आज क्षमता का पूरा उपयोग ही कल का निवेश

2047 तक भारत बने विकसित राष्ट्र: तय अवधि में विकसित राष्ट्र का लक्ष्य हासिल करने के लिए देश की श्रमशक्ति का सही इस्तेमाल जरूरी होगा, साथ ही संभावित वैश्विक खतरों का भी ध्यान रखना होगा

औद्योगिक उत्पादन के सभी घटकों की बहाली अभी कोविड से पहले के स्तर को नहीं छू पाई है। आइआइपी मैन्युफैक्चरिंग की 23 विस्तृत श्रेणियों में से 13 में उत्पादन स्तर कोविड पूर्व स्तर से भी नीचे है।

कें द्र सरकार की प्रमुख नीतिगत प्राथमिकताओं में से एक अर्थव्यवस्था में निवेश की दर बढ़ाना है। किसी भी अर्थव्यवस्था की उत्पादन संभावनाओं का ग्राफ तब बढ़ता हुआ दिखाई देता है जब उसकी पूंजी में वृद्धि हो। इसी से कई गुना प्रभाव के साथ और व्यापक वृद्धि संभव हो पाती है। दरअसल, भारतीय अर्थव्यवस्था में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के ही एक अंश सकल स्थायी पूंजी निर्माण (जीएफसीएफ) के रूप में प्राप्त निवेश दर में 2011-12 से ही गिरावट दर्ज की जा रही है। 2004 से 2011 के बीच जीएफसीएफ-जीडीपी अनुपात 33 से 35 प्रतिशत था। 2012 से ही निवेश दर में स्थायी गिरावट रही है। कोरोना से प्रभावित वर्ष के दौरान निवेश दर गिरकर 27.25% रह गई। राहत की बात यह है कि बीते वित्त वर्ष 2021-22 में निवेश दर बढ़ कर 28.9% हो गई। यही वह पृष्ठभूमि है जिसके चलते केंद्र सरकार पूंजी निर्माण के लिए सार्वजनिक क्षेत्र में निवेश के लिए बड़े पैमाने पर फंड मुहैया करा रही है। 2023-24 के बजट में सरकार ने सार्वजनिक पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) के लिए 10 लाख करोड़ रुपए आवंटित किए हैं, जो जीडीपी का 3.3% होने के साथ अब तक का सर्वाधिक आवंटन है।

पूंजी निर्माण में आवंटन बढ़ाने के साथ ही सरकार निजी क्षेत्र से अपील कर रही है कि वह आगे आए और बढ़-चढ़ कर निवेश करे। बजट के बाद एक वेबिनार में प्रधानमंत्री ने भी ऐसा ही आह्वान किया। उन्होंने कहा कॉर्पोरेट कर में कटौती और कर अनुपालना में सुधार से प्रोत्साहित हो कर निजी क्षेत्रों को अर्थव्यवस्था में निवेश बढ़ाना चाहिए। करों की दर जहां एक महत्त्वपूर्ण कारक है, वहीं कंपनियों के निवेश निर्णयों में अन्य घटकों की भी भूमिका होती है।

नए निवेश मुख्यत: मौजूदा क्षमता व उसके उपयोग पर निर्भर करते हैं। अगर मौजूदा क्षमता का उपयोग नहीं हो पा रहा है तो निवेश के जरिये नई क्षमता बनाने का प्रोत्साहन नहीं मिलता। अगर क्षमता उपयोग अनुपात 75 प्रतिशत से अधिक है तो कम्पनियों द्वारा नए निवेश की संभावनाएं बनती हैं। इतिहास साक्षी है कि क्षमता उपयोग और निवेश एक-दूसरे से संबद्ध रहे हैं। उच्चतर क्षमता उपयोग के साथ ही जीएफसीएफ-जीडीपी समानुपात द्वारा मापी गई निवेश दर भी बढ़ती है। चूंकि 2012 से ही निवेश दर में गिरावट चल रही है, इस दौरान क्षमता उपयोग में भी गिरावट देखने को मिली। लॉकडाउन के दौरान क्षमता उपयोग और निवेश दर दोनों में तेज गिरावट आई। अब इसमें धीरे-धीरे सुधार हो रहा है। राहत की बात है कि जुलाई-सितंबर तिमाही के आंकड़ों के अनुसार क्षमता उपयोग 75 प्रतिशत के करीब पहुंचने को है। अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में 6.25 लाख करोड़ की नई परियोजनाएं घोषित की गईं, जो कि इससे पहले जुलाई-सितंबर तिमाही में 3.46 लाख करोड़ की घोषणाओं की तुलना में बड़ा उछाल है। हालांकि यह सकारात्मक बदलाव है, निजी निवेश बहाली के कुछ अन्य संकेतक मिले-जुले संकेत दे रहे हैं।

अप्रेल से नवंबर 2022 के दौरान मजबूत विस्तार के बावजूद इस अवधि के बाद से उद्योगों को जारी ऋण में गिरावट देखी गई है। इसका प्रमुख कारण बड़े उद्योगों को दिए जाने वाले ऋण में कटौती है। इसका मतलब यह है कि निजी पूंजीगत व्यय चक्र के पुन: सुचारु होने में कुछ और समय लगेगा। आधारभूत ढांचे के लिए ऋण देने की गति भी धीमी पड़ी है। जनवरी में यह 2.3% रही जबकि पिछले वर्ष यह 10.7% थी।

वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में उतार-चढ़ाव और असमान मांग निजी क्षेत्र की स्थायी रूप से बहाली के लिए जोखिम साबित हो सकती है। मांग में कमजोरी भी औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि को प्रभावित कर सकती है। अप्रेल से दिसंबर के बीच औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आइआइपी) के औसत पर आधारित अनुमान दर्शाता है कि औद्योगिक उत्पादन के सभी घटक कोविड पूर्व स्तर पर बहाल हो गए हों, ऐसा नहीं है। आइआइपी मैन्युफैक्चरिंग की 23 विस्तृत श्रेणियों में से 13 फिलहाल कमतर उत्पादन दर्शा रही हैं। इन श्रेणियों में उत्पादन स्तर कोविड पूर्व स्तर से भी नीचे है। यानी 2022-23 की अप्रेल-दिसंबर तिमाही में औसत आइआइपी 2019-20 के मुकाबले कम है। एक ओर जहां आइआइपी का संपूर्ण सूचकांक कोविड पूर्व स्तर से आगे निकल गया है, वहीं कुछ मुख्य उप क्षेत्र जैसे टेक्सटाइल क्षेत्र, परिधान व चमड़ा क्षेत्रों में अब भी मंदी है। ये श्रमशक्ति पर केंद्रित हैं और इसलिए इनका विकास अर्थव्यवस्था के मध्यावधि विकास के लिए महत्त्वपूर्ण है।

पिछले कुछ वर्षों से निजी कॉर्पोरेट क्षेत्र का निवेश जीडीपी के 11-12 प्रतिशत पर स्थिर बना हुआ है। करों में कटौती और सरकार द्वारा पूंजीगत व्यय को प्रोत्साहन कारगर साबित होंगे। साथ ही निजी निवेश चक्र को पुन: सुचारु बनाने के लिए स्थायी घरेलू व बाहरी नीतिगत माहौल, कम और स्थायी महंगाई दर, और उपभोग व मांग में निरंतर बहाली जरूरी है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *