चुनौती:50% सीटों पर सरकारी के समान फीस के आदेश निजी मेडिकल कॉलेज संचालक !
चुनौती:50% सीटों पर सरकारी के समान फीस के आदेश के बाद हाई कोर्ट पहुंचे
इंदौर के 3 सहित प्रदेश में 9 निजी मेडिकल कॉलेज हैं, इनमें एमबीबीएस की 1950 और पीजी की 636 सीटें …
50% सीटों पर सरकारी मेडिकल कॉलेज के समान फीस लिए जाने के नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) के आदेश के खिलाफ मप्र के निजी मेडिकल कॉलेज व डीम्ड यूनिवर्सिटीज जबलपुर हाई कोर्ट चले गए। हाई कोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी कर दिया है। केरल में भी निजी मेडिकल कॉलेज इसके खिलाफ कोर्ट जा चुके हैं।
- 1627 कुल पीजी सीटें सरकारी व निजी मेडिकल कॉलेज में पूरे प्रदेश में
- 09 निजी मेडिकल कॉलेज प्रदेश में
- 1950 एमबीबीएस सीटें 9 निजी मेडिकल कॉलेजों में प्रदेश में
- 636 पीजी सीटें 9 निजी मेडिकल कॉलेजों में प्रदेश में
- 15 % एनआरआई कोटा
- 01 लाख 17 हजार सरकारी कॉलेज की फीस प्रतिवर्ष
- पहले भी फीस को लेकर कोर्ट जा चुके
हाल ही में एनएमसी के एक्ट को पारित किया है। एनएमसी के नियम 10 के तहत फीस निर्धारित करने का भी प्रावधान है। इसके पहले ऐसे कोई प्रावधान नहीं थे। वर्ष 2007 में मप्र में फीस विनियामक आयोग बनाया गया था, जो 100 फीसदी सीटों के लिए फीस का निर्धारण करता था। एडमिशन के लिए फीस रेगुलेटरी बॉडी बनाई है। इन निजी व्यावसायिक संस्थाओं को सरकार की ओर से कोई ग्रांट नहीं मिलती।
इसलिए अपने खर्च के हिसाब से उन्होंने फीस तय की। उसमें भी सरकार के हस्तक्षेप के बाद 2008 में भी निजी कॉलेजों ने सरकार के आदेश को चुनौती दी थी। वर्ष 2015 तक इसे लेकर कानूनी लड़ाई चली। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। वहां सरकार के पक्ष में फैसला हुआ। 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि सरकार का नियम सही है।
निजी मेडिकल कॉलेजों में फीस 10 गुना
पीजी सीटों के लिए रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। नीट के माध्यम से ही सरकारी व निजी मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश दिए जाते हैं, लेकिन निजी कॉलेजों में फीस स्ट्रक्चर अलग होता है। इंदौर के तीन कॉलेज सहित प्रदेश में 9 निजी मेडिकल कॉलेज हैं। इनमें एमबीबीएस की 1950 और पीजी की 636 सीटें हैं। इनमें से 15 प्रतिशत एनआरआई कोटा है।
शेष बची 85 प्रतिशत सीटों में से 50 फीसदी सीटों पर वह फीस ली जाना है, जो सरकारी मेडिकल कॉलेजों में ली जाती है। सरकारी मेडिकल कॉलेजों में प्रतिवर्ष 1 लाख 17 हजार रुपए फीस निर्धारित है। वहीं निजी मेडिकल कॉलेजों में यह फीस 10 गुना से ज्यादा है। 50 फीसदी सीटों पर सीधे आर्थिक नुकसान के बाद सभी कॉलेजों के संचालकों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।