सोशल मीडिया से इनकम पर भारत से ज्यादा सख्त US… !

वायरल पोस्ट से कमाई की…टैक्स भी चुकाओ … मगर छूट के तरीके भी हैं …

 ……… एक छोटी-मोटी सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर हैं। किताबों के बारे में इंस्टाग्राम रील्स बनाती हैं।

उनके ज्यादा नहीं, सिर्फ 7 हजार फॉलोअर्स हैं। अपने रील्स के जरिये उन्होंने पिछले साल करीब 300 डॉलर यानी करीब 25 हजार रुपए कमाए…और अब वो परेशान हैं कि क्या उन्हें अपनी इस कमाई पर टैक्स चुकाना होगा?

अमेरिका ही नहीं भारत समेत पूरी दुनिया में सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर अब एक कमाई वाला प्रोफेशन बन चुका है। मगर ये कमाई कभी एक जैसी नहीं होती…किसी महीने ज्यादा तो अगले ही महीने बहुत कम हो सकती है।

कुछ इन्फ्लुएंसर्स अभी सीधे कमाई तो नहीं कर रहे, मगर प्रमोशन के लिए ब्रांड्स की तरफ से गिफ्ट्स ले रहे हैं या एफिलिएट मार्केटिंग कर रहे हैं। सोशल मीडिया से कमाई का गणित जितना उलझाऊ है, उससे भी ज्यादा उलझाऊ है इस कमाई पर टैक्स का ताना-बाना।

भारत में सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर की कमाई एक इंडिविजुअल के तौर पर टैक्सेबल होती है। यानी एक नौकरीपेशा के जैसे ही टैक्स स्लैब्स उस पर लागू होते हैं। ब्रांड्स से मिलने वाले गिफ्ट्स पर टैक्स का नियम 2022 में ही लागू हुआ है।

अमेरिका समेत कई पश्चिमी देशों इनकम टैक्स की दर ज्यादा है और कम कमाई भी टैक्स के दायरे में आती है। इन देशों में टैक्स अथॉरिटीज की निगरानी भी ज्यादा सख्त है।

हालांकि टैक्स में छूट पाने के भी कई तरीके हैं जो अमेरिका ही नहीं, भारत के भी सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स इस्तेमाल कर सकते हैं…लेकिन ज्यादातर को इसका पता ही नहीं होता।

ऐसे में सोशल मीडिया कंटेंट क्रिएटर्स के लिए सोशल मीडिया पर ही अब टैक्स कंसल्टेंट्स की एक नई पौध अमेरिका में दिखने लगी है। इनमें से कई सर्टिफाइड पब्लिक अकाउंटेंट्स (CPA (भारत के चार्टर्ड अकाउंटेट्स के समकक्ष)) हैं जो खास तौर पर सोशल मीडिया से होने वाली कमाई, उस पर टैक्स के नियम और छूट के तरीकों के एक्सपर्ट हैं।

भारत में अभी इस तरह के विशेषज्ञ टैक्स कंसल्टेंट्स की पॉपुलैरिटी नहीं है। लेकिन अब सोशल मीडिया टाइम पास के बजाय कमाई का प्लेटफॉर्म बनता जा रहा है। ऐसे में यहां भी इनकी जरूरत महसूस की जा रही है।

 

भारत में भी सोशल मीडिया से कमाई पर लगता है टैक्स

भारत में सोशल मीडिया से होने वाली कमाई को ‘Income from business or profession’ के तौर पर टैक्स के दायरे में माना जाता है।

इसका मतलब है कि सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स पर भी एक इंडिविजुअल की तरह ही टैक्स स्लैब लागू होते हैं।

इसके हिसाब से पुराना टैक्स सिस्टम चुनें तो सालाना 2.5 लाख तक की आय पर टैक्स नहीं है। जबकि नया टैक्स सिस्टम चुनें तो 7 लाख रुपए तक की सालाना आय पर टैक्स नहीं लगेगा।

बड़े इन्फ्लुएंसर्स के लिए अपनी कमाई का ऑडिट कराना भी जरूरी है। अगर सोशल मीडिया से सालाना आय 1 करोड़ रुपए हो तो ऑडिट अनिवार्य है। अगर इस आय में कैश का हिस्सा 5% तक ही हो तो ऑडिट 10 करोड़ रुपए की सालाना आय पर जरूरी है।

देखिए, क्या हैं भारत में इंडिविजुअल की कमाई पर टैक्स की दरें

ब्रांड्स से मिलने वाले गिफ्ट्स पर भी लगता है टैक्स

भारत में 2022 में ही नया नियम लागू हुआ है। इसके तहत इन्फ्लुएंसर्स को अगर कोई ब्रांड 20 हजार से ज्यादा का गिफ्ट देता है तो इस पर 10% टीडीएस (टैक्स डिडक्शन एट सोर्स) लागू होगा।

