पहले साल 9 चीतों की मौत ?
पहले साल 9 चीतों की मौत के बावजूद उम्मीद जिंदा:पीसीसीएफ बोले- कूनो के पर्यावरण में ढले चीते; प्रोजेक्ट के ग्राउंड स्टाफ की लर्निंग मजबूत हुई
प्रोजेक्ट चीता के तहत 17 सितंबर 2022 को भारत लाए गए 12 चीतों में ये पहली मौत थी, लेकिन इसके बाद एक-एक करके 9 चीतों की मौत हो गई। देश-दुनिया में भारत के प्रोजेक्ट चीता पर सवाल उठने शुरू हो गए। सवाल उठे तो जांच शुरू हुई। बात सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची और आशंकाओं ने भी जन्म लिया।
भारत में चीतों का एक साल कैसा रहा..इस दौरान क्या हुआ और आगे की क्या तस्वीर होगी? इसे समझने के लिए दैनिक भास्कर ने चीता एक्शन प्लान से जुड़े अधिकारियों, पूर्व पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ जेएस चौहान, वर्तमान पीसीसीएफ असीम श्रीवास्तव, चीता प्रोजेक्ट के डायरेक्टर सीसीएफ उत्तम शर्मा, ग्राउंड स्टॉफ और उनके परिवार के लोगों तक से बात की है। इसके अलावा एनटीसीए के निर्देश पर बनी चीता एक्सपर्ट कमेटी के विशेषज्ञों, चीता एक्सपर्ट कमेटी के वन्यजीव विशेषज्ञ एड्रियन टॉड्रिफ और एनटीसीए के वन महानिरीक्षक अमित मलिक की रिपोर्ट का भी अध्ययन किया।
भारत में प्रोजेक्ट चीता के एक साल को हमने 3 हिस्सों में समझने की कोशिश की है। पहला हिस्सा- चीतों के यहां आने से लेकर अब तक क्या हुआ? 26 मार्च से लेकर 2 अगस्त तक 5 महीनों में 9 चीतों की मौत कैसे हुई?
दूसरे हिस्से में ये जानने की कोशिश की है कि सितंबर 2024 तक प्रोजेक्ट चीता की क्या तस्वीर हो सकती है?
तीसरे हिस्से में हम ये समझेंगे कि चीतों के आने से पहले कूनो के आसपास क्या उम्मीदें बंधी थीं?
5 माह में 4 शावकों का जन्म और 9 चीतों की मौत
कूनो नेशनल पार्क में सब कुछ ठीक चल रहा था। इसी बीच 26 मार्च 2023 को नामीबिया से कूनो लाई गई चीता साशा की मौत हो गई। इसके अगले ही दिन 27 मार्च को मादा चीता ज्वाला ने 4 शावकों को जन्म दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट कर खुशी जाहिर की। प्रोजेक्ट चीता के लिए ये सबसे बड़ी खुशखबरी थी। चीतों के बच्चे बड़े हो रहे थे।
अब अप्रैल का महीना आया। इस बार अप्रैल में बूंदाबांदी के चलते गर्मी अपेक्षाकृत कम थी, लेकिन राजस्थान से लगे श्योपुर के इस कूनो नेशनल पार्क में 23 अप्रैल को नर चीते उदय की मौत की खबर आई। एमपी के तत्कालीन पीसीसीएफ चौहान ने कहा कि मैं तो 5 अप्रैल को ही नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी को चिट्ठी लिख चुका था। इस चिट्ठी में लिखा था कि कूनो से चीतों को शिफ्ट करना जरूरी है। तब हमारे पास 17 व्यस्क चीते और 4 शावक थे, लेकिन सभी चीतों को एक साथ खुले नहीं छोड़ सकते। आधे से ज्यादा चीते बाड़ों में थे। अफ्रीका से हम उन्हें यहां बाड़ों में रखने के लिए नहीं लाए हैं। चौहान ने ये भी लिखा कि प्रोजेक्ट चीता की बेहतरी के लिए जरूरी है कि इन्हें दूसरी जगह शिफ्ट किया जाए।
कुछ दिन बीते ही थे कि 9 मई को मादा चीता दक्षा की मौत की खबर आई। पता चला कि मेल चीते को दक्षा के बाड़े में मेटिंग के लिए भेजा गया था। मेटिंग के दौरान ही दोनों में हिंसक झड़प हो गई। मेल चीते ने पंजा मारकर दक्षा को घायल कर दिया था, बाद में उसकी मौत हो गई। 2 महीनों में 3 चीतों की मौत हो चुकी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- चीतों पर राजनीति क्यों..
