महज 15 फीसदी को पता- देहदान क्या होता ..!
महज 15 फीसदी को पता- देहदान क्या होता ……
एक डेड बॉडी बचाए 8 की जान, मेडिकल रिसर्च में सबसे ज्यादा डिमांड …
जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर नए वस्त्र धारण करता है, उसी प्रकार आत्मा पुराने तथा व्यर्थ शरीर को त्याग कर नया शरीर धारण करती है।
मतलब साफ है कि जिस शरीर पर हम जीवन भर गुमान करते हैं। दरअसल वह एक कपड़ा पहनने से ज्यादा कुछ नहीं है।
हाल ही में मुंबई की लीला आडवाणी की 99 की उम्र में मृत्यु हुई। वह अपनी मृत्यु से पहले अपनी बॉडी मेडिकल एजुकेशन के लिए दान कर चुकी थीं। चूंकि वह खुद एक डॉक्टर थीं तो उन्हें पता था कि बॉडी के कई ऑर्गन भले ही काम के न रह गए हों। पर बॉडी मेडिकल रिसर्च के लिए बेहद कीमती है।
परिवार ने लीला आडवाणी की बॉडी मुंबई के किंग एडवर्ड मेमोरियल हॉस्पिटल (KEM) को सौंप दी और अब यह परिवार दूसरों को भी बॉडी डोनेशन के लिए जागरूक कर रहा है।
लीला आडवाणी की बेटी अरूणा कहती हैं कि मेरी मम्मी हमेशा डोनर रहीं और उन्हें किसी भी चीज को वेस्ट करना पसंद नहीं था। मुझे लगता है कि यही उनकी फिलॉसफी थी और इसी वजह से उन्होंने केईएम हॉस्पिटल में अपनी बॉडी डोनेट की।
लिविंग ऑर्गन और बॉडी डोनेशन में महिलाएं आगे
जिस तरह से भारत में महिलाएं सबसे ज्यादा अंगदान करती हैं वैसे ही वे बॉडी डोनेशन में भी पीछे नहीं हैं। ग्लोबल हॉस्पिटल, परेल के एक सर्वे में पता चला है कि पिछले 20 साल जीवित डोनर्स में महिलाओं की संख्या 75-80 प्रतिशत है। जबकि देश में हुए 12,625 ट्रांसप्लांट्स में से 72.5% ट्रांसप्लांट्स पुरुषों में हुए।
दुनिया में ट्रांसप्लांट के मामले में अमेरिका के बाद भारत दूसरे नंबर पर है लेकिन ऑर्गन डोनेशन और बॉडी डोनेशन के मामले में भारत बहुत पीछे है।
देश में बॉडी डोनेशन के कुछ खास नियम हैं जिन्हें ग्रैफिक्स के जरिए समझते चलिए-
‘ब्रेन डेड वुमन बॉडी’ से दिया जाएगा बच्चे को जन्म
हाल ही में यूनिवर्सिटी ऑफ ओस्लो की डायरेक्टर ऑफ फिलोसोफी एन्ना समेडोर का एक रिसर्च पेपर थियोरिटकल मेडिसिन एंड बायोटिक्स जनरल में प्रकाशित हुआ। इसमें ब्रेन डेड महिला के शरीर के जरिए बच्चों को जन्म देने के कॉन्सेप्ट को हकीकत में बदलने की बात कही गई है। दरअसल, ब्रेन डेड महिला को सरोगेसी मदर के रूप में कन्वर्ट किया जा सकता है। इस कॉन्सेप्ट को ‘होल बॉडी जेस्टेशनल डोनेशन’ नाम दिया गया है।
‘होल बॉडी जेस्टेशनल डोनेशन’ अपने गर्भ को डोनेट करने का बिल्कुल वैसा ही तरीका होगा जैसे लोग मरने के बाद अपना शरीर दान करते हैं। इस प्रोसेस में कोई भी महिला अपने जीवित रहते हुए ये कंसेंट साइन कर सकती है कि किसी भी सिचुएशन में अगर वो ब्रेन डेड हो जाती है, तो उसके गर्भाशय का इस्तेमाल बच्चे को जन्म देने के लिए किया जा सकता है। यानी वह ब्रेन डेड होने के बाद भी नि:संतान दंपतियों के लिए एक उम्मीद बनकर उभर सकती है।
रिसर्च के लिए डेड बॉडीज मिलने में आ रही दिक्कतें
