देश का पहला विश्वविद्यालय, जहां खुला हिंदी विभाग ?

देश का पहला विश्वविद्यालय, जहां खुला हिंदी विभाग …! हिंदी में BHU को ‘भारत का कैंब्रिज’ मानते थे नामवर सिंह; साल 1920 में बनी ग्लोबल भाषा

यह तस्वीर आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की पौत्री डॉ. मुक्ता ने दी है। साल 1933 में प्रसाद परिषद की साहित्यिक संगोष्ठी की है।

यह तस्वीर साल 1994 की है। सुप्रसिद्ध साहित्यकार नामवर सिंह आचार्य रामचंद्र शुक्ल की पौत्री डॉ. मुक्ता और उनके परिवार के साथ किताब का अनावरण करते हुए।
यह तस्वीर साल 1994 की है। सुप्रसिद्ध साहित्यकार नामवर सिंह आचार्य रामचंद्र शुक्ल की पौत्री डॉ. मुक्ता और उनके परिवार के साथ किताब का अनावरण करते हुए।

हिंदी में पोस्ट ग्रेजुएशन कोर्स की शुरुआत करने वाला पहला विश्वविद्यालय भी BHU बना। हिंदी को ग्लोबल भाषा का दर्जा दिलाने में यहां के शिक्षक आचार्य रामचंद्र शुक्ल, संस्थापक भारतरत्न पंडित मदन मोहन मालवीय और आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का बहुत बड़ा रोल था।

BHU में हिंदी के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. सदानंद शाही ने बताया कि देश में पहली बार हिंदी आलोचना की शुरुआत यहीं से हुई। नामवर सिंह बीएचयू को भारत का कैंब्रिज मानते थे। कहते थे कि कैंब्रिज में चार बड़े आलोचक हुए- आईए रिचर्ड्स, FR लीविस, विलियम एम्पसन और रेमंड विलियम्स। BHU के तीन आलोचकों का नाम मैं ले सकता हूं- रामचंद्र शुक्ल, नंददुलारे वाजपेयी और हजारी प्रसाद द्विवेदी। रामस्वरूप चतुर्वेदी ने जब काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग को “हिंदी आलोचना का गुरुकुल” कहा।

31 दिसंबर 1905 को मदन मोहन मालवीय ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में विज्ञान और तकनीकी को हिंदी में पढ़ाने की बात कही थी।
31 दिसंबर 1905 को मदन मोहन मालवीय ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में विज्ञान और तकनीकी को हिंदी में पढ़ाने की बात कही थी।

पंडित मालवीय ने कोर्ट में हिंदी को दिलाया दर्जा

BHU के पूर्व कार्यविशेष अधिकारी डॉ. विश्वनाथ पांडेय के मुताबिक, 1893 से लेकर 1903 तक महामना मदन मोहन मालवीय कोर्ट की भाषा हिंदी करने की लड़ाई लड़ते रहे। 1903 में उन्हीं की बदौलत काेर्ट में अंग्रेजी और उर्दू के साथ हिंदी को भी शामिल कर लिया गया।

इसके बाद जब BHU का पहला प्रस्ताव 1905 में कांग्रेस के बनारस अधिवेशन में महामना मदन मोहन मालवीय ने प्रस्तुत किया तो, विज्ञान और तकनीक की शिक्षा भारतीय भाषाओं में कराने की बता कही थी। 1920 में बनारस के एक साहित्य सम्मेलन में उन्होंने कहा था कि हिंदी की जननी कही जाने वाली संस्कृत भाषा का शब्द भंडार दुनिया के हर भाषाओं से बड़ा है। हम यह कैसे कह सकते हैं कि हिंदी इंजीनियरिंग और आधुनिक विज्ञान के लिए अयोग्य है।

BHU के हिंदी विभाग में आचार्य रामचंद्र शुक्ल अपनी कुर्सी के साथ। यह तस्वीर आचार्य की पौत्री डॉ. मुक्ता ने उपलब्ध कराई है।
BHU के हिंदी विभाग में आचार्य रामचंद्र शुक्ल अपनी कुर्सी के साथ। यह तस्वीर आचार्य की पौत्री डॉ. मुक्ता ने उपलब्ध कराई है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने बीएचयू के लिए छोड़ा अलवर राज दरबार

चिथड़े लपेटे चने चाबेंगे चौखट चढ़ि, चाकरी न करेंगे ऐसे चौपट चांडाल की। ये लाइन बीएचयू के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष आचार्य रामचंद्र शुक्ल के हैं।​​ ये उन्होंने राजस्थान के अलवर राज के लिए बोली थी। रात को 12 बजे अलवर राजा ने आचार्य शुक्ल को जगाकर ‘खेहर’ शब्द का अर्थ पूछा, उन्होंने अर्थ बताया और अगले दिन वापस काशी आ गए। राजा ने अपने सचिव को बनारस भेजा। शुक्ल जी को वापस अलवर आने का आग्रह किया। मगर, उन्होंने इंकार करते हुए ऊपर वाला काब्य लिख कर भेजा था।

बीएचयू के हिंदी विभाग में लगी आचार्य रामचंद्र शुक्ल की तस्वीर।
बीएचयू के हिंदी विभाग में लगी आचार्य रामचंद्र शुक्ल की तस्वीर।

