सरकार, अब मैं अब बूढा हो गया हूं’ ..! डीपी यादव !
‘सरकार, अब मैं अब बूढा हो गया हूं’, कहानी उस डीपी यादव की जो कभी थे नेताजी की पहचान
कोई उन्हें बाहुबली कहता है तो कोई हीरो बताता है, लेकिन सार्वजनिक जीवन से सन्यास ले चुके डीपी यादव को कोई फर्क नहीं पड़ता. गाजियाबाद के राजनगर में वह आज भी बिन्दास जीवन जी रहे हैं. उन्हें बस एक ही चिंता है कि वह बी श्रेणी के हिस्ट्रीशीटर हैं.
बुजुर्ग ने कहा कि साहब मै डीपी यादव हूं तो अब चौंकने की बारी कप्तान की थी. तुरंत उन्होंने सिर ऊपर उठाया और चौंकते हुए बोले- आप… डीपी यादव! तब डीपी यादव ने दोहराते हुए कहा कि जी हां, मैं डीपी यादव ही हूं. अब बूढ़ा हो गया हूं. इसके बाद कप्तान ने उन्हें बैठने का इशारा किया. पूछा कि बताइए मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं. डीपी यादव ने कहा कि सरकार, मैं बूढ़ा हो गया हूं, सार्वजनिक जीवन से भी दूर हूं, लेकिन मेरी हिस्ट्रीशीट मुझे चैन से बैठने नहीं दे रही. साहब अब मेरे ऊपर कृपा करो और इसे बंद करा दो. कप्तान ने दो मिनट सोचा और फिर कहा कि आप तो बी श्रेणी के हिस्टीशीटर हैं. आपके खिलाफ संगीन मामले अब भी विचाराधीन हैं. अब तो आपकी हिस्ट्रीशीट तभी बंद होगी, जब आपकी सांसे थमेंगी.
डीपी को हीरो मानते हैं नोएडा के लोग
क्राइम सीरीज में हम आज उसी डीपी यादव की कहानी बताने जा रहे हैं, जिन्हें कुछ लोग नोएडा के हीरो बताते हैं तो कुछ लोग बाहुबली. लोग उन्हें चाहे जो कहें, डीपी यादव को ना तो पहले कभी फर्क पड़ा और ना ही उन्हें आज इससे कोई दिक्कत है. मूल रूप से नोएडा में सेक्टर 71 से लगे सरफाबाद गांव के रहने वाले डीपी यादव अब गाजियाबाद में पुलिस कमिश्नरेट के पीछे राजनगर में रहते हैं. सादगी ऐसी कि कोई आवाज भी लगाए तो वह बेधड़क और निडर भाव से बाहर निकल आते हैं. कोई उनसे मदद की अपेक्षा रखे तो वह कभी निराश नहीं करते.
शराब कारोबार से चमके
25 जुलाई 1948 को पैदा हुए डीपी यादव का वैसे तो पूरा नाम धर्मपाल यादव है, लेकिन इस नाम को उन्होंने उसी समय छोड़ दिया था, जब वह शराब के कारोबार में उतरे. 7 भाई और 3 बहनों में से एक डीपी यादव के पिता दिल्ली के जगदीश नगर में दूध का कारोबार करते थे. डीपी खुद साइकिल पर दूध की बाल्टी भरकर सरफाबाद से जगदीश नगर जाते थे. इस कारोबार में उन्हें कुछ ही दिन हुए थे कि शराब कारोबारी बाबू किसन लाल से मुलाकात हुई. यही वह दौर था, जब डीपी ने अपनी साइकिल और दूध की बाल्टी को फेंक कर शराब के कारोबार को अपना कदम रख दिया.
80 के दशक में दिग्गज कांग्रेसी नेता महेंद्र भाटी दादरी से विधायक थे. शराब के कारोबार के दौरान ही डीपी विधायक भाटी के संपर्क में आए. कहा जाता है कि डीपी यादव को राजनीति का ककहरा महेंद्र भाटी ने ही सिखाया था. लेकिन डीपी यादव का असली इस्तेमाल सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने किया. दरअसल मुलायम सिंह ने 1989 में जनता दल से अलग होकर अपनी पार्टी बनाई थी. लेकिन इस पार्टी के लिए उन्हें रसूख वाले नेताओं के साथ पैसे वाले नेताओं की जरूरत थी. उन दिनों शराब के कारोबार से डीपी यादव के पास बहुत पैसा आ गया था. ऐसे में मुलायम सिंह ने डीपी को बुलाकर सपा का जनरल सेक्रेटरी बना दिया.