सुप्रीम कोर्ट में भी चीता प्रोजेक्ट पर याचिका दायर हो गई। शीर्ष कोर्ट ने सरकार से सवाल पूछा कि चीतों पर राजनीति क्यों हो रही है? राजस्थान में दूसरे दल की सरकार है, क्या इसलिए राजस्थान के मुकुंदरा नेशनल पार्क में चीतों को शिफ्ट नहीं किया जा रहा है।
चीता एक्शन प्लान में भी इस बात का उल्लेख है कि दुर्लभ प्रजाति के वन्यजीवों को एक जगह रखना प्राकृतिक आपदा में जोखिम भरा हो सकता है। एक्शन प्लान में ही गांधी सागर, नौरादेही और मुकुंदरा टाइगर रिजर्व को चीतों को रखने के लिए वैकल्पिक स्थान के तौर पर चुना गया था। सरकार से सुप्रीम कोर्ट सवाल पूछ रहा था। वहीं, विपक्ष चीतों के रखरखाव पर आलोचना कर रहा था।
इधर, कूनो नेशनल पार्क में गर्मी लगातार बढ़ रही थी। अफ्रीका के सर्द माहौल से भारत आए चीतों के लिए यहां का मौसम अग्निपरीक्षा की घड़ी था। कूनो में पारा 45 डिग्री के पार हो गया था। 23 मई की सुबह पहले चीता शावक की मौत की खबर आई। दो दिन बाद 25 मई को 2 और शावकों ने दम तोड़ दिया।
चीतों की देखभाल में लगे अफसर कहते रहे कि अत्यधिक गर्मी और डिहाइड्रेशन के चलते शावकों की जान गई, लेकिन पहले 3 व्यस्क चीते और फिर 3 शावकों की मौत के बाद चीता प्रोजेक्ट पर चौतरफा सवाल उठने लगे।
चीता प्रोजेक्ट के डायरेक्टर उत्तम शर्मा कहते हैं- चीते हमारे परिवार का हिस्सा हो चुके थे। हम तो रात दिन उनके साथ थे। उनकी मौतों का सबसे ज्यादा दुख भी हमें था, लेकिन हम सिर्फ एक इंसान नहीं है, हम पर उस इंटरनेशनल प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी है। हम लगातार सीख रहे थे। हमें क्या नहीं करना है, ये समझ रहे थे।
इस बीच मानसून की आमद हो चुकी थी। अफसरों को उम्मीद थी कि मौसम की नमी से चीतों को राहत मिलेगी, लेकिन 11 जुलाई को चीते तेजस की मौत हो गई। उसकी गर्दन पर घाव था। 3 दिन बाद 14 जुलाई को एक और चीते सूरज का शव मिला।
इसके बाद 2 अगस्त को मादा चीता धात्री की मौत हो गई। 26 मार्च से चीतों की मौत का सिलसिला शुरू हुआ और 2 अगस्त तक 9 चीतों ने दम तोड़ दिया।

सरकार का कोर्ट को जवाब- जरूरी कदम उठा रहे
नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी को निर्देश देने के लिए एक एक्सपर्ट कमेटी बनाई गई। इस कमेटी ने ही चीतों की मौत का मामला सुप्रीम कोर्ट में उठाया है। कमेटी की एप्लिकेशन पर जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की बेंच ने सवाल पूछे। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि 40% चीते मर गए, यह अच्छा नहीं है। आप इन्हें किसी दूसरी जगह शिफ्ट क्यों नहीं कर देते? अब तक कितने चीतों की मौत हुई है?
इस पर केंद्र सरकार की एक्सपर्ट कमेटी ने जवाब दिया था कि 8 चीतों की मौत हो चुकी है। बाकी के सर्वाइवल के लिए जरूरी कदम उठाए जा रहे हैं। यह हमारे लिए एक प्रतिष्ठा वाला प्रोजेक्ट है और हम पूरी कोशिश कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने जब सरकार से पूछा कि सभी चीतों को एक जगह रखने की बजाय आप इन्हें अलग-अलग जगहों पर क्यों नहीं भेज देते हैं? तब सरकार ने जवाब दिया कि एक्सपर्ट्स ने इस पहलू पर भी विचार किया है। इस संबंध में उठाए गए कदमों और आगे के एक्शन के बारे में भी हम आपको बताएंगे। यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना है।
हालांकि, चीतों की मौतों के सिलसिले के बीच एक ऐसी घटना भी हुई है, जिसने उम्मीदों को नई रोशन दी है। पीसीसीएफ श्रीवास्तव कहते हैं कि 22 दिन तक कूनो के जंगलों में आजाद घूमती रही निर्वा चीता ने हमारी उम्मीदों को नया हौसला दिया। निर्वा की लोकेशन नहीं मिल रही थी। काफी कोशिशों के बाद उसकी लोकेशन मिली। उसे बाड़े में लाया गया, लेकिन उसने हमें ये सीख दी कि उसने इस जंगल में अकेले सर्वाइव किया। इसका मतलब है कि दूसरे चीते भी सर्वाइव कर सकते हैं।
अदालत ने कहा – समस्याएं जरूर हैं, लेकिन चिंता की बात नहीं
14 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की दलीलों को स्वीकार करते हुए सुनवाई बंद कर दी। कोर्ट ने यह भी कहा कि भारत में चीतों को बसाने के प्रोजेक्ट पर सरकार से सवाल पूछने का कोई कारण नहीं है। सुनवाई के दौरान केंद्र ने कहा कि दुनिया में पहली बार चीते एक कॉन्टिनेंट से दूसरे कॉन्टिनेंट में शिफ्ट किए गए हैं। चीतों के बाड़े का तापमान ज्यादा होना भी उनके लिए मुश्किल होता है। नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका के कम तापमान के मुकाबले यहां का तापमान ज्यादा रहता है। 1952 में देश में चीते विलुप्त घोषित कर दिए गए थे। चीतों को देश में फिर से बसाने की योजना के तहत विदेशों से चीतों को लाया गया है।
केंद्र सरकार ने कहा कि इन्फेक्शन और डिहाइड्रेशन चीतों की मौत का बड़ा कारण है। इस मामले में इंटरनेशनल एक्सपर्ट्स से राय ली जा रही है। भारत में तमाम चुनौतियों के बाद चीतों की मृत्यु दर दुनिया के अन्य हिस्सों के मुकाबले काफी कम होना उपलब्धि है।
अब समझते हैं कि साल भर में चीता प्रोजेक्ट पर क्या एक्शन हुआ, क्या सवाल उठे और क्या जांच हुई ?
एक्शन- केंद्र और राज्य में तालमेल नहीं दिखा, अफसरों में खींचतान रही
चीता एक्शन प्लान से जुड़े रहे एक सीनियर अफसर कहते हैं कि ये सही है कि 50 फीसदी चीतों की मौत का अंदेशा था, लेकिन ये भी उतना ही सही है कि इस प्रोजेक्ट में केंद्र और राज्य के अफसरों के बीच तालमेल की कमी दिखी। 3 शावक कुपोषण के चलते मर गए। पिंजरे में रोज वजन लेना था। उनकी ग्रोथ समझना था। मां को सप्लीमेंट देना था। ये सब नहीं हुआ। गर्मी थी तो ये मालूम था, उनका ध्यान रखा जाना चाहिए था।
चीतों को बाड़ों में छोड़ने से पहले सही फैसले नहीं लिए। अलग-अलग देशों के मेल और एक फीमेल चीते को छोड़ते हुए ये अंदाजा नहीं लगाया कि इससे टकराव होगा। ये प्रोजेक्ट की गलती थी।
14 जुलाई को जब 8वें चीते की मौत हुई तो सरकार ने पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ जेएस चौहान को हटाकर असीम श्रीवास्तव को पीसीसीएफ की जिम्मेदारी दी।
सवाल – क्या 5 मौतें रोकी जा सकती थीं
