दुनिया में सबसे ज़्यादा सोशल मीडिया अकाउंट भारतीयों के ..?
दुनिया में सबसे ज़्यादा सोशल मीडिया अकाउंट भारतीयों के:70% लोग सोते समय देखते हैं मोबाइल; डिप्रेशन, भुलक्कड़ी, सुसाइड की वजह यही
अमेरिका-ब्रिटेन वालों के 7 सोशल मीडिया अकाउंट्स, भारतीयों के 11
रिसर्च फर्म ‘रेडसियर’ के मुताबिक इंडियन यूजर्स हर दिन औसतन 7.3 घंटे अपने स्मार्टफोन पर नजरें गड़ाए रहते हैं। इसमें से अधिकतर टाइम वे सोशल मीडिया पर बिताते हैं। जबकि, अमेरिकी यूजर्स का औसतन स्क्रीन टाइम 7.1 घंटे और चीनी यूजर्स का 5.3 घंटे है। सोशल मीडिया ऐप्स भी इंडियन यूजर्स ही सबसे ज्यादा यूज करते हैं। अमेरिका और ब्रिटेन में एक इंसान के औसतन 7 सोशल मीडिया अकाउंट्स हैं, जबकि एक भारतीय कम से कम 11 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मौजूद है।
70 फीसदी लोग बिस्तर पर जाने के बाद भी मोबाइल चलाते हैं
रिसर्च बताती हैं कि स्क्रीनटाइम जितना ज्यादा होता है, लोग सोशल मीडिया जितना ज्यादा यूज करते हैं, उनकी मेंटल हेल्थ उतनी ही ज्यादा खराब हो जाती है। वे एंग्जाइटी और डिप्रेशन के अलावा और कई गंभीर डिसऑडर्स के शिकार हो जाते हैं। ज्यादा स्क्रीनटाइम सोशल मीडिया की लत लगा देता है। रिसर्च जर्नल PubMed के मुताबिक 70 फीसदी लोग बिस्तर पर जाने के बाद भी मोबाइल नहीं छोड़ते और सोशल मीडिया पर बिजी रहते हैं।
करोड़ों भारतीय हर रोज घंटों तक सोशल मीडिया पर बिता रहे हैं…
लड़कियों की मेंटल हेल्थ पर ज्यादा बुरा असर
‘लैंसेट चाइल्ड एंड एडोलसेंट हेल्थ’ की स्टडी के मुताबिक सोशल मीडिया पर मौजूद लड़कों की तुलना में लड़कियों की मेंटल हेल्थ पर ज्यादा बुरा असर पड़ता है। वे ट्रोलर्स, साइबर बुलीइंग के अलावा सेक्शुअल एब्यूज की चपेट में ज्यादा आती हैं। यह उनकी नींद उड़ा देता है। जिसके बाद वे मानसिक बीमारियों के जाल में फंसती जाती हैं।
डिप्रेशन में डूब जाता है व्यक्ति, भुलक्कड़ हो जाता है
जर्नल PubMed की रिपोर्ट के मुताबिक सोशल मीडिया पर ज्यादा एक्टिव होने की वजह से नींद पूरी नहीं होती, जिससे मेंटल हेल्थ पर बुरा असर पड़ता है। व्यक्ति डिप्रेशन का शिकार और भुलक्कड़ बन जाता है। साइबर बुलीइंग हालात को और बिगाड़ देती है। अफवाहें, निगेटिव कमेंट्स और गालियां यूजर्स के मन को चोट पहुंचाती हैं, जिसका असर गहरा होता है। प्यू रिसर्च के एक सर्वे के अनुसार करीब 60 फीसदी यूजर्स ऑनलाइन एब्यूज का शिकार होते हैं।
बिखर जाते हैं रिश्ते, खत्म हो जाता है इमोशनल कनेक्शन
