टेक कंपनियों की जवाबदेही तय करना जरूरी हो गया है !
टेक कंपनियों की जवाबदेही तय करना जरूरी हो गया है
दृश्य 1 : छत्तीसगढ़ में महादेव एप के नाम से 5000 करोड़ की सट्टेबाजी।
दृश्य 2 : कनाडा में खालिस्तानी आतंकी की हत्या के मामले में अमेरिका और चार देशों के पंचनेत्री गठबंधन द्वारा भारत की जासूसी।
दृश्य 3 : भारत में साइबर व वित्तीय अपराधों का बढ़ता मायाजाल।
दृश्य 4 : टेक कम्पनियों के सहयोग से चुनाव जीतने की जुगत भिड़ा रहे नेता। इन चारों मुद्दों के डिजिटल कनेक्शन व समस्या की विकरालता के चार पहलू देखें :
1. बदहाल टेलीकॉम सेक्टर : 140 करोड़ की आबादी वाले देश में डिजिटल क्रांति के पिरामिड के चार बड़े हिस्से हैं। टेलीकॉम सर्विस प्रोवाइडर, इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर, स्मार्ट फोन और टेक कम्पनियां। जी-20 में डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्क्ट्रचर (डीपीआई) को बढ़ावा देकर सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों और डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर आदि के माध्यम से वित्तीय समावेशन को सफल बनाने के लिए भारत की तारीफ हुई। इसके कई स्याह पहलू हैं, लेकिन फिलहाल डिजिटल इन्फ्रा के जरूरी मुद्दे पर कुछ बातें। एक दशक पहले स्पेक्ट्रम के आवंटन पर कथित घोटाले पर कैग रिपोर्ट के बाद सरकार का तख्तापलट हो गया था। सरकार अब नेशनल फ्रीक्वेंसी एलोकेशन प्लान (एनएफएपी) सिस्टम लाने पर विचार कर रही है। ऐसी अनेक कवायदों के बावजूद सरकार को अब स्पेक्ट्रम से कमाई के लाले पड़ रहे हैं। बदहाली से जूझ रही टेलीकॉम कम्पनियां बैंक गारंटी देने में भी हाथ खड़े कर रही हैं। सुप्रीम कोर्ट के 2019 के फैसले के बावजूद इन कम्पनियों ने अभी तक 92 हजार करोड़ की देनदारी का भुगतान नहीं किया है। एक आकलन के अनुसार इन पर 6 लाख करोड़ से ज्यादा का कर्ज है।
2. कानून की नाफरमानी : सड़कों के इस्तेमाल के लिए जनता से टोल-टैक्स की वसूली होती है। 2023 के शुरुआती 6 महीनों में फास्ट टैग से सरकार को 30340 करोड़ रुपए की आमदनी हुई। लेकिन भारी मुनाफा कमाने वाली क्रिप्टो, गेमिंग, ओटीटी, फिनटेक और सोशल मीडिया कम्पनियां डिजिटल इन्फ्रा के विकास में सहयोग करने के बजाय टैक्स चोरी के साथ सीनाजोरी कर रही हैं। 129 कम्पनियों और स्टार्टअप ने नेट न्यूट्रलिटी के नाम पर कानून और टैक्स के दायरे से बाहर रहने के लिए लॉबीइंग शुरू कर दी है। 6 सालों की जद्दोजहद के बाद लचर आईटी कानून को भी टेक कम्पनियां लागू नहीं होने दे रही। इसलिए टेलीकॉम कानून जब बनेगा तो वह कब और कैसे लागू होगा? इंटरमीडियरी की आड़ में सेफ हार्बर का दर्जा हासिल करने वाली कम्पनियों की मुनाफाखोरी को नजरअंदाज करने से भारत डिजिटल उपनिवेशवाद की भयानक गिरफ्त में आ गया है।
3. गेमिंग कम्पनियों की टैक्स चोरी : महादेव एप के सटोरियों ने 5 हजार करोड़ का कारोबार किया। इसमें से शादी और फिल्मी सितारों पर खर्च किए गए 200 करोड़ रुपयों पर ही मीडिया में रोमानी खबरें चल रही हैं। दुबई, सिंगापुर और विदेशों से ऑपरेट हो रहे गेमिंग और सट्टेबाजी के एप्स ने भारतीय अर्थव्यवस्था के साथ युवाओं की कमर तोड़ दी है। केंद्र सरकार और राज्यों की पुलिस इस संगठित अपराध तंत्र के आगे बेबस और लाचार दिखती हैं। हालिया रिपोर्टों के अनुसार गेमिंग कम्पनियों ने भारत में 55 हजार करोड़ की जीएसटी की चोरी की है, जबकि बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के अनुसार यह आंकड़ा 1.5 लाख करोड़ का हो सकता है। टैक्स चोरी के इन आंकड़ों की गम्भीरता को दूसरे तरीके से समझने की जरूरत है। पांच करोड़ मुकदमों के बोझ से मुक्ति के लिए अगले चार सालों में ई-कोर्ट सिस्टम पर सरकार 7210 करोड़ रुपए खर्चेगी। डिजिटल इन्फ्रा में सहयोग के बजाय टेक कम्पनियां टैक्स चोरी, जासूसी, साइबर अपराध और चुनावी सिस्टम को हाइजैक करने में लिप्त हैं। इन पर काबू नहीं किया गया तो क्रिप्टो की तरह डिजिटल के अन्य सेक्टर भी धराशायी हो सकते हैं।
4. डिजिटल इन्फ्रा : अगले दो सालों में कुल 120 करोड़ आबादी को इंटरनेट से जोड़ने की कोशिश है। सन् 2020 में लगभग 6.63 लाख मोबाइल टॉवर और 22.8 लाख बेस ट्रांसमिटिंग स्टेशन थे। 5जी के रोलआउट के लिए लगभग 3.3 लाख ट्रांससीवर स्टेशन बनाए गए हैं। 5जी की सफलता के लिए टेक्नोलॉजी और रिसर्च में निवेश के साथ 12 लाख मोबाइल टॉवरों की आवश्यकता है। इसके लिए बजट आवंटन के साथ बीएसएनएल के पिछले दरवाजे से सरकार कई लाख करोड़ का निवेश कर रही है। पिछले 9 सालों में डाटा 96 फीसदी सस्ता हो गया है और इसकी खपत 43 गुना बढ़ गई है। डाटा क्रांति से मुनाफा कमाने वाली टेक कंपनियों को इन्फ्रा विकास यात्रा में भागीदार बनना चाहिए।
पिछले 9 सालों में डाटा 96 फीसदी सस्ता हो गया है और इसकी खपत 43 गुना बढ़ गई है। डाटा क्रांति से मुनाफा कमाने वाली टेक कंपनियों को इन्फ्रा विकास यात्रा में भागीदार बनकर भारत की डिजिटल क्रांति को सफल बनाना चाहिए।