सरकार ने भले ही ये कहा कि चीतों की मौत प्राकृतिक हुई है, लेकिन चीता एक्शन प्लान के दूसरे अधिकारी कहते हैं कि एक चीते को कॉलर में इंफेक्शन हुआ तो हमें दूसरों की आईडी निकालने का फैसला तुरंत लेना था। वो हमने समय पर नहीं किया। मानसून में फर के भीतर पानी के कारण नमी हो गई थी। 5 दिन लगातार बारिश में स्किन गदगदी हो गई। उसमें खुजली हो गई। स्क्रैच में मक्खी बैठने से सेप्टीसीमिया हुआ। कॉलर की वजह से इसका प्रभाव बढ़ गया।
अफसर कहते हैं कि मैंने ऐसे 5-6 एक्सपर्टस से खुद बात की, जो चीता ब्रीड करते हैं। कुल मिलाकर मैं ये कह सकता हूं कि हम 5 मौतें बचा सकते थे। इसमें शावक भी शामिल हैं। अब ये अफसर चीता प्रोजेक्ट में शामिल नहीं हैं।
जांच – एनटीसीए ने एक्सपर्ट कमेटी बनाई, यही बताएगी कब खुले में जाएंगे चीते
एनटीसीए ने 30 अप्रैल 2023 को चीता एक्सपर्ट की एक कमेटी बनाई। इस कमेटी में देश-दुनिया के वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट को शामिल किया गया। टीम ने कूनो राष्ट्रीय उद्यान का दौरा किया। इन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा कि सितंबर में मानसून की बारिश खत्म होने के बाद स्थिति का फिर से आंकलन किया जाएगा। बड़ी आबादी बसाने के लिए चीता संरक्षण कार्य योजना के अनुसार केएनपी या आसपास के क्षेत्रों के अंतर्गत आगे गांधीसागर और अन्य क्षेत्रों में योजनाबद्ध तरीके से बसाहट की जाएगी।
चीतों को केएनपी से बाहर जाने की अनुमति दी जाएगी और जब तक वे उन क्षेत्रों में नहीं जाते, जहां वे बड़े खतरे में पड़ जाएं, तब तक आवश्यक रूप से उन्हें वापस पकड़ा नहीं जाएगा। हालांकि, इस कमेटी की रिपोर्ट के बाद भी 3 शावकों की मौत हो गई। एक शावक सुरक्षित है।
चीता प्रोजेक्ट को करीब से देखने वाले मध्यप्रदेश के पर्यावरण एक्टिविस्ट अजय दुबे कहते हैंं कि एनटीसीए की रिपोर्ट में एक तथ्य ये भी सामने आया था कि खराब और एक्सपायर्ड दवाओं का भी चीतों पर उपयोग किया गया है। दूसरी अहम बात ये है कि कि लगातार चीतों को कैद में रखने से उनके शिकार करने की प्रवृत्ति कुंद हो सकती है। हमें इस बात को भी समझने की जरुरत है।
तीसरी बात ये है कि ऐसे प्रोजेक्ट में स्थानीय लोगों के रोजगार मूलक एक्टिविटी पर ध्यान रखने की शर्त होती है, लेकिन एक साल बाद भी यहां स्थानीय आदिवासियों को इसका फायदा नहीं मिला है।
चीता प्रोजेक्ट का एक साल का सबक
1. अप्राकृतिक मौत नहीं : चीता एक्शन प्लान बनाने वाले एक सीनियर ऑफिसर कहते हैं कि एक भी चीता कभी तेंदुए के हमले से नहीं मरा। कोई ऐसी बीमारी नहीं हुई, जो संक्रामक हो। जंगल से बाहर निकलने पर कोई रोड एक्सीडेंट में नहीं मरा। एक भी चीता भूख से नहीं मरा। ये सबसे अच्छा है।
2. मौतों से सीख: एक्शन प्लान में असेसमेंट है कि प्रोजेक्ट के तहत 50 फीसदी चीते जिंदा नहीं बचेंगे। इन सब चीतों की मौत वॉचफुल आईज में हुई हैं। नेशनल पार्क के आसपास के गांव के लोगों ने चीतों को अपनाया, जंगल के स्टाफ को सहयोग किया।
3. चीते कूनो का मौसम समझने लगे: एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप में शिफ्ट हुए चीतों ने धीरे-धीरे यहां के मौसम को समझना शुरू कर दिया है, यहां के जंगलों में उनकी भूख मिटाने के तमाम संसाधन हैं, ये उन्होंने समझ लिया है।