आमतौर पर मेडिकल रिसर्च के लिए डेड बॉडी का बड़ा सोर्स पुलिस को मिली लावारिस लाशें होती हैं जिनका कोई दावेदार नहीं होता। हालांकि, आजकल आधारकार्ड जैसे पहचान पत्रों और डेटाबेस के आने से लावारिस डेड बॉडी की पहचान करना आसान हो गया है। इस वजह से मेडिकल रिसर्च के लिए डेड बॉडीज मिलने में गिरावट आई है।
मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) के मुताबिक, मेडिकल कॉलेज में हर 10 एमबीबीएस स्टूडेंट को रिसर्च के लिए 1 डेड बॉडी दी जानी जरूरी है।
जीएस मेडिकल कॉलेज और केईएम हॉस्पिटल स्थित एनाटॉमी डिपार्टमेंट में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अभिजीत ढेंडे बताते हैं कि 2015 में मेडिकल रिसर्च के लिए आईं 52 में से 36 डेड बॉडीज लावारिस थीं। जबकि 2023 में अभी तक केवल 11 डेड बॉडीज रिसर्च के लिए मिली हैं और उनमें से महज 2 डेड बॉडी ऐसी हैं जिनका कोई दावेदार नहीं है।
पिछले साल 20 डेड बॉडीज मेडिकल रिसर्च के लिए मिलीं जिनमें से महज 4 लावारिस थीं। इस वजह से मेडिकल रिसर्च के लिए डेड बॉडी मिलना मुश्किल होता जा रहा है।
हालांकि लोगों में स्वेच्छा से बॉडी डोनेशन को लेकर जागरुकता बढ़ रही है फिर भी यह बहुत बड़े पैमाने पर नहीं है।
यहां ग्रैफिक्स के जरिए यह भी जान लीजिए कि डेड बॉडी कैसे प्रिजर्व की जाती है
पूरे देश में मेडिकल रिसर्च के लिए 1000 डेड बॉडी होतीं डोनेट
नेशनल ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइजेशन (NOTTO) के मुताबिक, 2022 में देश में कुल 904 डेड बॉडीज डोनेट की गईं। जबकि 2016 ही ऐसा साल है जब सबसे ज्यादा 930 डेड बॉडीज डोनेट हुई थीं। बाकी साल में यह आंकड़ा कभी भी 875 से ऊपर नहीं गया।
एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, 2004 में कुल लावारिस डेड बॉडीज की संख्या करीब 37 हजार थी। वर्ष 2013 में यह संख्या थोड़ी सी बढ़कर करीब 38 हजार हुई। मगर बीते 6 वर्षों में लावारिस डेड बॉडीज की संख्या औसतन 37 हजार रही है। इससे पता चलता है कि भरत में हर रोज 102 डेड बॉडीज ऐसी मिलती हैं जिनका कोई दावेदार नहीं होता है।
रिश्तेदार न आने पर 72 घंटे बाद अंतिम संस्कार कर देती है पुलिस
एम्स, नई दिल्ली में मेडिसिन डिपार्टमेंट में डॉ. रह चुके डाॅ. रविकांत चतुर्वेदी के मुताबिक, हॉस्पिटल, जेल या पब्लिक प्लेस पर मरने वाला ऐसा व्यक्ति जिसका 48 घंटे में कोई दावेदार सामने नहीं आता, उसे अनक्लेंम्ड डेड बॉडी की कैटेगरी में रखा जाता है। दावेदारों में करीबी रिश्तेदार या फिर नजदीकी दोस्त शामिल होते हैं। आमतौर पर ऐसी डेड बॉडी को पुलिस 72 घंटों के बाद डिस्पोज कर देती है।
देश में हर साल मिल रहीं 36 हजार लावारिस डेड बॉडीज
- 2013-15 के बीच देश में 1 लाख से ज्यादा लावारिस डेड बॉडी मिलीं।
- देश भर में हर साल करीब 36 हजार बॉडीज लावारिस मिलती हैं।
- दिल्ली में 2015-20 के दौरान 21,900 लावारिस डेड बॉडी मिलीं।
- हर साल दिल्ली में 4,380 लावारिस डेड बॉडी मिलती हैं।
सोर्स: नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB)
15 फीसदी लोग ही जानते- देहदान और अंग दान क्या है?