1905 में तैयार किया पहला शब्दकोष

आचार्य शुक्ल ने हिंदी की आम बोलचाल भाषा का एक विशाल शब्दकोष ‘हिंदी शब्द सागर’ तैयार किया किया था। यह पढ़ बीएचयू संस्थापक मालवीय जी ने 1919 में आचार्य को हिंदी का प्रोफेसर नियुक्त कर दिया। लेकिन, 5 साल काम करने के बाद अलवर राजा ने 1924 में अधिक वेतन पर शुक्ल जी को आमंत्रित किया। आर्थिक स्थिति से जूझ रहे आचार्य ले प्रस्ताव स्वीकार किया। जाते वक्त मालवीय जी ने उनसे कहा कि आपको जाएं, मगर न तो तुम्हे अलवर पसंद आएगा और न ही अलवर को तुम। बस तीन रूकने के बाद उनका मन दुखी हो गया और बीएचयू में आकर अपनी जिम्मेदारी संभाल ली।

बीएचयू के हिंदी विभाग में रखी आचार्य रामचंद्र शुक्ल की कुर्सी आज भी सुरक्षित है।
बीएचयू के हिंदी विभाग में रखी आचार्य रामचंद्र शुक्ल की कुर्सी आज भी सुरक्षित है।

एलीट लोगों की भाषा बनी हिंदी

रामचंद्र शुक्ल 1905 में काशी नागरी प्रचारिणी सभा में ‘हिंदी शब्द सागर’ का निर्माण किया। काशी के लोगों द्वारा आम बोलचाल के शब्दों को इकट्‌ठा कर विशाल शब्दकोश (शब्द सागर) तैयार किया। हिंदी को गरीबों-मजलूमों से ऊपर उठाकर एलीट लोगों का भाषा बना दिया। एकेडमिक जगत में प्रेमचंद और भारतेंदु की रचनाओं को जगह दिलाया। बीएचयू के सिलेबस में उन्हें शामिल किया। आचार्य शुक्ल की पौत्री डॉ. मुक्ता ने बताया कि पंडित मदन मोहन मालवीय ने उनकी यह प्रतिभा देख 1919 में ही काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी का प्रोफेसर बनाया।

बीएचयू में छात्रों से मुलाकात के दौरान आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी।
बीएचयू में छात्रों से मुलाकात के दौरान आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी।

पंडित हजारी प्रसाद द्विवेदी ने बीएचयू में जीवंत की गुरु-शिष्य परंपरा
BHU के दूसरे सबसे विख्यात हिंदी के प्रोफेसर रहे पंडित हजारी प्रसाद द्विवेदी। वे आचार्य रामचंद्र शुक्ल के शिष्य थे। उन्होंने शिष्य परंपरा को आगे बढ़ाया। हजारी प्रसाद ने बीएचयू में नामवर सिंह, ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त केदारनाथ सिंह, शिव प्रसाद सिंह, विश्वनाथ त्रिपाठी और काशीनाथ सिंह जैसे शिष्यों को पीएचडी कराई। उनके शोध निर्देशक बने।

बीएचयू में हिंदी और अन्य विभाग के छात्रों के साथ संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीय, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन और अन्य विभूतियां।
बीएचयू में हिंदी और अन्य विभाग के छात्रों के साथ संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीय, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन और अन्य विभूतियां।

BHU में छात्र और प्रोफेसर दोनों रहे

आगे चलकर ये शिष्य 21वीं शताब्दी में हिंदी के सबसे बड़े पुरोधा बने। इन्होंने भी गुरु-शिष्य परंपरा का निर्वहन किया। आचार्य द्विवेदी काशी हिंदू विश्वविद्यालय से पढ़ाई कर यहां पर प्रोफेसर भी बने। बीएचयू हिंदी विभाग के प्रो. रामाज्ञा राय के अनुसार, महामना मालवीय जी के पुत्र गोविंद मालवीय के कहने पर वह गुरु रविंद्रनाथ टैगोर के कोलकाता स्थित विश्वभारती को छोड़ दिया। 1950 में कोलकाता से बीएचयू आए। हिंदी के विभागाध्यक्ष भी बने।

काशी के भारतेंदु हरिश्चंद्र ने हिंदी को 'अंधेर नगरी चौपट राजा' जैसी कालजयी रचना दी।
काशी के भारतेंदु हरिश्चंद्र ने हिंदी को ‘अंधेर नगरी चौपट राजा’ जैसी कालजयी रचना दी।

उर्दू से अलग हिंदी शायरी की अलख जगाई

काशी के भारतेंदु हरिश्चंद्र 9 भाषाओं के जानकार थे। हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी, मराठी, गुजराती, बांग्ला, पंजाबी, मारवाड़ी और संस्कृत। उन्हें आधुनिक साहित्यिक हिंदी भाषा का निर्माता कहा जाता है। हिंदी को आम लोगों में सरल सहज तरीके से लिखना पढ़ना सिखाया। राधा-कृष्ण लीला पर 1500 पद लिखे। उर्दू से अलग हिंदी शायरी की अलख जगाई। कवि वाचन सुधा, हरिश्चंद्र मैगजीन, बाल बोधिनी और ‘अंधेर नगरी चौपट राजा’ जैसी कालजयी रचना ने उनको हमेशा के लिए अमर कर दिया।

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