4. चीतों की सेहत और उनके व्यवहार की समझ: चीतों की जरुरतों को कूनो के स्टाफ ने समझ लिया है। पीसीसीएफ असीम श्रीवास्तव कहते हैं कि बारिश से पहले चीतों को एंटीबायोटिक देने और कुछ और जरूरी दवाएं देने की समझ बन चुकी है, ताकि इंफेक्शन न बढ़ पाए।
5. गर्मी में शावकों का ज्यादा ख्याल रखना : तीन शावकों की मौत के बाद ये सबक मिला कि यहां की गर्मी शावकों के लिए जानलेवा है। एक शावक को अतिरिक्त सतर्कता से बचा लिया गया।
सितंबर 2024 में कैसी होगी चीता प्रोजेक्ट की तस्वीर
केंद्र ने बताया- हर साल 5 से 8 शावक पैदा होंगे, 12 चीते हर साल विदेश से आएंगे
यही वो सवाल है, जिससे पूरी दुनिया के वाइल्ड एक्सपर्ट की भारत पर निगाह है। इसके जवाब में पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ असीम श्रीवास्तव कहते हैं कि एक साल में चीता मैनेजमेंट की हमारी लर्निंग मजबूत हुई है। हमारे जंगलों में ये बिल्कुल नए थे। न तो उन्हें हमारे जंगलों का अंदाजा था न ही हमें उनके व्यवहार का।
22 दिन बिना निगरानी के जंगल में निर्वा ने सर्वाइव किया, ये इस बात का संकेत है कि चीते हमारे जंगलों के अभ्यस्त हो रहे हैं। अफ्रीका की कड़कड़ाती ठंड के बाद यहां शिफ्ट किए जाने पर चीतों के लिए सबसे बड़ा संकट यहां की गर्मी थी। एक साल में चीतों ने मौसम को समझ लिया है। श्रीवास्तव से जब हमने 2024 के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि अगले साल पूरे चीते खुले जंगल में होंगे। उनकी अपनी टेरिटरी होगी।
प्रोजेक्ट डायरेक्टर उत्तम शर्मा कहते हैं कि मैं बहुत यकीन के साथ कहता हूं कि चीता प्रोजेक्ट सफल होगा। अब हम पूरी तरह से विदेशियों पर निर्भर नहीं है। हमारे ग्राउंड स्टॉफ ने चीतों के व्यवहार को समझ लिया है। ये पूरी दुनिया के लिए नया है, सिर्फ हमारे लिए नहीं। आप जिसे गलतियां या चूक कह रहे हैं, वो हमारी लर्निंग है। हमने जो सबक सीखे हैं, उन्हीं सबक से हम प्रोजेक्ट को सफल बना पाएंगे।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि हमारी योजना के मुताबिक हर साल औसतन 5 से आठ चीता शावक देश में पैदा होंगे। सरकार अगले पांच साल तक 12 से 14 चीते विदेशों से लाएगी। कूनो में अभी एक शावक सहित 15 चीते हैं।
70 साल बाद भारत की सरजमीं पर चीते पहुंचे
17 सितंबर 2022 की सुबह 8 बजे एयरफोर्स के हेलिकॉप्टर से जब इन चीतों ने कूनो के भीतर आमद दी तो पूरी दुनिया भारत की इस कोशिश को निहार रही थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने जन्मदिन 17 सितंबर के दिन ही इन चीतों को कूनो में पिंजरों से आजाद किया। चीते दूसरे देश से आए थे इसलिए दो तरह के बाड़े बनाए गए। पहला क्वारेंटाइन और दूसरे इससे बड़ा बाड़ा था। पहले महीने इन्हें क्वारेंटाइन रखकर फिर बड़े बाड़ों में छोड़ा जाना था।
चीतों की देखरेख के लिए देश-विदेश के विशेषज्ञ यहीं मौजूद रहे। हर दिन इन चीतों की सेहत की निगरानी होती रही। यहां जमीनों के दाम 10 गुना तक बढ़ गए थे, लेकिन एक साल बाद भी यहां के रिसाॅर्ट में वैसी भीड़ नहीं है, जैसी अपेक्षा थी।
6 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया- “बढ़िया खबर! मुझे जानकारी दी गई है कि अनिवार्य क्वारेंटाइन के बाद, 2 चीतों को कूनो प्राकृतिक वास में और अनुकूलन के लिए एक बड़े बाड़े में छोड़ दिया गया है। अन्य चीतों को भी जल्द ही उस बाड़े ने छोड़ दिया जाएगा। मुझे यह जानकर भी खुशी हुई कि सभी चीते स्वस्थ हैं, सक्रिय हैं और अच्छी तरह से तालमेल बैठा रहे हैं।”
