देश में 1 घंटे की नेटबंदी….?
11 साल में 697 बार नेटबंदी…41 बार 3 दिन से ज्यादा बंद रहा नेट
देश में 1 घंटे की नेटबंदी…442 करोड़ का नुकसान:11 साल में 697 बार नेटबंदी…41 बार 3 दिन से ज्यादा बंद रहा नेट …
दुनिया में सबसे ज्यादा नेटबंदी के मामले में भारत लगातार 5वें साल दुनिया में टॉप पर है।
दुनिया भर में इंटरनेट के एक्सेस की मॉनिटरिंग करने वाली संस्था ऐक्सेस नाओ की रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में भारत में 84 बार लोगों को इंटरनेट शटडाउन झेलना पड़ा।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस नेटबंदी की कीमत क्या है?
भारत में अगर पूरे देश में एक घंटे के लिए भी नेटबंदी हो जाए तो 442 करोड़ रुपए से ज्यादा का नुकसान होता है।
हालांकि पूरे देश में एक साथ नेटबंदी नहीं होती है, लेकिन इनकी संख्या जितनी ज्यादा होती है नुकसान भी उतना ही ज्यादा होती है।
2018 के बाद 2022 पहला साल था जब भारत में कुल नेटबंदी की घटनाएं 100 से कम थीं। मगर इनमें भी 14 बार नेटबंदी 24 घंटे से ज्यादा की थी।
आज देश में नेटबंदी का मतलब सिर्फ मोबाइल सेवाएं बाधित होना ही नहीं है। डिजिटल पेमेंट्स पर टिकी अर्थव्यवस्था में जहां चाय के पैसे तक लोग क्यूआर कोड स्कैन करके देते हैं, वहां नेटबंद होने का मतलब सीथे तौर पर एक बड़ी आबादी की कमाई रुकना है।
जानिए, नेटबंदी से होने वाला नुकसान आखिर कितना है और क्यों भारत में इंटरनेट शटडाउन्स की संख्या इतनी बढ़ गई है…
2023 के 2 महीनों में ही 7 इंटरनेट शटडाउन्स
भारत में इंटरनेट शटडाउन्स का डेटा रखने वाले प्लेटफॉर्म Internetshutdowns.in के मुताबिक 2012 से अब तक भारत में कुल 697 बार नेटबंदी हो चुकी है।
2023 के दो महीनों में ही भारत में 7 बार नेटबंदी हो चुकी है।
28 फरवरी: राजस्थान के भरतपुर में भ्रामक वीडियो का प्रसार रोकने के लिए सरकार ने नेट बंद किया।
26 फरवरी: राजस्थान के 7 जिलों में रीट भर्ती परीक्षा की वजह से नेट बंद किया गया।
26 फरवरी: हरियाणा के नूह जिले में सामुदायिक तनाव के बाद नेट बंद किया गया।
25 फरवरी: राजस्थान के 7 जिलों में रीट भर्ती परीक्षा की वजह से नेट बंद किया गया।
17 फरवरी: आंध्र प्रदेश में सांप्रदायिक हिंसा के बाद नेट बंद कर दिया गया।
16 फरवरी: झारखंड के पलामू जिले में पथराव की घटना के बाद नेट बंद कर दिया गया।
8 फरवरी: बिहार के सारण जिले में मैसेज ट्रांसमिशन रोकने के लिए नेट बंद किया गया।
इंटरनेट शटडाउन का मतलब है इकोनॉमिक शटडाउन
भारत में इंटरनेट से जो सबसे महत्वपूर्ण चीज जुड़ी है, वो है- डिजिटल पेमेंट्स। 2016 में नोटबंदी के बाद सरकार ने डिजिटल पेमेंट्स को बढ़ावा देना शुरू किया था।
नेटबंद होने का मतलब बैंकों के सारे ऑनलाइन ट्रांजैक्शन्स के साथ ही UPI पेमेंट्स का भी बंद होना है।
नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के मैनेजिंग डायरेक्टर दिलीप असबे के मुताबिक जनवरी, 2023 में देश में 8 अरब UPI ट्रांजैक्शन हुए थे। इनमें करीब 17 लाख करोड़ रुपयों ने हाथ बदले।
ऐसे में इंटरनेट शटडाउन का सीधा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ना तय है।
1 घंटे का देशव्यापी शटडाउन यानी 442 करोड़ का नुकसान…1 दिन का शटडाउन यानी 10 हजार करोड़ से ज्यादा का नुकसान
