राजनीतिक मुद्दा क्यों नहीं बनता प्रदूषण या पर्यावरण !

सवाल: सिर्फ चिंता जताने से क्या होगा, आखिर राजनीतिक मुद्दा क्यों नहीं बनता प्रदूषण या पर्यावरण
दिल्ली के एक अस्पताल में प्रदूषण से बीमार लोगों के लिए ओपीडी शुरू होना स्थिति की भयावहता के बारे में बताता है। हालांकि दिवाली के आसपास बढ़ते प्रदूषण का कारण सिर्फ पटाखा नहीं है, लेकिन भारत समेत एशिया-अफ्रीका में प्रदूषण से होने वाली मौत नीति नियंताओं के लिए चिंता का विषय तो है ही।

दिल्ली के राममनोहर लोहिया अस्पताल ने जहरीली यानी प्रदूषित हवा के असर से बीमार लोगों के इलाज के लिए एक बाह्य रोगी विभाग (ओपीडी) शुरू किया है। अस्पताल प्रशासन इसे ‘पॉल्यूशन ओपीडी’ कह रहा है। यह बताने के लिए काफी है कि प्रदूषण का हमारे शरीर पर क्या असर पड़ रहा है।

हालांकि जहरीली हवा सिर्फ दिल्ली की समस्या नहीं है। इस बात पर बार-बार जोर दिए जाने की जरूरत है कि बेशक जहरीली हवा सबको प्रभावित करती है, लेकिन इसका असर हरेक व्यक्ति पर एक समान नहीं पड़ता है। इसलिए वायु प्रदूषण गहरी असमानता का भी विषय है, जिस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाना चाहिए।

प्रदूषित हवा के कई कारण होते हैं, जो अलग-अलग मौसम एवं अलग-अलग जगह पर निर्भर करते हैं। हम एकरूपता में इस पर विचार नहीं कर सकते। यह मान लेना भी गलत होगा कि पहले से ही जहरीली हवा में थोड़ा और प्रदूषण भरने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। यह मधुमेह के उस रोगी की तरह है, जिसे मधुमेह की गंभीर बीमारी है और वह यह तर्क देता है कि किसी खास दिन मिठाई खा लेने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। जैसा कि सरकार के आंकड़े बता रहे हैं, प्रदूषण का भीषण असर पड़ता है।

हालांकि दिवाली से पूर्व दिल्ली, मुंबई और चेन्नई जैसे कुछ शहरों में बेमौसम बारिश के चलते त्योहार से पहले प्रदूषण का स्तर कम हो गया था, लेकिन पटाखों पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लगाए गए प्रतिबंध का कई जगहों पर उल्लंघन होने से दिवाली की रात (12 नवंबर) वायु प्रदूषण बढ़ना शुरू हो गया और कई जगहों पर खतरनाक स्तर तक पहुंच गया। सरकार के ही आंकड़े इसकी गंभीरता की तस्दीक करते हैं।

एनसीएपी (राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम) ट्रैकर ने वर्ष 2022 एवं 2023 के लिए विभिन्न राज्यों की 11 राजधानी शहरों-बंगलूरू, भोपाल, चंडीगढ़, चेन्नई, दिल्ली, गांधीनगर, हैदराबाद, लखनऊ, मुंबई और पटना का दिवाली से पहले, दिवाली के दिन और दिवाली के बाद पीएम 2.5 (सूक्ष्म कण) के आंकड़ों का विश्लेषण किया। ये आंकड़े केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के सतत परिवेश वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों (सीएएक्यूएमएस) से लिए गए थे।

इस विश्लेषण में पाया गया कि इस वर्ष दिवाली से एक दिन पहले यानी 11 नवंबर को 11 में से आठ शहरों में पीएम 2.5 का स्तर वर्ष 2022 के 23 अक्तूबर (पिछले वर्ष दिवाली से एक दिन पहले) की तुलना में कम था। हालांकि उस दिन गांधीनगर, कोलकाता और पटना में पीएम 2.5 का स्तर वर्ष 2022 की तुलना में ज्यादा था। इन सभी 11 शहरों में दिवाली के दिन और उसके बाद के बारह घंटों (यानी 13 नवंबर की दोपहर तक) में पीएम 2.5 का स्तर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की दैनिक औसत ‘अच्छी’ सीमा यानी 30 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से ऊपर था। इन 11 शहरों में से पटना में दिवाली के दिन पीएम 2.5 का स्तर सर्वाधिक 206.1 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन की दैनिक सुरक्षित सीमा 15 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से 13 गुना ज्यादा था।

