गुलाब नबी के पुराने वफादार आखिर क्यों हो रहे ‘आजाद’? क्या घाटी की राजनीति समझने में हुई भूल!
गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) ने नेताओं के पार्टी छोड़ने को लेकर कहा जब तक वोटर उनके साथ हैं, उन्हें नेताओं की चिंता नहीं है. उन्होंने कहा जनता नेता बनाती है.
डेमोक्रेटिक आजाद पार्टी (DAP) के नेता गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) को बड़ा झटका लगा जब एक साथ उनकी पार्टी के 17 नेताओं ने साथ छोड़ दिया. इन नेताओ में पूर्व डिप्टी सीएम तारा चंद और पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष पीरजादा मोहम्मद सईद समेत वे नाम हैं जिन्हें गुलाम नबी आजाद का खास समझा जाता है. बीते साल जब गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस से अलग राह पर चलते हुई अलग पार्टी बनाई तो ये नेता भी साथ आए थे. अब ये सभी फिर से पुरानी पार्टी में वापस लौट गए.
शुक्रवार को ये सभी कांग्रेस में शामिल हुए तो इन्होंने आरोप लगाया कि आजाद की पार्टी राज्य में सेक्युलर वोटों का बंटवारा करके बीजेपी को फायदा पहुंचाएगी. आजाद की नई पार्टी में हुआ ये विस्फोट सवाल करता है कि उनके साथी और वफादार समझे जाने वाले उनसे दूरी क्यों बना रहे हैं? क्या गुलाम नबी आजाद से घाटी की राजनीति को समझने में भूल हुई है. आजाद की राजनीति को समझना है तो कश्मीर के प्रमुख मुद्दों पर उनकी राय देखना सबसे जरूरी हो जाता है. जम्मू कश्मीर के लिए भावनात्मक रहे धारा 370, राज्य का दर्जा, जमीन का अधिकार और रोजगार जैसे मुद्दों पर वे क्या सोचते हैं.
अगस्त 2019 में जब मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर से धारा 370 खत्म करने का फैसला किया तो आजाद कांग्रेस की तरफ से राज्यसभा के सदस्य थे और सदन में विपक्ष के नेता भी थे. उस समय आजाद ने सदन में इस फैसले का जोरदार विरोध किया था. कांग्रेस छोड़ने के बाद वे इस मुद्दे पर अलग बात करते नजर आते हैं. आजाद ने एक जगह बोलते हुए कहा “धारा 370 बहुत महत्वपूर्ण है और मेरा मानना है कि यह बुरी नहीं थी. कोई चीज जो 70 साल तक भारतीय संविधान का हिस्सा रही हो वो कैसे बुरी हो सकती है.”
वहीं साल 2022 के सितम्बर में उनका एक बयान आया जिससे समझ में आया कि आजाद 370 के मुद्दे से दूर ही रहना चाहते हैं. उन्होंने कहा दूसरी पार्टियों की तरह मैं वोट के लिए लोगों को बहकाऊंगा नहीं. धारा 370 को बहाल करने के लिए लोकसभा में लगभग 350 और राज्य सभा में 175 सीट की जरूरत होगी. कांग्रेस के पास अभी 50 से भी कम (लोकसभा) सदस्य हैं. ऐसे में 370 बहाल करने का वादा झूठा है.