवार को राज्यसभा से 19, बुधवार को 1 और गुरुवार को 3 सांसद सस्पेंड हुए।
अब आगे क्या?
चार हफ्तों तक चलने वाले मानसून सत्र के पहले दो हफ्ते हंगामे की भेंट चढ़ गए। अब 12 दिन का सत्र और बचा है, इसमें दो दिन शनिवार-रविवार और 11 अगस्त को रक्षाबंधन की छुट्टी रहेगी। यानी अब 9 दिन काम और होना है। सरकार को मानसून सत्र में 32 बिल पास कराने थे। अब या तो वह बिना चर्चा के पास होंगे या लटके ही रह जाएंगे। क्योंकि, महंगाई, बेरोजगारी, GST और अग्निपथ के मुद्दे पर विपक्ष मानने वाला नहीं है और सरकार भी राष्ट्रपति के अपमान पर सोनिया गांधी की माफी के बिना झुकने तैयार नहीं है।