कांग्रेस से शुरू की राजनीति
इसी बीच 1992 में महेंद्र सिंह भाटी की हत्या हो गई. आरोप डीपी पर था, बावजूद इसके मुलायम सिंह यादव ने 1993 के चुनाव में बुलंदशहर से टिकट देकर विधायक बना दिया. बाद में डीपी यादव का सपा से मोह भंग हो गया और उन्होंने मुलायम सिंह की साइकिल से उतर मायावती के हाथी पर सवार हो गए. फिर मायावती ने डीपी को राज्य सभा भेजा. कुछ दिन बसपा में रहने के बाद डीपी यहां से भी अलग हुए और अपनी पार्टी बनाकर चुनाव लड़े. लगातार दो चुनाव हारने के बाद अब वह राजनीति से सन्यास लेकर गृहस्थ जीवन बिता रहे हैं.
मरने के बाद बंद होती है बी श्रेणी की हिस्ट्रीशीट
बी श्रेणी के गैंगस्टर डीपी यादव के संबंध में एडिश्नल एसपी अभय मिश्रा कहते हैं भारतीय कानून व्यवस्था में अपराधियों को दो श्रेणी में बांटा गया है. जो छोटे मोटे अपराधी होते हैं, उन्हें ए श्रेणी का अपराधी कहते हैं. इसका मतलब यह है कि इनके सुधरने की संभावना है. इनकी हिस्ट्रीशीट आम तौर पर कप्तान खोलते और बंद करते हैं. लेकिन बी श्रेणी में जघन्य अपराध करने वाले बदमाशों को रखा जाता है. इस कैटेगरी के बदमाशों के बारे में माना जाता है कि इनके सुधरने की गुंजाइश ना के बराबर है.
इनकी हिस्ट्रीशीट आईजी या एडीजी रैंक के पुलिस अधिकारी खोलते हैं. वहीं इनकी हिस्ट्रीशीट को बंद करने का कोई विकलप नहीं होता. जब इस श्रेणी के अपराधियों की मौत होती है तो उनकी फाइल के साथ हिस्ट्रीशीट भी अपने आप बंद होती है. जहां तक डीपी यादव की बात है तो उनका नाम गाजियाबाद के कविनगर थाने के जघन्य अपराधियों में शामिल है. बी श्रेणी के अपराधियों में उनका नाम 69वें स्थान पर दर्ज है.
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कहानी उस IAS अधिकारी के बेटे की, जिसे बाहुबली की बेटी से प्यार हुआ तो उसे पेट्रोल डालकर जिंदा जला दिया
21 मार्च 2022, UP के बाराबंकी में 15 साल की लड़की की उसके पिता ने पीट-पीटकर हत्या कर दी। वजह सिर्फ इतनी थी कि लड़की फोन पर किसी से बात करती थी। 20 फरवरी 2022 को औरैया में चाचाओं ने मिलकर भतीजी की हत्या कर दी, क्योंकि वह एक लड़के से बात करती थी। मर्डर मिस्ट्री सीरीज की चौथी कहानी ऐसी ही है। बेटी की पसंद से अधिक अपनी इज्जत प्यारी हो गई और एक बाहुबली सांसद के बेटे ने बहन के प्रेमी को जलाकर मार दिया। आइए सीधे कहानी बताते हैं…
कॉलेज में पढ़ते-पढ़ते प्यार हो गया
2002 में नीतीश कटारा 25 साल के थे। पिता IAS अधिकारी थे। मां नौकरी में थी। परिवार में कई और लोग भी ‘ए’ ग्रेड की नौकरियों में थे। नीतीश का इंट्रेस्ट बिजनेस में था, इसलिए उसने गाजियाबाद के इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी से MBA कर लिया। यहीं, बाहुबली नेता धरमपाल उर्फ डीपी यादव की बेटी भारती यादव भी पढ़ती थी। दोनों में दोस्ती हुई और धीरे-धीरे यह दोस्ती प्यार में बदल गई।
घर पर महंगे गुलदस्ते आने से मां का ध्यान गया
नीतीश ने भारती से प्यार की बात अपनी मां नीलम कटारा को बताई, लेकिन नीलम ने बहुत ध्यान नहीं दिया। घर में भारती के भेजे गुलदस्ते आने लगे। पहले छोटे और फिर बड़े और बहुत मंहगे। साल 2001 के दिसंबर महीने में नीलम ने नीतीश से कहा- “तुम पूरी बात बताओ।” नीतीश ने कहा, “मम्मी मैं शादी के बारे में नहीं सोच रहा, लेकिन भारती के पापा उसके लिए लड़का ढूंढ रहे हैं, क्या आपका आशीर्वाद है हमारे साथ?”
नीलम ने बेटे के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, “वो अलग किस्म का परिवार है, भारती जितना पैसा फूलों के गुलदस्ते पर खर्च करती है उतनी तो तुम्हारी सैलरी भी नहीं है।”
नीतीश ने रोकते हुए कहा, “मम्मी वो ऐसी नहीं है, उसे हमारा परिवार पसंद है। उसके पापा उसके भाई-बहनों को कभी भी एक साथ चाट खिलाने नहीं ले गए।” इसके बाद नीलम ने कहा, “जब तुम्हें पसंद है तो ठीक है, हम बात करेंगे।” नीतीश ने जवाब दिया, “भारती भी भाइयों के विदेश चले जाने के बाद मार्च में पापा से बात करेगी।”
शादी फंक्शन में नीतीश पर पड़ी डीपी यादव के बेटे की नजर
16 फरवरी 2002, गाजियाबाद में डीपी यादव के एक खास रिलेटिव के घर शादी थी। डीपी यादव की तरफ से उनकी पत्नी उमलेश, बेटा विकास, भतीजा विशाल, बेटी भारती और उसकी बहन पहुंचे थे। नीतीश के परिवार को भी निमंत्रण मिला था, इसलिए वह भी आया। यहां पहली बार विकास और विशाल ने नीतीश को देखा था। विकास, विशाल और सुखदेव पहलवान शादी से बाहर निकले और शराब पी। तय किया कि आज नीतीश को छोड़ेंगे नहीं।
नीतीश पर पेट्रोल डालकर आग लगा दी
शराब पीने के बाद ये तीनों दोबारा शादी में पहुंचे और नीतीश को अपने साथ चलने को कहा। नीतीश भी बिना किसी झिझक के इनके साथ टाटा सफारी में बैठा और चल दिया। गाड़ी में बैठते ही नीतीश की पिटाई शुरू कर दी गई। उसे गाजियाबाद से 80 किमी दूर बुलंदशहर के खुर्जा गांव ले जाया गया। हाईवे से उतारकर पुल के नीचे ले गए। हथौड़े से बुरी तरह से पीटा और पेट्रोल डालकर आग लगा दी। इसके बाद वहां से भाग गए।
रात तीन बजे तक नीतीश घर नहीं पहुंचा तो मां को चिंता होने लगी। उन्होंने भारती को फोन लगाया और पूछा, “क्या नीतीश अभी शादी के फंक्शन में ही है? भारती ने जवाब दिया, “नहीं यहां तो नहीं है।” भारती के इतना जवाब देते ही नीलम ने फोन काटा और डीपी यादव को लगा दिया। फोन रिसीव नहीं हुआ। दूसरी तरफ भारती का दिमाग घूम गया। उसे एहसास हो गया कि कुछ गड़बड़ है उसने नीलम को फोन मिलाया और पुलिस में शिकायत दर्ज करने को कहा।
नीलम ने डीपी यादव के खिलाफ FIR दर्ज करवा दी
17 फरवरी की सुबह नीलम गाजियाबाद के कविनगर थाने पहुंची और डीपी यादव और उसके बेटे के खिलाफ FIR दर्ज करवाई। केस में बाहुबली नेता डीपी यादव का नाम था, इसलिए मीडिया में खबर छप गई। पुलिस डीपी के घर पहुंची तो विकास और विशाल गायब थे। शक बढ़ता गया। कई टीमें लग गईं। 20 फरवरी को खुर्जा गांव के एक व्यक्ति ने लावारिस लाश के बारे में बताया तो पूरी पुलिस फोर्स पहुंच गई।
लाश की हालात इतनी खराब थी की DNA से पहचान हो पाई
पुल के नीचे लाश उल्टी पड़ी थी। आधी जल चुकी थी। नीलम पहुंची और लाश देखा तो अचेत हो गई। छोटे बेटे ने संभाला। होश आया तो हाथ की अंगूठी से पहचान लिया कि वह नीतीश ही है, लेकिन पुलिस को इस पर भरोसा करने के लिए DNA टेस्ट करवाना पड़ा। मां-बेटे का DNA एक निकला। पुलिस ने गिरफ्तारी के लिए टीमें लगा दीं। जिस दिन लाश मिली उसी दिन डीपी यादव ने भारती को लंदन भेज दिया। जरूरी सबूत मिटाने की कोशिश की।
विकास और विशाल ने पहले स्वीकारा फिर पलट गए