अंगदान और देहदान को लेकर बीते साल 2022 में सीवोटर ने एक सर्वे किया। इस सर्वे में पाया गया कि 85 फीसदी से अधिक लोगों को यह पता ही नहीं कि किडनी, लिवर, हार्ट, लंग्स और आंखें ही नहीं पूरी डेड बॉडी डोनेट की जा सकती है।
‘दधीचि देहदान समिति’ के अध्यक्ष हर्ष मल्होत्रा के मुताबिक, इस समय सरकार, सोशल ग्रुप और आम लोगों को एक साथ आने की जरूरत है। ताकि अंग दान को लेकर देशभर में जागरुकता फैलाई जा सके। इससे कई लोगों के अनमोल जीवन को बचाया जा सकता है।
भारत में देहदान से कतराते क्यों हैं लोग
भारत जैसे देश में बॉडी डोनेशन को लेकर दो तरह की धारणाएं देखी जाती हैं। पहली है धार्मिक और दूसरी रूढ़िवादी सोच। लोग कहते हैं कि मिट्टी खराब न करो, शरीर का अंतिम संस्कार उसके पूरे रूप में हो। यह भी एक कारण है कि लोग असमय मौत होने पर पोस्टमार्टम करवाने से कतराते हैं।
हालांकि जैन समुदाय के लोग डेड बॉडी डोनेशन में किसी तरह की धार्मिक अड़चन को नहीं मानते।
डेड बॉडी डोनेशन से पहले रीति रिवाज निभाने का भी मिलता मौका
ज्यादातर धर्मों में मौत के बाद डेड बॉडी का अपने रीति-रिवाज से अंतिम संस्कार करने की परंपरा है। इसे देखते हुए देश के कई मेडिकल कॉलेजों के एनाॅटोमी विभाग में डेड बॉडी डोनेशन से पहले अंतिम संस्कार की परिजनों की इच्छा भी पूरी की जा रही है। इसके लिए सभी धर्मों के धर्मगुरुओं के साथ करार भी किया हुआ है। ये धर्मगुरु एनाॅटोमी विभाग में ही व्यापक पाठ-पूजा, यज्ञ और प्रतीकात्मक रूप से फूल चुनने जैसी परंपराओं का निर्वहन कराते हैं। लखनऊ के छत्रपति साहू जी महाराज का एनाॅटोमी विभाग अपने स्थापना दिवस पर हर वर्ष डेड बॉडी डोनेट करने वाले परिवारों को बुलाकर सम्मानित करता है।
जानिए बॉडी डोनेट करने की सही उम्र
दिल्ली स्थित गंगाराम हॉस्पिटल की वेबसाइट से मिली जानकारी के मुताबिक, 18 वर्ष से ऊपर की उम्र का कोई भी व्यक्ति बॉडी डोनेट कर सकता है। इससे कम उम्र के किसी भी व्यक्ति के अंगों को दान करने की इच्छा की स्थिति में उसके माता-पिता की सहमति की जरूरत होगी।
तिरुवनंतपुरम मेडिकल कॉलेज ने डेड बॉडी से कमाए 6.4 लाख
आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक, बीते साल केरल में प्राइवेट मेडिकल कॉलेज को रिसर्च के लिए डेड बॉडी देकर एक सरकारी मेडिकल कॉलेज ने 6.4 लाख रुपए कमाए। तिरुवनंतपुरम मेडिकल कॉलेज को कुल 64 लावारिस डेड बॉडीज मिली थीं। इस कॉलेज ने 2017 से 2021 के बीच 16 डेड बॉडीज प्राइवेट मेडिकल और डेंटल कॉलेज को बेची। इसके लिए मेडिकल कॉलेज ने 40 हजार रुपए हर डेड बॉडीज के हिसाब से लिए।