साइकेट्रिस्ट डॉ. राजीव मेहता बताते हैं कि सोशल साइट्स पर बिजी रहने वालों की सामाजिक जिंदगी खत्म हो जाती है। आप घरवालों, दोस्तों से बात नहीं करते। आपसी रिश्ते खराब होते हैं। इमोशनल कनेक्शन खत्म होता है, जो नुकसानदेह है। रिश्तों में शेयरिंग, केयरिंग नहीं रहती। व्यक्ति का दायरा सीमित होता है और कुंठाएं बढ़ती हैं। यहां तक कि नए कपल भी सोशल साइट्स में इतने खोए रहते हैं कि उनकी पर्सनल लाइफ डिस्टर्ब हो जाती है, जो एक्सट्रा मैरिटल अफेयर की वजह बनता है। डॉ. मेहता कहते हैं कि मैं अपने दो पेशेंट्स का जिक्र करना चाहूंगा।
केस स्टडी-1: मोबाइल की लत ने 13 साल के सक्षम की बिगाड़ी मेंटल हेल्थ
13 साल के सक्षम (बदला हुआ नाम) को उसके पेरेंट्स डॉक्टर बनाना चाहते हैं। उन्होंने एक बड़ी मेडिकल कोचिंग के फाउंडेशन कोर्स में बच्चे का एडमिशन कराया। लेकिन, पेरेंट्स से मिले मोबाइल से उसे सोशल मीडिया की लत ऐसी लगी कि वह पढ़ाई में पिछड़ने लगा। पेरेंट्स ने टोकना शुरू किया, तो उसने बात मानने से इंकार कर दिया। मां से झगड़ा करता, चिड़चिड़ा रहता और जुबान लड़ाता कि आप मेरी फ्रीडम छीन रहे हैं। उसका बर्ताव ऐसा बदला कि उसे साइकेट्रिस्ट के पास ले जाना पड़ा।
केस स्टडी-2: ऑनलाइन दुनिया में बिजी रहा पति, पत्नी का हो गया अफेयर
दिलीप और श्वेता की शादी एक साल पहले हुई थी। दिलीप को सोशल मीडिया की लत थी। वह पूरा टाइम फोन पर बिजी रहता। पत्नी से बात करने तक के लिए उसके पास वक्त नहीं होता। धीरे-धीरे दोनों के रिश्ते बिड़गने लगे। अनिल ऑनलाइन दोस्तों में बिजी रहा और पत्नी का कहीं अफेयर हो गया। आखिर में बात तलाक तक पहुंची।
एंटी-सोशल बना देता है सोशल मीडिया
सोशल मीडिया की लत जितनी ज्यादा बढ़ती है, लोग डिप्रेशन और एंग्जाइटी का उतना ही ज्यादा शिकार होते हैं। डॉ. मेहता इसकी वजह बताते हैं कि जब आप किसी से आमने-सामने मिलते हैं, तो उसके चेहरे के हावभाव, बॉडी लैंग्वेज से उसे समझते हैं। जब कोई वर्चुअल दुनिया में सीमित हो जाता है, तो लोगों को समझना और दुनियादारी नहीं सीख पाता। सोशल मीडिया पर लोग अच्छी बातें तो करते हैं, लेकिन रियल लाइफ में जरूरत पड़ने पर साथ नहीं देते। इससे भी मेंटल हेल्थ खराब होती है।
फोटो के फिल्टर सिखाते हैं झूठी जिंदगी
सोशल मीडिया यूजर्स के सामने एक ऐसा छलावा तैयार कर देता है, जिससे सबको लगने लगता है कि दुनिया में हर कोई खुश है। हर कोई सोशल मीडिया पर परफेक्ट और खुशहाल दिखाने वाली तस्वीरें पोस्ट करता है। फोटोशॉप और दूसरे ऐप्स के फिल्टर का यूज कर वह अपनी खुशहाल जिंदगी की नकली तस्वीर दुनिया को दिखाता है। सभी अपने आपको 100 फीसदी परफेक्ट दिखाना चाहते हैं और इस चक्कर में वे तनाव, जलन के शिकार होकर मेंटल हेल्थ खो बैठते हैं।