नेटब्लॉक्स संस्था ने इंटरनेट शटडाउन से होने वाले नुकसान का आकलन करने के लिए विशेष टूल बनाया है।
इसके जरिये किसी भी देश में इंटरनेट शटडाउन से होने वाले नुकसान की लागत निकाली जा सकती है, चाहे वह शटडाउन 1 घंटे का हो या 1 दिन का।
हालांकि ये देश के किसी विशेष इलाके में शटडाउन से नुकसान का आकलन नहीं कर सकते। नुकसान की गणना देश की GDP और वहां इंटरनेट के प्रभाव के आधार पर की जाती है।
देश में सबसे ज्यादा और सबसे लंबी नेटबंदी जम्मू-कश्मीर में…उसके बाद राजस्थान का नंबर
राष्ट्रीय सुरक्षा कारणों से जम्मू-कश्मीर में नेटबंदी सबसे ज्यादा होती है। धारा 370 हटाए जाने के बाद राज्य में 552 दिन तक नेटबंदी रही थी।
2012 से अब तक के इंटरनेट शटडाउन्स का आंकड़ा बताता है कि जम्मू-कश्मीर के बाद नेटबंदी में दूसरे स्थान पर राजस्थान आता है।
उत्तर प्रदेश में 11 सालों में 30 बार नेटबंदी हुई है। देश में हिमाचल प्रदेश, गोवा, मिजोरम और केरल ऐसे राज्य हैं जहां इन वर्षों में एक बार भी नेटबंदी नहीं हुई।
अब कुछ घटने से पहले आशंका में नेटबंदी ज्यादा होती है
नेटबंदी का फैसला या तो किसी घटना से पहले लिया जाता है, जिसे प्रिवेंटिव शटडाउन कहा जाता है। अगर ये फैसला घटना के बाद लिया जाता है तो इसे रिएक्टिव शटडाउन कहा जाता है।
जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटाए जाने से पहले की गई नेटबंदी हो, या राजस्थान में किसी भर्ती परीक्षा से पहले की नेटबंदी ये सभी प्रिवेंटिव शटडाउन की श्रेणी में आते हैं।
वहीं अरुणाचल से लेकर राजस्थान के भरतपुर तक सामुदायिक हिंसा की घटनाओं के बाद की गई नेटबंदी रिएक्टिव शटडाउन की श्रेणी में आते हैं।
भारत में 2017 से इंटरनेट शटडाउन्स की संख्या बढ़ी है और इनमें प्रिवेंटिव शटडाउन्स ज्यादा हैं। अंतरराष्ट्रीय समुदाय में इसे सरकार की सेंसरिंग के तौर पर देखा जाता है।
किसी भी अप्रिय घटना की आशंका में सबसे पहले उस पूरे इलाके का इंटरनेट बंद कर दिया जाता है।
देश में ज्यादातर शटडाउन 24 घंटे से कम के
भारत में नेटबंदी की घटनाएं ज्यादा हैं, लेकिन इनमें ज्यादातर शटडाउन्स 24 घंटे से कम के रहे हैं। हालांकि सरकारें शटडाउन के ड्यूरेशन की सही जानकारी देने में पारदर्शिता नहीं बरतती हैं।
2017 से 2022 के बीच 200 बार नेटबंदी की ऐसी घटनाएं हुई हैं जिनमें सरकारों ने ये स्पष्ट नहीं किया कि शटडाउन कितनी देर का था।
41 शटडाउन्स ऐसे थे जो 72 घंटों से ज्यादा के थे। 148 शटडाउन ऐसे थे जो 24 घंटे से ज्यादा के थे, लेकिन 72 घंटे से कम के थे।
एक्सेस नाओ की रिपोर्ट कहती है नेटबंदी का इस्तेमाल सेंसरिंग में ज्यादा
एक्सेस नाओ की रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ नेटबंदी ही नहीं, सोशल मीडिया पोस्ट्स से लेकर ऐप्स और वेबसाइट्स को बैन करने के मामले भी भारत में बढ़े हैं।
2015 से 2022 के बीच सरकार ने 55,607 टेकडाउन ऑर्डर्स दिए हैं। इन टेकडाउन्स में सोशल मीडिया पोस्ट्स हटवाना, वेबसाइट्स बैन करना और ऐप्स को बैन करना शामिल हैं।
2022 में भारत में सरकारों ने 84 बार नेटबंदी की। 2021 में हुए 107 इंटरनेट शटडाउन्स के मुकाबले ये 21% की गिरावट है।
लेकिन 2022 में टेकडाउन ऑर्डर्स की संख्या 6,775 थी जो 2021 के 6,096 टेकडाउन ऑर्डर्स के मुकाबले 11% ज्यादा है।