अमेरिका और दूसरे देशों में भी सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स को मिलने वाले गिफ्ट्स टैक्स के दायरे में आते हैं।

…लेकिन टैक्स का गणित कहीं भी सीधा-सीधा नहीं

भारत हो या अमेरिका, कहीं भी सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स और कंटेंट क्रिएटर्स के लिए टैक्स का गणित आसान नहीं है।

सोशल मीडिया पर कई कंटेंट क्रिएटर्स ऐसे हैं जो ये काम अपने फुल टाइम जॉब के साथ करते हैं। ऐसे में ये कन्फ्यूजन सबसे बड़ा होता है कि दोनों जगह से होने वाली आय पर टैक्स एक साथ लगेगा या अलग-अलग।

साथ ही कंटेंट क्रिएटर्स को इस बात की भी जानकारी नहीं होती है कि वो अपने पोस्ट से होने वाली कमाई में टैक्स छूट के लिए क्या कर सकते हैं।

सोशल मीडिया से पोस्ट्स से होने वाली आय बहुत ज्यादा उतार-चढ़ाव वाली होती है और इस वजह से टैक्स का कैलकुलेशन भी ज्यादा मुश्किल हो जाता है।

लॉरा निकोल कोलाजो पेरेज अमेरिका में टिकटॉक पर एक फ्रीलांस सोशल मीडिया स्ट्रैटेजिस्ट हैं। उन्होंने हाल ही में टिकटॉक पर अपने टैक्सेशन के डीटेल पोस्ट किए। पेरेज का कहना है कि सोशल मीडिया पर लोगों को टैक्स या फाइनेंस से जुड़ी सलाह देने के बजाय अपने अनुभव शेयर करने चाहिए।

पेरेज ने पिछले साल जुलाई में ही सोशल मीडिया से कमाई शुरू की थी। 2022 के सेकेंड हाफ में उन्होंने अपने पोस्ट्स से 25 हजार डॉलर यानी करीब 21 लाख रुपए कमाए। उन्होंने शुरू से ही अपनी पोस्ट्स से होने वाली आय और उन पर होने वाले खर्च का पूरा बही-खाता रखा था। ताकि अपनी टैक्सेबल इनकम का पता लगा सकें।

अमेरिका में ज्यादा जल्दी टैक्स के दायरे में आ जाते हैं कंटेंट क्रिएटर्स

पेरेज कहती हैं कि कंटेंट क्रिएटर्स को खुद नहीं पता होता कि वो कितनी आसानी से टैक्स के दायरे में आ जाते हैं।

नए कंटेंट क्रिएटर्स आसानी से ब्रांड्स के साथ गिफ्ट कोलैबोरेशन्स कर लेते हैं। यानी उन्हें प्रमोशन के बदले में ब्रांड्स की तरफ से गिफ्ट्स या फ्री प्रोडक्ट्स मिलने लगते हैं। मगर ये सबकुछ अमेरिका की टैक्स अथॉरिटी इंटरनल रेवेन्यू सर्विसेज (IRS) की नजर में आ जाता है।

IRS ने भी ऐसे पार्टटाइम कंटेंट क्रिएटर्स या इन्फ्लुएंसर्स के लिए टैक्सेशन को आसान बनाने के लिए अपने प्लेटफॉर्म पर विशेष टैक्स सेंटर बना रखा है। इस पर टैक्स गाइडेंस और मदद मिलती है।

कंटेंट क्रिएटर्स के लिए अब विशेष टैक्स सलाहकार भी मौजूद

अमेरिका में टर्बोटैक्स नाम का प्लेटफॉर्म टिकटॉक पर टैक्स ट्यूटोरियल वीडियो भी डालता है। इन वीडियोज में कंटेंट क्रिएटर्स के लिए खास सलाह दी जाती है।

टर्बोटैक्स से जुड़ी CPA लीजा ग्रीन-लुईस कहती हैं कि 2018 से 2020 के बीच टैक्स सलाह मांगने वाले कंटेंट क्रिएटर्स और इन्फ्लुएंसर्स की संख्या में 207% का इजाफा हुआ है।

एक और CPA टोनी हूंग टिकटॉक पर @thecpadude के नाम से अकाउंट चलाते हैं। वो खास तौर पर कंटेंट क्रिएटर्स को टैक्स फाइल करने में मदद करते हैं।

हूंग बताते हैं कि उनके ज्यादातर क्लाएंट्स को आदत है कि नियोक्ता कंपनी ही टैक्स का पैसा पहले काट ले (भारत के टीडीएस की तरह)। ऐसे में उन्हें ये समझ नहीं आता कि किस आय को टैक्स के लिए डिक्लेयर करें और किसे नहीं।