साइकेट्रिस्ट डॉ. राजीव मेहता कहते हैं कि फिल्टर्स फन के लिए तो ठीक हैं, लेकिन जब इनका इस्तेमाल झूठे दिखावे के लिए होने लगे, तो ये समस्या की वजह बन जाते हैं। इसलिए, अगर कभी आप फोटो-वीडियो पोस्ट करने से पहले ऐसे किसी फिल्टर का यूज करें, तो इस बात का ध्यान रखें कि कहीं आप झूठी तस्वीर तो नहीं दिखा रहे जो आपकी मेंटल हेल्थ पर बुरा असर डालेगी।
आपका मानसिक स्वास्थ्य बेहतर बना रहे, इसके लिए दूसरों की दिखावे वाली पोस्ट्स को गंभीरता मत लें…
सोशल मीडिया पर रिवॉर्ड की चाहत बिगाड़ती है आदत
सोशल मीडिया यूज करने के दौरान फील-गुड केमिकल डोपामाइन हॉर्मोन रिलीज होता है। इससे यूजर को वैसी ही संतुष्टि और सुख मिलता है, जैसा अच्छा खाना खाने, अपनों से बात करने और फिजिकल रिलेशन बनाने में हासिल होता है। फोटो, वीडियो और पोस्ट पर आने वाले कमेंट, लाइक और शेयर यूजर के लिए रिवॉर्ड पॉइंट्स की तरह काम करते हैं। इससे व्यक्ति को अजीबोगरीब खुशी मिलती है। जिससे ब्रेन का रिवॉर्ड सेंटर एक्टिवेट हो जाता है। इसी कारण यूजर सोशल साइट्स पर ज्यादा समय बिताने लगते हैं। उन्हें उम्मीद होती है कि उनकी पोस्ट लोग पसंद करेंगे और वह वायरल होगी। इससे दूसरे लोग उन्हें पहचानेंगे, पसंद करेंगे और ढेरों तारीफें मिलेंगी। लेकिन, जब ऐसा नहीं हो पाता है, तो वे मायूस होने लगते हैं। एक वक्त के बाद यह मायूसी चिड़चिड़ेपन और स्ट्रेस की वजह बनती है। वे दूसरे यूजर्स से खुद को अलग-थलग महसूस करने लगते हैं।
सोशल मीडिया का सुसाइड कनेक्शन
सोशल मीडिया का नेगेटिव असर इतना घातक हो जाता है कि लोग जान देने के बारे में सोचने लगते हैं। वह सोशल मीडिया के सुसाइड कनेक्शन पर जब जर्नल ऑफ यूथ एंड एडोलसेंस ने रिसर्च की, तो डराने वाले फैक्ट सामने आए। इसमें पता चला कि सोशल मीडिया पर कोई जितना ज्यादा वक्त बिताता है, उसके खुद को नुकसान पहुंचाने का खतरा उतना ही बढ़ जाता है। 13 साल की जो लड़कियां हर दिन 2 घंटे सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रही थीं, बड़ों की तरह ही उनमें भी सुसाइड करने का रिस्क बहुत ज्यादा मिला।
अगर किसी में ऐसे लक्षण दिखाई दें, तो सतर्क हो जाएं और उसका ख्याल रखें…
सोशल मीडिया से अमेरिका में 150 गुना बढ़ गया चाइल्ड सुसाइड रेट
साल 2009 के बाद अमेरिका के युवाओं में आत्महत्या की दर तेजी से बढ़ने लगी। इस बारे में जब रिसर्च शुरू हुई, तो पता चला कि इसकी वजह सोशल मीडिया है। फेसबुक 2004 में लॉन्च हुआ। इसके बाद 2007 से 2017 के बीच सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल का डेटा बताता है कि 10 से 24 साल वाले युवाओं में आत्महत्या की दर 57 फीसदी बढ़ गई। अमेरिकी सोशल साइकोलॉजिस्ट जोनाथन डेविड कहते हैं कि सोशल मीडिया के कारण ही 10 से 14 साल की लड़कियों में सुसाइड रेट 10 साल में 3 गुना बढ़ा, जबकि चाइल्ड सुसाइड रेट में 1.50 गुना की बढ़ोतरी हुई।
