क्या हैं जेनेरिक दवाएं, ये ब्रांडेड दवाओं से महंगी होती हैं या सस्ती?

क्या हैं जेनेरिक दवाएं, ये ब्रांडेड दवाओं से महंगी होती हैं या सस्ती? यहां जानें पूरी डिटेल …

 नेशनल मेडिकल कमीशन ने जेनेरिक दवाओं को बढ़ावा देने के लिए एक नया नियम जारी किया है. इसके तहत अब रजिस्टर्ड डॉक्टरों को मरीजों के लिए जेनेरिक दवाएं लिखनी होगी. अगर कोई डॉक्टर इस नियम का पालन नहीं करेगा तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का प्रावधान बनाया गया है.

बीते कुछ सालों से भारत में बीमारियों का बोझ बढ़ रहा है. बीमारी के इलाज में दवाओं की खपत में भी इजाफा हो रहा है. कई दवाएं काफी महंगी भी होती हैं, जिनका सीधा असर मरीज की जेब पर पड़ता है. अगर परिवार में एक व्यक्ति भी बीमार हो गया है तो पूरे घर का ही बजट बिगड़ जाता है. ऐसे में दवाओं पर होने वाले खर्च को कम करने के लिए हाल ही में नेशनल मेडिकल कमीशन ने एक नया नियम जारी किया है. इसके मुताबिक, अब डॉक्टरों को मरीजों के प्रिस्क्रिप्शन में जेनेरिक दवाओं को लिखना होगा. अगर डॉक्टर ऐसा नहीं करते हैं तो उनके खिलाफ एक्शन लिया जा सकता है. कुछ मामलों में लाइसेंस रद्द करने की कार्रवाई भी की जा सकती है.

कोई भी दवा कंपनी किसी भी बीमारी के इलाज के लिए दवाएं बनाती हैं. दवा बनाने से पहले इसपर काफी रिसर्च की जाती है. स्टडी के बाद दवा में डालने के लिए रसायन तैयार किए जाते हैं. मेडिकल की भाषा में रसायन को सॉल्ट कहा जाता है. इन सॉल्ट को कैप्सूल या गोली में डालकर दवा तैयार की जाती है. इन दवाओं को बाजार में अलग-अलग कीमतों पर बेचा जाता है. भले ही दवाओं में सॉल्ट एक ही हो, लेकिन अगर उसको किसी बड़े ब्रांड ने बनाया है तो कीमत ज्यादा होगी. मरीजों के लिए जेनेरिक सॉल्ट की मेडिसिन भी तैयार की जाती हैं. इनमें अधिकतर दवाओं में सॉल्ट ब्रांडेड दवाओं के जैसे ही होते हैं. लेकिन लोग दवा खरीदते समय ब्रांड देखते हैं सॉल्ट की जानकारी नहीं होती है.

जेनेरिक और ब्रांडेड दवा का फर्क

किसी दवा को कोई बड़ी कंपनी बना रही है तो ये ब्रांडेड बन जाती है, लेकिन इसी दवा को किसी छोटी कंपनी और हल्के ब्रांड ने बनाया है तो ये जेनेरिक कहलाती है. दोनों ही मामलों में दवा में एक ही तरह के सॉल्ट और केमिकल होते हैं, लेकिन ये बिकती अलग- अलग कीमतों पर है. ब्रांडेड दवा जेनेरिक की तुलना में कई गुना महंगी होती है.

उदाहरण के तौर पर अलग पैरासिटामोल सॉल्ट को कंपनी इसी नाम से बाजार में बेचती है तो ये जेनेरिक दवा होती है, लेकिन अगर कोई बड़ी दवा कंपनी इस सॉल्ट को अपने ब्रांड के नाम से बेचेगी तो ये ब्रांडेड दवा बन जाएगी. भले ही उसमें सॉल्ट एक ही है, लेकिन किसी दवा के साथ ब्रांड जुड़ने से उसकी कीमत बढ़ जाती है. चूंकि ब्रांडेड दवा की प्रमोशन और मार्केटिंग में पैसा खर्च होता है तो इनकी कीमत भी जेनेरिक की तुलना में काफी अधिक होती है.

क्या हैं जेनेरिक दवाओं के फायदे

दिल्ली में वरिष्ठ फिजिशियन डॉ. कवलजीत सिंह बताते हैं कि जेनेरिक दवाओं में भी ब्रांडेड दवा के ही सॉल्ट होते हैं. ऐसे में अगर आपको डॉक्टर ने कोई ब्रांडेड दवा लिखी है तो अब उसके सॉल्ट चेक कर लें. अगर यही कंपोजिशन आपको जेनेरिक दवाओं में भी मिल रहा है तो उसे खरीद सकते हैं. जेनेरिक दवा ब्रांडेड की तुलना में 50 फीसदी तक भी सस्ती हो सकती है. चूंकि जेनेरिक दवाओं का प्रचार नहीं होता है तो लोगों को इनके बारे में जानकारी नहीं होती, लेकिन लोगों को सलाह है कि वे दवा खरीदते समय ब्रांड पर नहीं सॉल्ट पर ध्यान दें.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *