11 साल की उम्र में लगी स्मार्टफोन की आदत : अब स्मार्टफोन से आजादी का आंदोलन चला रही

11 साल की उम्र में लगी स्मार्टफोन की आदत:लत से अंगुलियां मुड़ने लगी थीं …

मेरा नाम लोगन लेन है। मैं 17 साल की हूं और न्यूयॉर्क के एक स्कूल में दसवीं में पढ़ती हूं। 6 साल पहले मुझे स्मार्टफोन मिला। तब मैं 11 साल की थी। स्मार्टफोन की दुनिया मेरे लिए बिल्कुल नई थी। इसी समय मैंने इंस्टाग्राम पर लॉग-इन किया। रोज अपनी 10-12 तस्वीरें पोस्ट करती थी। स्मार्टफोन लेकर सोती थी और इसी के साथ मेरी सुबह होने लगी।

अपने दोस्तों के साथ चैटिंग, सोशल मीडिया, इंटरनेट सर्फिंग करती थी। वीडियो स्क्रॉलिंग में घंटों गुजरने लगे। पढ़ाई कम और खेलना बंद हो गया। एक दिन जब मुझे स्मार्टफोन पर गुजारे गए वक्त का मैसेज आया तो मैं चौंक गई। मैं रोज 6-7 घंटे स्मार्टफोन पर रहती थी। यह समय बढ़ता जा रहा था और मुझे इसका पता भी नहीं चला।

स्मार्टफोन छोड़ने से बदला दुनिया देखने का नजरिया
मैं खुद को यह भी नहीं बता सकी कि मैं इतनी देर तक स्मार्टफोन पर कर क्या रही थी। तब मैंने स्मार्टफोन छोड़ने का फैसला लिया। इसने मेरी जिंदगी ही नहीं बदली, हर चीज के प्रति मेरा नजरिया भी बदल दिया। शुरू में दिक्कत हुई। मैंने अपनी दोस्त को इंस्टाग्राम का पासवर्ड दिया कि वह अपडेट करती रहे। आखिर मेरे फॉलोवर थे।

अपनी लोकप्रियता छोड़ देना आसान नहीं होता, लेकिन बाद में मैंने अपना अकाउंट भी बंद कर दिया। अब जब मैं दुनिया को देख रही थी तो मैंने देखा हर कोई अपना फोन देख रहा है। फोन छोड़ने के बाद मैं कई दिन तक सो नहीं पाई। मेरे हाथों की अंगुलियां फोन पकड़ने की तरह लंबे समय तक अपने आप मुड़ती रहीं।

सोशल मीडिया अकाउंट बंद कर खुद को सोशल मीडिया से दूर रखना सोशल डेथ कहलाता है।
सोशल मीडिया अकाउंट बंद कर खुद को सोशल मीडिया से दूर रखना सोशल डेथ कहलाता है।

स्मार्टफोन से दूर अपने शौक की ओर लौट रहे युवा
मैं पेंटिंग के अपने शौक को निखारने लगी। मैंने देखा कि फोन छोड़ने के बाद मेरी काम करने की क्षमता बढ़ गई। मैं चीजों को दूसरों की अपेक्षा जल्दी सीखने लगी। ऐसा नहीं है कि मैंने इंटरनेट का इस्तेमाल बंद कर दिया, लेकिन अब डेस्कटॉप पर करती हूं। दोस्तों को जरूरत पर मैसेज भी करती हूं, लेकिन अब एडिक्ट नहीं हूं।

इंस्टाग्राम के बाद टिकटॉक और स्नैपचैट को डिएक्टीवेट कर दिया। अब करीब 2 साल से मैं अपने उम्र के लोगों को स्मार्टफोन की गुलामी से आजाद करने की कोशिश कर रही हूं। इसके लिए ल्यूडिटे क्लब बनाए हैं। कई साथी अब इससे जुड़ रहे हैं। वे किताबों और अपने शौक की ओर लौट रहे हैं। स्मार्टफोन का इस्तेमाल बंद कर फीचर फोन का इस्तेमाल कर रहे हैं।

सोशल डेथ से बनते हैं ल्यूडिटे क्लब
सोशल मीडिया अकाउंट बंद कर खुद को सोशल मीडिया से दूर रखना सोशल डेथ कहलाता है। सोशल डेथ से ही ल्यूडिटे क्लब बनते हैं। ल्यूडिटे क्लब ऐसे लोगों का समूह है जो तकनीक, स्मार्टफोन, स्मार्ट टीवी आदि से दूरी रखते हैं। अब अमेरिका के कई शहरों में कई सारे ल्यूडिटे क्लब बन गए हैं। इनमें 4 से 15 लोग होते हैं। ये स्मार्टफोन और सोशल मीडिया एडिक्ट नहीं होते। एक निश्चित समय पर एक साथ मिलते हैं-किताबें पढ़ते हैं। घूमने जाते हैं।’

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