आत्महत्या से जुड़ी गलत धारणाओं के चलते लोगों की जान बचाने के लिए समय रहते कदम नहीं उठाए जा पाते…
जितने ज्यादा सोशल मीडिया अकाउंट, उतना ज्यादा बुरा असर
अधिकतर लोग कई-कई सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म यूज करते हैं। पूरी दुनिया में भारतीय यूजर्स इस मामले में भी अव्वल हैं। यहां हर यूजर के औसतन 11 से 12 सोशल मीडिया अकाउंट हैं। जबकि, रिसर्च बताती हैं कि सोशल मीडिया पर किसी के जितने ज्यादा अकाउंट होंगे, उसकी मेंटल हेल्थ उतनी ही ज्यादा बिगड़ेगी। अमेरिकी मेडिकल रिसर्चर ब्रायन ए. प्राइमैक ने मल्टीपल सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म यूज करने वालों पर एक सर्वे किया। जिसमें उन्होंने पाया कि 0 से 2 प्लैटफॉर्म यूज करने वालों की तुलना में 7 से 11 प्लैटफॉर्म इस्तेमाल करने वाले यूजर्स को डिप्रेशन और एंग्जाइटी का शिकार होने का खतरा ज्यादा रहता है।
सोशल साइट्स की हकीकत समझें और इसके मकड़जाल से बचें…
सोशल मीडिया की लत ऐसे पड़ती है
सोशल मीडिया की लत की शुरुआत होती है FOMO (Fear of Missing Out) से। फोमो का मतलब है पीछे छूटने का डर, एंजॉय न कर पाने का डर। फोमो की वजह से लोगों को लगता है कि उनके दोस्त सोशल मीडिया के फायदे उठा रहे हैं, उसका मजा ले रहे हैं, जबकि वे मौका गंवा रहे हैं। सोशल मीडिया पर ज्यादा ध्यान देना और असल जिंदगी की अहमियत को कम करना, मन पर बुरा असर डालता है। पेन्सिलवेनिया स्थित लैंकास्टर जनरल हेल्थ हॉस्पिटल की रिसर्च के मुताबिक जब उम्मीद के मुताबिक लाइक और कमेंट नहीं आते, तो निराशा बढ़ती है। व्यक्ति हताश होता है और उसे लगता है कि उसका आत्मसम्मान कम हो गया है। लगातार मोबाइल चेक करने की आदत से ध्यान भटकता है और काम पर असर पड़ता है। फैमिली, फ्रेंड्स की जगह सोशल मीडिया पर ज्यादा टाइम बीतने लगता है। जिससे एंग्जाइटी, डिप्रेशन और अकेलापन महसूस होने लगता है।
सोशल मीडिया पर बिताया हर लम्हा असली जिंदगी के लिए घातक
सोशल साइट्स का जितना ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है, मन पर उसका बुरा असर उतना ही बढ़ता जाता है। इस बारे में सेंटर फॉर एडिक्शन एंड मेंटल हेल्थ ने एक रिसर्च की और पाया कि रोज 2 घंटे से ज्यादा सोशल मीडिया यूज करने वाले स्टूडेंट्स की मेंटल हेल्थ ज्यादा खराब हुई।
ठीक यही बात अमेरिकी जर्नल JAMA साइकेट्री की रिसर्च से भी पता चलती है। जिसमें पाया गया कि जो लोग रोज 3 घंटे से ज्यादा सोशल मीडिया इस्तेमाल कर रहे थे, उनका बिहेवियर एंटी-सोशल हो गया और वे डिप्रेशन, एंग्जाइटी, आक्रामकता जैसी मानसिक समस्याओं के शिकार हो गए। ज्यादा समय तक मोबाइल जैसे गैजेट्स यूज करने से मोटापा, सर्वाइकल, सिरदर्द, पीठ दर्द जैसी समस्याएं भी शुरू हो जाती हैं।
