आज सीएम करेंगे गृह विभाग की समीक्षा !
मध्यप्रदेश में 42 साल पहले 8 लीटर था पेट्रोल, आज 108 है, फिर भी पुलिस को मिलता है 80 महीना वाहन भत्ता, 8 साइकिल भत्ता..
मंगलवार को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान गृह विभाग की समीक्षा कर सकते हैं। इसके लिए पुलिस मुख्यालय ने अनुशंसाएं दी हैं, जिसमें प्लानिंग शाखा की एक मांग भी शामिल है। मांग है कि थानों के सिपाही से लेकर सब इंस्पेक्टर स्तर के पुलिसकर्मियों को हर महीने 15 लीटर पेट्रोल दिया जाए।
मप्र के 1110 थानों में 35 हजार पुलिसकर्मी सिपाही से एसआई तक हैं। यदि शासन यह मांग मान ले तो सरकार पर करीब 75 करोड़ रुपए सालाना का भार पड़ेगा। बता दें कि 1978 में सिपाहियों को 8 रुपए मासिक साइकिल भत्ता देना शुरू हुआ था।
जैसे-जैसे पुलिसिंग से साइकिल बाहर हुई, ये भत्ता भी प्रचलन से बाहर हो गया। अभी प्रावधान ये है कि किसी सिपाही-हवलदार को यदि ये भत्ता लेना है तो उसे साइकिल का बिल लगाना होगा। इसलिए कोई इस भत्ते को लेने के लिए आवेदन ही नहीं करता है।
साइकिल स्लिप दिखाने पर ही मिलेगा भत्ता, इसलिए कोई लेने ही नहीं आता
50 से 60 किमी गाड़ी चलाने का हिसाब… अमूमन किसी मामले में सिपाही को मौके पर भेजा जाता है। उसे ही शव मर्चुरी तक पहुंचाना होता है। पंचनामा के बाद कई बार परिजनों के बयान लेने पीड़ित के घर जाना होता है। इस पूरी प्रक्रिया में उन्हें 50-60 किमी गाड़ी चलानी होती है। पुलिस में सबसे प्रचलित टोटका है कि मर्ग जांच में किसी से पैसे नहीं लिए जाते, इसलिए पेट्रोल का पूरा खर्च सिपाही की जेब पर आता है।
पौष्टिक आहार भत्ते की मांग 17 महीने से शासन के पास लंबित
अभी हर पुलिसकर्मी को 650 रु. महीना पौष्टिक आहार भत्ता मिलता है। प्लानिंग शाखा ने इसे बढ़ाकर 1000 रु. महीना करने की मांग की है, लेकिन ये मांग शासन के पास 17 महीने से लंबित है।
43 साल पुराना है विशेष पुलिस भत्ता, जो 18 रु. महीना मिलता है
सिपाही से इंस्पेक्टर तक को 18 रुपए विशेष पुलिस भत्ता दिया जाता है। इसकी शुरुआत 1979 में कानून व्यवस्था ड्यूटी के दौरान हुई थी, जो आज तक उतना ही है।
सरकारी वाहनों की है कमी
सिपाही से एसआई तक के पुलिसकर्मियों के लिए प्रतिमाह 15 लीटर पेट्रोल की दर से भत्ता देने की अनुशंसा शासन से की गई है। थानों में पदस्थ पुलिसकर्मियों को बीट भ्रमण, समंस-वारंट तामीली और विवेचना के लिए थाना क्षेत्र में लगातार भ्रमण करना होता है। इसके लिए शासकीय वाहनों की संख्या पर्याप्त नहीं है।
– अनिल कुमार, एडीजी प्लानिंग