सेहत से खिलवाड़- एंटीबायोटिक पॉलिसी बनी लेकिन नहीं हुई लागू

-एजिथ्रोमाइसिन का अंधाधुंध इस्तेमाल घटा रहा रोग प्रतिरोधक क्षमता
– एम्स का अध्ययन, कई एंटीबायोटिक होते जा रहे बेअसर

बेवजह लिख रहे एंटीबायोटिक

खतरे को भांपते हुए सरकार ने 2019 में एंटीबायोटिक पॉलिसी तैयार की थी। पॉलिसी में मुख्य रूप से इसके दुष्परिणामों के प्रति जागरूक करने के साथ ही डॉक्टरों को बेवजह एंटीबायोटिक लिखने से रोकना था। एम्स भोपाल ने भी अस्पतालों में एक अध्ययन किया था।

मप्र में एजिथ्रोमाइसिन का 9 प्रतिशत इस्तेमाल
हाल ही में लैंसेट रीजनल हेल्थ साउथ ईस्ट एशिया में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार कोरोना काल में देश में एजिथ्रोमाइसिन 500 एमजी के टैबलेट सबसे ज्यादा बिके। कुल एंटीबायोटिक की बिक्री में इसका प्रतिशत 7.6 था, वहीं दूसरे नंबर पर सिफिक्सिम 200 एमजी थी, जिसका इस्तेमाल 6.5 प्रतिशत हुआ। मध्यप्रदेश में भी एजिथ्रोमाइसिन का उपयोग 9 प्रतिशत के करीब रहा।

एम्स के डॉ. सागर खडंगा के अनुसार बिना कल्चर टेस्ट के एंटीबायोटिक देना ठीक नहीं है। जिन मरीजों को 14 दिनों से कम बुखार है, गले में इन्फेक्शन नहीं हैं। उन्हें मलेरिया, टायफाइड हो सकता है। दस दिन से ज्यादा बुखार है तो टायफाइड हो सकता है। जांच में अगर ल्यूकोसाइट बढ़ा है तो एंटीबायोटिक दे सकते हैं। लेकिन सामान्य बुखार में एंटीबायोटिक नहीं देना चाहिए।

साल में 10 गोली से ज्यादा न लें
एंटीबायोटिक पॉलिसी बनवाने वाले रिटायर्ड स्वास्थ्य संचालक डॉ. पंकज शुक्ला के अनुसार एंटीबायोटिक के ज्यादा उपयोग से रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। जिंदगी में एक हजार से ज्यादा एंटीबायोटिक खाने से किडनी खराब हो सकती है। सौ साल जीना है तो साल में 10 गोली से ज्यादा न लें।
एंटीबायोटिक्स की कितनी बची प्रभावशीलता-
क्र. एंटीबायोटिक – कितनी प्रभावी (प्रतिशत में)
01. कोलिस्टिन – 89
02. इंपीनेम – 70
03. पिपरेसिलीन – 64
04. क्लोरेम्फेनीकूल – 63
05. जेंटामाइसिन – 60
06. एजट्रियोनम – 59
07.सेफ्टाजिडाइम – 52
08. लीवोफ्लोक्सेसिन – 52
09. डोरीपेनम – 48
10. सिफ्रिएक्सोन – 46
11. मीरोपेनम – 46
12. कोट्राइमोक्सेजोल – 42
13. सिफेपाइम – 40
14. सिफेजोलिन – 26
15. एमॉक्सीसिलीन – 17
16. एंपिसिलीन – 12
(स्रोत- एम्स का अध्ययन)

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