जाहिर है, दिवाली पर पटाखे चलाना वायु प्रदूषण का एकमात्र प्रमुख कारण नहीं है, यह अन्य कारकों- निर्माण, औद्योगिक उत्सर्जन, ऊर्जा संयंत्र उत्पादन, वाहन प्रदूषण, पराली जलाना, बायोमास और अन्य के साथ इसमें बस योगदान करता है। हमें उन सभी कारकों पर बात करनी चाहिए, जो कुल मिलाकर हवा को प्रदूषित करने में योगदान देते हैं। केवल कुछ कारणों पर बात करने से कोई फायदा नहीं होने वाला।

हमें स्वयं से यह सवाल करने की जरूरत है कि क्या हम अपने और अपने बच्चों की सेहत का ख्याल रखते हैं। चूंकि इसका उत्तर ‘हां’ है, इसलिए हमें वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार सभी छोटे-बड़े कारकों पर ध्यान देना चाहिए, जो हमें धीरे-धीरे मार रहे हैं और उन लोगों से इसका जवाब मांगना चाहिए, जो नीतियां बनाते और उन्हें लागू करते हैं।

जहरीली हवा का असर अमीर और गरीब लोगों पर अलग-अलग होता है। वायु प्रदूषण के कारण 90 फीसदी से ज्यादा मौतें निम्न और मध्यम आय वाले देशों, खासकर अफ्रीका एवं एशिया में होती हैं। यहां तक कि शहरों के भीतर भी अमीर लोगों के इलाकों की तुलना में गरीब लोगों के इलाके वायु प्रदूषण से ज्यादा प्रभावित होते हैं।

गरीब लोग वायु प्रदूषण से इसलिए ज्यादा प्रभावित होते हैं, क्योंकि वे घर में बैठकर काम नहीं कर सकते। वे आम तौर पर असंगठित क्षेत्रों, जैसे निर्माण उद्योग में काम करते हैं, जिसके कारण वायु गुणवत्ता ठीक न होने के बावजूद उन्हें घरों से बाहर काम करना पड़ता है। वे न तो एयर प्यूरिफायर खरीद सकते हैं और न ही उनके पास इतना पैसा और समय होता है कि वे समय पर स्वास्थ्य सेवा का लाभ उठा सकें। इस बात की ज्यादा संभावना होती है कि वे साइकिल चलाकर काम पर जाएं, जो स्वच्छ हवा वाले इलाके में एक स्वस्थ गतिविधि है, लेकिन जब हवा प्रदूषित हो, तो ऐसा करना खतरनाक है। भौगोलिक दृष्टि से भी भारत के कुछ हिस्सों में वायु प्रदूषण की समस्या अधिक गंभीर है।

जयजीत चक्रवर्ती एवं प्रत्यूष बसु द्वारा वर्ष 2021 में किए गए एक अध्ययन- ‘एअर क्वालिटी ऐंड एनवायरनमेंटल इनजस्टिस इन इंडिया :  कनेक्टिंग पार्टिकुलेट पॉल्यूशन टू सोशल डिसएडवांटेज’ में बताया गया कि 14 भारतीय शहरों में से 12, जो पीएम 2.5 स्तर के मामले में दुनिया के बीस सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में शामिल हैं, गंगा के मैदानी इलाकों में स्थित हैं, जो दुनिया के सबसे घनी आबादी वाले इलाकों में से एक और भारत का प्रमुख कृषि क्षेत्र है। भारत की केवल 0.04 फीसदी आबादी और 0.03 फीसदी परिवार ऐसे जिलों में रहते हैं, जहां पीएम 2.5 की सांद्रता विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुशंसित 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक नहीं है।

इन शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन जिलों में अंतरराष्ट्रीय मानकों से अधिक पीएम 2.5 प्रदूषण पाया गया, वहां कम से कम 85 फीसदी आबादी रहती है और जांच में उन्हें पता चला कि ये सामाजिक रूप से वंचित वर्ग से जुड़े परिवार थे। यह हमारे लिए चिंता का विषय होना चाहिए। हमें इस बात पर भी चिंता करनी चाहिए कि जहरीली हवा, जो देश के लाखों लोगों के लिए जीवन-मरण का सवाल है, चुनावी मौसम में राजनीतिक भाषणों का हिस्सा क्यों नहीं बनती।

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