‘सब जगह पानी ही पानी, लेकिन एक बूंद भी पीने लायक नहीं’

चित्रदुर्ग कर्नाटक के ऐतिहासिक महत्व वाले 30 जिलों में से एक है। इसने लोक साहित्य को सहेजा है, इसमें आदिवासी संस्कृति की परंपराओं, रीति-रिवाजों और आस्थाओं को प्रतिबिंबित करने वाले गीत, छंद, महाकाव्य शामिल हैं।

चित्रदुर्ग अपने विचित्र मिथकों, पाषाण युग के मानव आवास के साथ बहुत विशिष्ट है, यह प्राचीन, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक-धार्मिक महत्व के स्थलों से समृद्ध, हजारों वर्षों की सभ्यता और पुरातनता व आधुनिकीकरण के एकीकरण वाली जगह रहा है।

इस 16 और 17 जनवरी को पांच दिवसीय ‘मरिकम्बा जात्रा’ के दौरान इस जिले के एक गांव बोम्मनहल्ली के लोग नंगे पैर रहे। यहां लोग मानते हैं कि इस उत्सव के पहले दो दिन गांव के देवी-देवता मरिकम्बा, दुर्गाम्बिका और मरम्मा गांव में विचरण करते हैं। और जूते-चप्पल पहनना उनके प्रति निरादर होगा, इसलिए प्रतिबंधित है।

तीन हजार की आबादी वाला गांव मेले के दौरान साफ रहता है क्योंकि हर किसी को चिंता रहती है कि उन्हें सड़क पर कोई चीज नहीं फेंकनी चाहिए या थूंकना नहीं चाहिए या कुछ ऐसा नहीं फेंकना चाहिए, जिससे नंगे पैर चलने वालों को दिक्कत हो। युवा निगरानी रखते हैं कि कोई भी बाहरी व्यक्ति गांव में जूते-चप्पल पहनकर प्रवेश न करे।

पिछले हफ्ते हुए इस उत्सव के बारे में मुझे रविवार को याद आया, जब मैंने सुना कि यहां से महज 200 किमी दूर बेंगलुरु में कई जगहों पर भूजल में नाइट्रेट (तय सीमा 45 मिलीग्राम/लीटर) व क्लोराइड (तय सीमा 250 मिलीग्राम/लीटर) की मात्रा मान्य सीमा से अधिक पाई गई।

घरेलू सीवेज या खुले की गंदगी के अवैज्ञानिक तरीके से निपटान के चलते भूजल में नाइट्रेट पहुंच जाता है। शहर के जल निकायों में सीवेज मिल रहा है, ऐसे में भूजल में नाइट्रेट बढ़ना तय है। अगर आसपास का पर्यावरण सुरक्षित नहीं तो बोरवेल का फायदा नहीं है।

सिर्फ भूमिगत जल नहीं, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने हाल ही में जारी रिपोर्ट में देश की 279 नदियों के किनारे ऐसे 311 प्रदूषित इलाकों की पहचान की है और 2022 में महाराष्ट्र में ऐसे सबसे ज्यादा 52 रिवर स्ट्रेच हैं। ये अध्ययन देश में नदियों के पानी की गुणवत्ता का एक आवधिक मूल्यांकन था और इन हिस्सों में बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) के स्तर से अधिक मापा गया था।

इन इलाकों में बीओडी 3 मिगी/ली से ज्यादा था, यह सीमा पानी के निचली गुणवत्ता को दर्शाता है। महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा इंडस्ट्रीज़ हैं, जो नदी में प्रदूषण बढ़ाने के साथ भूजल भी दूषित करती हैं, यहां तक कि कुछ 100 किमी नीचे तक भी बेहद जहरीला बना रही हैं। एक बार जब ऐसा हो जाता है तो उन जगहों के भूजल को साफ करना प्रायोगिक रूप से संभव नहीं।

रिपोर्ट के मुताबिक 13 से ज्यादा राज्यों इसमें बिहार, छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल, झारखंड में नदी किनारे इलाके में प्रदूषण बढ़ा है, जो कि हमारे लिए चिंताजनक बात है क्योंकि ये महाराष्ट्र की तुलना में छोटे औद्योगिक राज्य हैं।

समय आ गया है कि हमें बच्चों और भावी पीढ़ी के लिए प्रकृति के इस नायाब तोहफे के संरक्षण के बारे में सोचना होगा। नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब अखबारों में हेडलाइंस होगी कि ‘सब जगह पानी ही पानी, लेकिन एक बूंद भी पीने लायक नहीं’। जैसे बोम्मनहल्ली गांव के युवा निगरानी रखते हैं, जरूरत है कि हम भी अपने जलस्रोतों पर नजर रखें।

फंडा यह है कि चूंकि हमने चिंता जाहिर करना शुरू कर दिया है कि ‘मेरे पानी में क्या है?’ ऐसे में यह चेतावनी के साथ-साथ उन लोगों के लिए अवसर भी है कि जो साफ पेयजल बेचने के बिजनेस या इससे जुड़ा कोई बिजनेस करना चाहते हैं।

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