संवेदनशील नागरिकों के निर्माण से ही शिक्षा अर्थपूर्ण
अंतरराष्ट्रीय शिक्षा दिवस पर विशेष: इस वर्ष की थीम – ‘लोगों में निवेश करने के लिए शिक्षा को दें प्राथमिकता’
यूनेस्को ने अपनी स्थापना के वर्ष से ही दुनिया भर में शांति और सतत विकास के लिए शिक्षा को सबसे जरूरी माना है। संस्था ने इस वर्ष यह दिवस अफगानिस्तान की लड़कियों व महिलाओं को समर्पित किया है।
दुनिया में जब भी जहां कहीं भी शिक्षा के मसले पर भेदभाव होता है तो संयुक्त राष्ट्र की ही आवाज सबसे पहले सुनाई देती है। हाल ही में अफगानिस्तान में तालिबानी सरकार द्वारा लड़कियों को स्कूल-कॉलेज भेजने पर प्रतिबंध के खिलाफ सबसे पहले संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनेस्को ही सामने आई है। संस्था ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए न केवल इसे मानवीय गरिमा, स्वतंत्रता और शिक्षा के अधिकार पर हमला बताया, बल्कि इस प्रतिबंध को तुरंत हटाने की मांग भी की। इसीलिए संस्था ने इस वर्ष यह दिवस अफगानिस्तान की लड़कियों और महिलाओं को समर्पित किया है। यूनेस्को ने अपनी स्थापना के वर्ष से ही दुनिया भर में शांति और सतत विकास के लिए शिक्षा को सबसे जरूरी माना है। इसी विचार को आगे बढ़ाने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 3 दिसंबर 2018 को हर वर्ष 24 जनवरी को अंतरराष्ट्रीय शिक्षा दिवस मनाने का प्रस्ताव भी स्वीकार किया था। इसी क्रम में अंतरराष्ट्रीय शिक्षा दिवस का यह 5वां वर्ष है और इस बार थीम है – ‘लोगों में निवेश करने के लिए शिक्षा को प्राथमिकता दें।’
दुनिया भर में शिक्षा को बढ़ाने के लिए यूनेस्को इस मंत्र के साथ काम कर रही है कि मानवीय अधिकारों के लिए सभी को शिक्षा देना सत्ता, शासन और समाज की जिम्मेदारी है। ऐसे ही प्रयासों का फल है कि आजादी के वक्त भारत की साक्षरता दर जो सिर्फ 18% थी, 2022 के आंकड़ों में 80% को भी पार कर चुकी है। महिलाओं की शिक्षा में भी क्रांतिकारी सुधार हुआ है, क्योंकि 1947 में महिलाओं की साक्षरता दर केवल 6% थी। भारत में साक्षरता अभियान, बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ जैसी अनेक योजनाओं के जरिए इस ओर पर्याप्त ध्यान दिया गया है। इसके बावजूद हमारी प्रगति दुनिया के कुछ गरीब देशों, जिनमें अफ्रीका और एशिया के देश भी शामिल हैं, से पीछे रही है। उत्तर भारत के कई राज्य विशेषकर बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश देशभर में अभी भी बहुत पीछे हैं। महिलाओं की शिक्षा में तो और भी ज्यादा। इसका कारण बढ़ती जनसंख्या के साथ संसाधनों का अभाव भी रहा है, पर पिछले कुछ दशकों में विश्व बैंक और हमारी सरकारों ने मिलकर पूरी तरह से इस लक्ष्य को पाने की कोशिश की है। इसका ताजा प्रमाण है शिक्षा की संस्था ‘प्रथम’ द्वारा किया गया हाल का सर्वेक्षण, जिसे ‘असर’ रिपोर्ट कहा जाता है। इसके अनुसार, वर्तमान भारत में 6 से 16 वर्ष के लगभग 98.4% बच्चे स्कूल जा रहे हैं। इस रिपोर्ट में और भी महत्त्वपूर्ण बातें हैं जैसे लड़कियों का स्कूल जाने का प्रतिशत बढ़ा है। सरकारी स्कूलों की संख्या जरूर कम हुई है, पर कोरोना के बाद स्कूलों में नामांकन बढ़ा है।
अंतरराष्ट्रीय शिक्षा दिवस के मौके पर हमें इस ओर ध्यान देना होगा कि हमारी शिक्षा का स्तर लगातार गिर रहा है। एनसीईआरटी से लेकर सभी संस्थाओं की रिपोर्ट बताती हैं कि स्कूल में नाम तो दर्ज हो गए हैं लेकिन पांचवी कक्षा का बच्चा दूसरी कक्षा के गणित और भाषा का ज्ञान भी नहीं रखता। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत के इंजीनियरों और उच्च शिक्षा में कौशल व ज्ञान की कमी पाई गई है और कभी-कभी उन्हें किसी भी नौकरी या काम के लिए अयोग्य पाया गया है। आज ऐसे समय में जबकि दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी भारत में है और सूचना क्रांति से दुनिया भर का ज्ञान भी उपलब्ध है, सरकारों को तुरंत इस पर ध्यान देने की जरूरत है ताकि ज्ञान और कौशल के मामले में हम भी दुनिया में सिर उठाकर चल सकें।
वर्ष 2020 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में रोजगार और कौशल समेत कई बातों की तरफ ध्यान दिया गया है, पर यह आने वाला समय ही बताएगा कि हम सचमुच की शिक्षा में कितना सफल हुए हैं। अभी तो हमारे देश के लाखों नौजवान ऐसे पाठ्यक्रमों के लिए विदेश जाने की कतार में हैं जिन्हें अपने ही देश में आसानी से बेहतर किया जा सकता है। यह भी याद रखने की जरूरत है कि शिक्षा का सही अर्थ साक्षरता तक सीमित नहीं है बल्कि ऐसे नागरिकों के निर्माण से है जो संवेदनशील हों और असमानता और भेदभाव के खिलाफ खड़े हो सकें। ऐसा होगा, तभी शिक्षा दुनिया भर में शांति और समृद्धि का औजार बन सकेगी।