उच्च शिक्षा में फर्जीवाड़े की चिंताजनक तस्वीर !
हो सकता है मैं आपके विचारों से सहमत न हो पाऊं फिर भी विचार प्रकट करने के आपके अधिकारों की रक्षा करूंगा …
हैरत की बात यह है कि न तो सरकारों के पास और न ही यूजीसी जैसी संस्था के पास ऐसा कोई तंत्र है जिसके जरिए समय रहते विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों को फर्जीवाड़े का शिकार होने से बचाया जा सके। स्वाभाविक तौर पर यूजीसी के पास इसकी भी कोई जानकारी नहीं है कि ये फर्जी विश्वविद्यालय कितने लम्बे समय से अस्तित्व में थे। विश्वविद्यालय स्तर के शिक्षण संस्थानों में करोड़ों-अरबों के आधारभूत ढांचे और अन्य संसाधन जुटाने की जरूरत होती है। इनका बाकायदा प्रचार-प्रसार भी होता है, और तब जाकर ही इनमें कोई दाखिला लेने की सोचता है। अपनी चमक-दमक वाली वेबसाइट और सोशल मीडिया पर आकर्षक तरीके से प्रचार करने वाले इन संस्थानों को हर कोई एक बारगी तो असली मानने की गलती कर सकता है। पहले कदम पर ही फर्जी संस्थाओं की पहचान नहीं हो पाए तो इसे यूजीसी और संबंधित राज्य सरकार की बड़ी नाकामी ही कहना चाहिए। इस नाकामी की कीमत चुकाने वाले छात्रों की संख्या भी हजारों में ही होगी। अपना कीमती समय और धन, और इन सबसे ज्यादा अपना पूरा भविष्य उन डिग्रियों को लेने में बर्बाद कर दिया होगा, जिनकी कोई कीमत नहीं है। गंभीर बात यह है कि यूजीसी के रवैये से कहीं परिलक्षित नहीं होता कि उसे इसका अहसास भी है कि विद्यार्थियों ने क्या-कुछ खो दिया है। सिर्फ यह कहते हुए पल्ला झाड़ लिया कि फर्जी विश्वविद्यालयों की डिग्रियों से न आगे पढ़ाई की जा सकेगी और न ही ऐसी डिग्रियां किसी रोजगार के लिए मान्य होंगी।
दरअसल, फर्जी विश्वविद्यालयों के खिलाफ पुख्ता कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित करने के प्रयास भी प्रभावी नहीं होते। बीते साल 21 विश्वविद्यालय फर्जी मिले थे। इस बार 20 की सूची है। यूजीसी को समझना होगा कि सख्त कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित नहीं की गई तो यह सिलसिला रुकने वाला नहीं है। छात्रों का भविष्य बर्बाद होने से रोकने के लिए हर संभव उपाय करना होगा। सार्थकता तभी है, जब ऐसे फर्जीवाड़े को पनपने ही नहीं दिया जाए।