2018 के मुकाबले इसबार तेजी में चुनाव आयोग

2018 के मुकाबले इसबार तेजी में चुनाव आयोग:प्रचार के लिए 27% कम वक्त दिया; एक्सपर्ट्स बोले- बीजेपी को फायदा

मिजोरम में 2018 के मुकाबले 25 दिन कम मिलेंगे यानी 46%, राजस्थान में 17 दिन कम मिलेंगे यानी 27%, मध्य प्रदेश में 15 दिन कम, तेलंगाना में 10 दिन कम और छत्तीसगढ़ में 8 दिन कम मिलेंगे। कुल मिलाकर पांचों राज्यों में 2018 के मुकाबले 27% कम दिन मिलेंगे।

 5 राज्यों में प्रचार के लिए कम वक्त मिलने का राजनीतिक फायदा किस पार्टी को और कैसे मिल सकता है?

 

 

3 बातें साफ हैं…

  • 2018 के मुकाबले 2023 में राजनीतिक पार्टियों को प्रचार के लिए औसतन 14 दिन कम मिल रहे हैं। प्रचार के दिनों में कटौती का ट्रेंड सभी 5 राज्यों में दिख रहा है।
  • प्रचार के दिनों में सबसे ज्यादा कटौती मिजोरम में हुई है, जहां 2018 के मुकाबले 2023 में 25 दिन कम मिल रहे हैं। राजस्थान को 17 दिन कम और मध्य प्रदेश को 15 दिन कम मिल रहे हैं।
  • छत्तीसगढ़ में 2018 की तरह ही इस बार भी 2 चरणों में चुनाव होंगे। यहां पिछले चुनाव के मुकाबले प्रचार के दिनों में कमी का अंतर सबसे कम है।

चुनाव आयोग ने कैंपेन के लिए कम वक्त दिया: फायदे में बीजेपी, कांग्रेस को परेशानी

5 राज्यों में विधानसभा चुनाव से पहले जातिगत जनगणना, आरक्षण समेत कई संवेदनशील मुद्दे छाए हुए हैं। ये बीजेपी के लिए राजनीतिक रूप से संवदेनशील हैं। पिछले कुछ चुनावों से OBC वोटरों में बीजेपी की लोकप्रियता बढ़ी है। 2009 के आम चुनाव में बीजेपी को 22% OBC वोट मिले थे, जो 10 साल में दोगुने हो गए। पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 44% वोट मिले।

पॉलिटिकल एक्सपर्ट रशीद किदवई के मुताबिक हमारे देश में अभी तक का इतिहास रहा है कि अगर इस तरह की जनगणना होती है तो उसी आधार पर आरक्षण की और दूसरी चीजों की मांग होने लगेगी। राहुल गांधी खुले-तौर पर कह चुके हैं कि जिसकी जितना संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी।

CSDS के संजय कुमार के मुताबिक बीजेपी का जातिगत गणना से कतराने का मुख्य कारण यह डर है कि इससे कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय पार्टियों को केंद्र सरकार की नौकरियां और शिक्षण संस्थाओं में OBC कोटे में बदलाव के लिए दबाव बनाने का मुद्दा मिल जाएगा। माना जाता है कि बीजेपी को डर यह है कि इससे अगड़ी जातियों के उसके वोटर नाराज हो सकते हैं, इसके अलावा बीजेपी का परंपरागत हिन्दू वोट बैंक इससे बिखर सकता है।

पॉलिटिकल एक्सपर्ट रशीद किदवई के मुताबिक अगर इलेक्शन कैंपेन लंबा चलता तो कांग्रेस और उनके सहयोगियों को ये मुद्दे उठाने का ज्यादा मौका मिलेगा। पहली बार बीजेपी यह देख रही है कि लंबे कैंपेन से उसे मिलने वाला फायदा कहीं विपक्ष न उठा ले।

रशीद किदवई छोटे इलेक्शन कैंपेन में बीजेपी का एक और छिपा फायदा देखते हैं। वो कहते हैं कि बीजेपी कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद इन 5 राज्यों के चुनाव को प्रतिष्ठा का मुद्दा भी नहीं बनाना चाहती। यानी जो होगा वो देखा जाएगा की तर्ज पर वह यह चुनाव लड़ रही है। यहां पर कोई पासा पलटने वाला सिनेरियो भी नहीं दिख रहा, जिसके लिए लंबे इलेक्शन कैंपेन से उसे कोई फायदा मिल सके।

वरिष्ठ पत्रकार आलोक प्रकाश पुतुल के मुताबिक आमतौर पर बीजेपी चुनाव में अलग-अलग इलाकों के लिए अलग-अलग तरह से रणनीति बनाती थी। इस बार राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में बीजेपी के पास स्ट्रैटजी के नाम पर पीएम मोदी ही अकेला चेहरा और उनकी उपलब्धियां ही आधार हैं। इसलिए छोटे कैंपेन से बीजेपी को किसी तरह का नुकसान होने की उम्मीद कम है।

पॉलिटिकिल एक्सपर्ट अविनाश कल्ला के मुताबिक चुनाव की घोषणा और मतदान की तारीख के बीच कम गैप होने से कांग्रेस को थोड़ी तकलीफ जरूर हो सकती है, क्योंकि उसकी रणनीति में स्टेकहोल्डर्स की संख्या ज्यादा है। बीजेपी के पास क्लैरिटी है कि उसे हर जगह पीएम मोदी के नाम पर चुनाव लड़ना है।

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