विकास और विशाल यादव बचने के लिए भागते-भागते MP पहुंच गए। 23 फरवरी 2002 को पुलिस ने दोनों को ग्वालियर के डबरा स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया। 25 फरवरी को इन दोनों का बयान दर्ज किया गया। इस दौरान दोनों ने हत्या की बात कबूल ली। इन्हें गाजियाबाद की CJM कोर्ट में पेश किया गया। दोनों वहां पलट गए। कहा, हमने कोई हत्या नहीं की। जबकि, पुलिस ने जो पूछताछ पहले की थी उसकी रिकॉर्डिंग थी, लेकिन वह सामने नहीं आई। एक चैनल ने इसे चलाया था फिर उसे डीपी यादव ने धमकाया और फिर यह दोबारा नहीं चली।
डीपी यादव ने कोर्ट को तमाशा बनाकर रख दिया
गाजियाबाद की CJM कोर्ट में केस शुरू हुआ, लेकिन कोर्ट और पुलिस का रवैया ऐसा था कि जांच ही थम गई। डीपी यादव का रसूख इतना था कि दो साल के अंदर छोटी-छोटी बातों पर विकास को 66 बार बेल मिली। कोर्ट भारती को आदेश देता इधर से कोई बहाना रख दिया जाता। एक बार तो कह दिया कि भारती कहां है उसकी जानकारी घर में किसी को नहीं है। नीलम ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके केस को UP से बाहर किसी कोर्ट में भेजने की मांग की। कोर्ट ने बात मानी और केस को दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ट्रांसफर कर दिया।
नीतीश के भाई को जहर देकर मारने की कोशिश
भारती को लेकर जारी आनाकानी पर कोर्ट ने पेश न होने पर पासपोर्ट रद्द करने की बात कही। अगर ऐसा होता तो भारती को लंदन से गिरफ्तार करके कोर्ट में पेश करना पड़ता, लेकिन इसके पहले ही भारती कोर्ट में पेश हुई। 29 और 30 अप्रैल 2006 को उनका बयान दर्ज हुआ। दूसरी तरफ नीलम को लगातार फोन पर केस वापस लेने की धमकियां मिलती रहीं। दूसरे बेटे नितिन को जहर देकर मारने का प्रयास हुआ, लेकिन नीलम कमजोर नहीं पड़ीं और लगातार लड़ाई लड़ती रहीं।
कोर्ट ने 6 साल बाद न्याय किया
30 मई 2008 को लोअर कोर्ट ने विशाल, विकास और सुखदेव पहलवान को उम्रकैद की सजा सुनाई। डीपी यादव का परिवार इस फैसले के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट चला गया। 2 अप्रैल 2014 को दिल्ली हाई कोर्ट ने लोअर कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। नीलम कटारा इस फैसले से खुश नहीं थीं, वह चाहती थी कि फांसी हो। इसलिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। लोअर कोर्ट और दिल्ली हाई कोर्ट ने इसे ऑनर किलिंग माना था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे मानने से इंकार कर दिया, लेकिन सजा को बढ़ाकर विकास और विशाल को 25-25 साल और सुखदेव को 20 साल की सजा सुनाई।
डीपी यादव के लाड़-प्यार ने बेटे को बर्बाद कर दिया
इसी केस से जुड़े एक सिपाही ने कभी बताया था कि मैने विकास यादव से बात की थी। वह फर्राटेदार अंग्रेजी बोलता था। सिंसियर लड़का था। अपराध के बाद उसके चेहरे पर चिंता साफ नजर आ रही थी। उसने कहा था, “मुझे अच्छी परवरिश मिलती तो पुलिस कस्टडी में नहीं होता। सब कुछ आसपास देखा और उसी तरह से हो गया। अब पछतावा होता है।”
फैसले के बाद नीलम ने जो कहा वह प्रेरणा देता है, “मै कोर्ट की कोई सुनवाई मिस नहीं करना चाहती थी, लगता था कि कौन क्या कह देगा. आज लगता है कि न्याय के लिए इतने लंबे वक्त तक कैसे लड़ा जा सकता है। हर किसी में इतना पागलपन नहीं होता न।”