अकेलापन दूर होने की जगह बढ़ जाता है
यूनिवर्सिटी ऑफ पेन्सिलवेनिया की एक स्टडी के मुताबिक, अकेलापन दूर करने के लिए लोग सोशल मीडिया की तरफ भागते हैं। लेकिन, वहां जितना ज्यादा वक्त बिताते हैं, उनका अकेलापन उतना ही ज्यादा बढ़ता जाता है। स्टडी में यह भी पाया गया कि जैसे ही लोग सोशल मीडिया यूज करना कम कर देते हैं, उनका अकेलापन भी कम होने लगता है। वे खुद को दूसरों से अलग-थलग महसूस करना बंद कर देते हैं, जिससे उनकी सेहत में सुधार होता है।
आमिर खान से लेकर करण जौहर तक ने छोड़ा सोशल मीडिया
ऑनलाइन ट्रोलिंग और नफरत के शिकार हुए कई सेलेब्स सोशल मीडिया छोड़ चुके हैं। इनमें आमिर खान, सोनाक्षी सिन्हा, करण जौहर तक शामिल हैं। ब्रिटिश राजघराने के प्रिंस हैरी और उनकी पत्नी मेगन मर्केल भी सोशल मीडिया की निगेटिविटी से बच नहीं पाए। सोशल साइट्स पर फैली निगेटिविटी की आलोचना करते हुए इन हस्तियों ने ट्विटर जैसे प्लैटफॉर्म से किनारा कर लिया। दंगल फेम फातिमा सना सेख, हिना खान, आयुष शर्मा, ईशा गुप्ता, वरिना हुसैन जैसे कई स्टार्स लंबे समय तक सोशल साइट्स से दूर रहे। अभी भी इनमें से कई सेलेब्स के सोशल मीडिया अकाउंट उनकी पीआर टीम चलाती है।
इन स्टार्स की तरह आप भी सोशल मीडिया से दूरी बना सकते हैं, इसके लिए एक्सपर्ट की इन बातों का रखें ख्याल…
सोशल मीडिया के छलावे से बचें
एक्सपर्ट्स का कहना है कि सोशल मीडिया के बुरे असर से बचने के लिए सबसे पहले अपनी प्राथमिकताएं तय करनी जरूरी हैं। अकेलेपन और डिप्रेशन से बचना है तो यह देखना बंद करना होगा कि दूसरे लोग सोशल मीडिया पर क्या पोस्ट कर रहे हैं, क्या दिखा रहे हैं। सोशल मीडिया पर आप उनकी एंजॉय करती तस्वीरें तो देख रहे हैं, लेकिन उन तस्वीरों के पीछे हकीकत से अंजान हैं। किसने अपने दिल में कितने गम छुपा रखे हैं, यह कौन जाने।
वर्चुअल दुनिया से दूरी सेहत के लिए जरूरी
इसके साथ ही सोशल मीडिया का इस्तेमाल कम से कम करना जरूरी है। रोज 30 मिनट से कम इन ऐप्स को यूज करने से फोमो के साथ ही दूसरे बुरे असर से भी बच सकते हैं। गिल्फर्ड जर्नल की रिपोर्ट भी यही बताती है। जिसके अनुसार सोशल मीडिया से दूरी बनाकर उदासी, अकेलेपन और डिप्रेशन से निजात पाई जा सकती है। जैसे आप इन वर्चुअल झंझटों से दूर जाते हैं, मूड अच्छा होने लगता है, फोकस बढ़ जाता है और मेंटल हेल्थ में सुधार आने लगता है।
इसके लिए आप सुबह और रात के समय सोशल मीडिया यूज करना बंद कर दें। दिन की शुरुआत सोशल मीडिया की निगेटिविटी से करना वैसे भी अच्छा नहीं है। वहीं, रात में ये ऐप आपकी नींद और चैन भी चुरा लेते हैं।