इंदौर वन मंडल : दो डिप्टी रेंजर ने कार्रवाई की धमकी देकर मांगे 20 हजार रुपए महीना

हफ्ताबाज अफसर:गोंद व्यापारी के गाेदाम पहुंचे दो डिप्टी रेंजर ने कार्रवाई की धमकी देकर मांगे 20 हजार रुपए महीना ….
शपथ पत्र पर की शिकायत, सीसीटीवी फुटेज व रिकॉर्डिंग सौंपी, फिर भी बचाते रहे जिम्मेदार।

वन विभाग में रिश्वतखोरी का बड़ा मामला सामने आया है। इंदौर वन मंडल के दो डिप्टी रेंजर व एक वन रक्षक एक गोंद व्यापारी के गोदाम पहुंचे और कार्रवाई की धमकी देकर उससे 20 हजार रुपए महीने की मांग की। व्यापारी ने रेंजर को शपथ पत्र पर शिकायत की, साथ ही गोदाम में लगे सीसीटीवी कैमरे की रिकॉर्डिंग और फोन रिकॉर्डिंग भी भेजी। बावजूद इसके जिम्मेदार आरोपी अफसरों को बचाने में लगे रहे। मामला उछला तो एसडीओ को जांच सौंपी गई।

सूत्रों के अनुसार, डिप्टी रेंजर श्याम गोहे, महेंद्रसिंह सोनगरा, वन रक्षक सुनील जाट के खिलाफ पालदा क्षेत्र में गोदाम संचालित करने वाले व्यापारी राहुल गुप्ता ने शिकायत की है। आरोप है कि ये तीनों बिना किसी वरिष्ठ अधिकारी से अनुमति लिए गोदाम पर पहुंचे और जांच की बात कही।

व्यापारी को धमकाया कि गोदाम में रखा गोंद बिना अनुमति के जंगल से लाया गया है। कार्रवाई न करने के एवज में हर महीने 20 हजार रुपए देना होंगे। इसमें से बड़े अधिकारियों को भी हिस्सा जाएगा। डीएफओ नरेंद्र पंडवा का कहना है कि तीनों को नोटिस जारी कर दिए हैं।

उधर, डिप्टी रेंजर गोहे ने अपने जवाब में कहा कि मैंने पूर्व में गुप्ता के यहां कार्रवाई की थी, इसलिए मेरी शिकायत कर दी। डिप्टी रेंजर सोनगरा ने भी आरोप गलत बताए हैं। डीएफओ पंडवा ने एसडीओ कृष्णा निनामा को जांच सौंपी है। लोकायुक्त में भी शिकायत की गई है।

विभाग की जांच आगे नहीं बढ़ती, अफसर तो ठीक, बच्चों पर भी आरोप

  • यह पहला मौका नहीं है जब डिप्टी रेंजर या अन्य स्टाफ ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर कार्रवाई की हो। 2019 में खजराना, रिंग रोड के ढाबों पर भी इसी तरह कार्रवाई की गई थी। ढाबों में लकड़ी के उपयोग पर वसूली की बात सामने आई थी। 2018 में दीपावली के वक्त ही कुछ वन रक्षक एसडीओ की सरकारी गाड़ी लेकर देपालपुर क्षेत्र में वसूली करने पहुंच गए थे। तब भी व्यापारियों ने इसकी शिकायत कर दी थी।
  • गश्त के नाम पर भी रेंज से बाहर जाकर कारखानों, गाड़ियों की जांच करने के मामले सामने आ चुके हैं। एेसे मामलों की शिकायत होती है, एसडीओ स्तर के अफसर को जांच भी मिलती है, लेकिन आमतौर पर कार्रवाई नहीं होती। इसी साल की शुरुआत में एक डिप्टी रेंजर के बेटे का नाम कछुए की तस्करी में सामने आया था, लेकिन मामले की जांच ही आगे नहीं बढ़ पाई थी।

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