टैक्स अकाउंटेंट कैथरीन स्टडले कहती हैं कि ये टैक्स फाइलिंग आपके साधारण टैक्स फाइलिंग की तरह नहीं होते हैं। ज्यादातर लोग सोच-समझकर सोशल मीडिया से कमाई के मैदान में नहीं उतरते हैं।

एक बार जब कमाई शुरू होती है फिर टैक्स भरने का ख्याल आता है और ऐसे में ज्यादातर लोग अपने किसी जानकार रिश्तेदार से मदद मांगते हैं। लेकिन ज्यादातर लोग ट्रेडिशनल इनकम पर टैक्स की गणना तो कर लेते हैं, मगर यहां मामला जरा अलग होता है।

ब्रांड्स से मिले गिफ्ट सिर्फ प्रमोशन के लिए हों तो टैक्स नहीं लगता…छूट के तरीके और भी हैं

यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म सब्सक्राइबर्स की संख्या के आधार पर विज्ञापन तय करते हैं।
यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म सब्सक्राइबर्स की संख्या के आधार पर विज्ञापन तय करते हैं।

सोशल मीडिया पर इनकम कई तरह से हो सकती है। यू-ट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म अपने कंटेंट क्रिएटर्स को कमाई में हिस्सा देते हैं। कुछ प्लेटफॉर्म्स पर सब्सक्राइबर्स से आय होती है तो कहीं लोग टिप्स भी देते हैं।

बड़े इन्फ्लुएंसर्स तो कई बार एक साथ कई प्लेटफॉर्म्स से अलग-अलग तरीकों से कमाई कर रहे होते हैं।

आज कई प्लेटफॉर्म्स ऐसे भी हैं जो इंस्टाग्राम जैसे ऐप्स के लिए फॉलोअर्स बेचते हैं। इसे फॉलोअर्स बढ़ाने का एक तरीका माना जाता है।
आज कई प्लेटफॉर्म्स ऐसे भी हैं जो इंस्टाग्राम जैसे ऐप्स के लिए फॉलोअर्स बेचते हैं। इसे फॉलोअर्स बढ़ाने का एक तरीका माना जाता है।

यहां आय के जितने तरीके हैं, उस पर टैक्स से छूट के भी तरीके उतने ही हैं। ब्रांड्स से मिलने वाले गिफ्ट्स अगर सिर्फ प्रमोशन के लिए हों तो उन पर अमेरिका में टैक्स नहीं लगता।

भारत में भी 20 हजार के ऊपर के गिफ्ट्स पर टीडीएस लागू होता है, लेकिन अगर प्रमोशन के बाद ये गिफ्ट्स लौटा दिए जाएं तो टीडीएस नहीं होगा।

यही नहीं, भारत-अमेरिका समेत ज्यादातर देशों में कंटेंट क्रिएटर्स वीडियो बनाने में लगने वाली लागत को टैक्स छूट में क्लेम कर सकते हैं।

जैसे वीडियो बनाने में लगने वाला इक्विपमेंट जैसे कैमरा, लाइटिंग, माइक्रोफोन इन सभी का खर्च टैक्स छूट में क्लेम किया जा सकता है।

रिकॉर्डिंग इक्विपमेंट से एडिटिंग सॉफ्टवेयर तक सबकुछ दिला सकता है टैक्स में छूट …

कंटेंट क्रिएटर्स के लिए बिजनेस टूल्स प्रोवाइड कराने वाले प्लेटफॉर्म पेट्रियॉन के टैक्स हेड माइकल मिनसिएली कहते हैं कि अगर आप किसी इंस्टाग्राम रील या यू-ट्यूब वीडियो में किसी बैंड का परफॉर्मेंस देखते हो तो आपका ध्यान संगीत और कलाकारों की अदायगी पर होता है।

मिनसिएली कहते हैं- मेरा ध्यान उनके रिकॉर्डिंग इक्विपमेंट, उनके म्यूजिकल इंस्ट्रुमेंट्स, उनके कैमरे, बैकग्राउंड की सजावट से लेकर उनके कॉस्ट्यूम्स पर होता है। ये सभी टैक्स छूट के तरीके हैं। इन सभी को खर्च में दिखाकर टैक्स छूट ली जा सकती है।

इन चीजों के अलावा भी वीडियो एडिटिंग के सॉफ्टवेयर्स, जहां ये सारा काम किया जा रहा हो बतौर ऑफिस उसका किराया…ऐसी कई चीजें हैं जिन पर कंटेंट क्रिएटर्स टैक्स छूट ले सकते हैं।

अमेरिका में कंटेंट क्रिएटर्स की तादाद बढ़ने के साथ ही इस तरह की टैक्स सलाह देने वाले प्लेटफॉर्म्स भी तेजी से बढ़ रहे हैं।

भारत में अभी कंटेंट क्रिएशन का बूम तो है, मगर टैक्स का दायरा समझने और इसमें छूट दिलाने के तरीकों पर सलाह देने वालों का आंकड़ा काफी कम है।

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