डेड बॉडीज की रिसर्च के लिए डिमांड हमारे देश में ही नहीं विदेशों में भी है। हालांकि, रिसर्च के नाम पर दान में मिली डेड बॉडी और चोरीछिपे उसी डेड बॉडी के जरिए अंगों का कारोबार भी कुछ अलग ही गुल खिला रहा है। पिछले दिनों यह खुलासा एक मीडिया रिपोर्ट में हुआ।
रिसर्च के लिए दान में मिले शव के अंग ऑनलाइन बेच दिए गए
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल की मोर्चरी में मैनेजर सेड्रिक लॉज ने 2018 से 2022 के बीच अपनी पत्नी डेनिश लॉज के साथ मिलकर डेड बॉडीज के पार्ट्स चुराता। यहां पूरे अमेरिका से दान किए मुर्दों को लाया जाता था।
बॉडी पार्ट्स को पति-पत्नी ऑनलाइन बेचते थे। देश भर में उनका नेटवर्क फैला हुआ था। रिपोर्ट्स के मुताबिक मुर्दों के अंग को चुराने का यह काम कई सालों से चल रहा था।
बॉडी डोनेशन के अलावा किडनी, लिवर और कॉर्निया की डिमांड
दधिची देहदान समिति की वाइस प्रेसिडेंट रेखा गुप्ता के मुताबिक, आमतौर पर शरीर के किसी भी हिस्से को डोनेट किया जा सकता है। बशर्ते वे दानदाता के जीवन को प्रभावित न करें तथा वे हिस्से किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित न हों।
हालांकि शरीर के किडनी, लिवर का कुछ पार्ट और कॉर्निया की ज्यादा मांग होती है। ब्रेन डेड होने पर शरीर के सारे अंग दान किए जा सकते हैं। शरीर के मृत होने पर तीन घंटे में आंख का कॉर्निया डोनेट हो सकता है। 8 ऐसे अहम अंग हैं, जिन्हें मृत्यु के तीन घंटे के अंदर डोनेशन सेंटर को दिया जा सकता है।
डेड बॉडी के लिए एक आदमी ने किए 15 मर्डर, अमेरिका में बना पहला कानून
अमेरिका में 1800 के आसपास मेडिकल कॉलेज में रिसर्च के लिए बहुत मुश्किल से डेड बॉडीज मिलती थीं। इस वजह से मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल रिसर्च के लिए डेड बॉडीज ऊंचे दाम पर खरीदते। तब ऐसे मौके को भुनाने के लिए कई लोग क्राइम तक कर बैठते थे। एक व्यक्ति ने तो बॉडी बेचने के लिए 15 मर्डर कर दिए थे। इस वजह से 1832 में बॉडी डोनेशन को लेकर अमेरिका में पहली बार सख्त कानून बना।
इस कानून के जरिए अनक्लेम्ड बॉडी अस्पताल को देने की इजाजत दी गई ताकि मेडिकल की पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स को प्रैक्टिकल करने में सुविधा हो।
48 घंटे बाद काम की नहीं रह जाती लावारिस डेड बॉडी
राजस्थान में डिप्टी सीएमओ रहे डॉ.एमएस चौहान के मुताबिक, लावारिस स्थिति में मिलने वाले शवों के परिवार वालों का 48 घंटे तक इंतजार किया जाता है। तब तक बॉडी खराब होने से स्टूडेंट्स के काम की नहीं रहती।
वहीं, पोस्टमार्टम होने पर शरीर कई जगह से खुल जाता है, ऐसे में शरीर में कोई भी दवा नहीं रुकती। बिना पोस्टमार्टम मृत देह एनाॅटोमी डिपार्टमेंट में रसायनों के जरिए वर्षों तक सुरक्षित रखी जा सकती है, लेकिन पोस्टमार्टम के बाद डेड बॉडी एक महीने तक भी सुरक्षित नहीं रखी जा सकती।