कांग्रेस सांसद से मिले 300 करोड़ !
कांग्रेस सांसद से मिले 300 करोड़ ?
3 दिन से 40 मशीनें गिन रहीं; आयकर विभाग के जब्त पैसों का क्या होता है …
6 दिसंबर को आयकर विभाग ने कांग्रेस के राज्यसभा सांसद धीरज साहू के 10 ठिकानों पर छापेमारी की। झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में की गई छापेमारी में अब तक 300 करोड़ रुपए से ज्यादा का कैश बरामद हो चुका है।
आयकर विभाग के महानिदेशक संजय बहादुर के मुताबिक ये सिंगल ऑपरेशन में बरामद हुई अब तक की सबसे बड़ी रकम है। 8 दिसंबर को 40 बड़ी और छोटी मशीनों से नोटों की गिनती शुरू हुई, जो शनिवार रात तक भी जारी थी। इस छापेमारी के बाद धीरज साहू के घर से बरामद नोटों के ढेर की तस्वीरें वायरल हो रही हैं।
नोटों के बंडल देखकर आपके मन में सवाल उठा होगा कि आखिर इतने पैसों का होगा क्या?
इनकम टैक्स, ED और CBI जैसी जांच एजेंसियां जो पैसे जब्त करती हैं, उसका क्या होता है?

ED, CBI, आयकर विभाग को मनी लॉन्ड्रिंग, इनकम टैक्स फ्रॉड या अन्य आपराधिक गतिविधियों में जांच, पूछताछ, छापेमारी करने और चल-अचल संपत्तियों को जब्त करने का अधिकार होता है। ये एजेंसियां जब्त पैसे को अपनी कस्टडी में लेती हैं और फिर अदालत के आदेश से या तो उस पैसे को आरोपी को वापस कर दिया जाता है या फिर वो सरकार की संपत्ति बन जाता है।
ये पूरी प्रक्रिया इतनी आसान नहीं है। इसमें कई चरण होते हैं…
सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता के मुताबिक जब आयकर विभाग या दूसरी जांच एजेंसियां जांच के लिए कहीं छापेमारी करती हैं तो उसके दो हिस्से होते हैं- पहला- गिरफ्तारी और पूछताछ, दूसरा- सबूत इकट्ठा करना।
जांच एजेंसियां जो छापे मारती हैं वो अलग-अलग सूचनाओं पर आधारित होते हैं। ऐसे में जरूरी नहीं है कि एक आरोपी के यहां एक ही बार छापा मारा जाए, बल्कि छापेमारी कई चरणों में हो सकती है।

आयकर विभाग को जांच के दौरान संपत्ति जब्त करने का अधिकार
सभी जांच एजेंसियों को पैसा और सामान जब्त करने के कानूनी अधिकार मिले हैं। अगर इनकम टैक्स डिपार्टमेंट यानी आयकर विभाग को छापेमारी के दौरान पैसा या दूसरा सामान मिलता है तो उसे इनकम टैक्स एक्ट के तहत जब्त किया जा सकता है।
इसी तरह ED जैसी दूसरी जांच एजेंसियां प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट 2002 और कस्टम एक्ट के तहत पैसे और सामान को जब्त कर सकती हैं। जांच एजेंसियों को जब्त सामान को मालखाने या भंडारघर में जमा करने का अधिकार होता है।
जब्त किए गए सामान का पंचनामा बनाता है आयकर विभाग
छापे में कई चीजें बरामद हो सकती हैं- इनमें पेपर डॉक्यूमेंट्स, कैश और अन्य कीमती सामान जैसे सोने-चांदी के गहने शामिल हैं।
छापेमारी में जब्त की गई सभी चीजों का पंचनामा बनाया जाता है। पंचनामा जांच एजेंसी का IO यानी जांच अधिकारी बनाता है। पंचनामे पर दो स्वतंत्र गवाहों के हस्ताक्षर होते हैं। साथ ही इस पर जिस व्यक्ति का सामान जब्त होता है, उसके भी हस्ताक्षर होते हैं। पंचनामा बनने के बाद जब्ती का सामान केस प्रॉपर्टी बन जाता है।

अब एक-एक करके जानते हैं कि जांच एजेंसियां जो कैश, गहने और संपत्ति जब्त करती हैं उसका क्या होता है?
कैश
सबसे पहले जब्त किए गए पैसे या कैश का पंचनामा बनाया जाता है। पंचनामे में इस बात का जिक्र होता है कि कुल कितने पैसे बरामद हुए, कितनी गड्डियां हैं, कितने 100, 200, 500 और अन्य नोट हैं।
विराग गुप्ता के मुताबिक जब्त किए गए कैश में अगर नोट पर किसी तरह के निशान हों या कुछ लिखा हो या लिफाफे में हो तो उसे जांच एजेंसी अपने पास जमा कर लेती है, जिससे इसे कोर्ट में सबूत के तौर पर पेश किया जा सके।
बाकी पैसों को बैंकों में जमा कर दिया जाता है। जांच एजेंसियां जब्त किए गए पैसों को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया या स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में केंद्र सरकार के खाते में जमा करा देती हैं।
कई बार कुछ पैसों को रखने की जरूरत होती है, तो उसे जांच एजेंसी इंटरनल ऑर्डर से केस की सुनवाई पूरी होने तक अपने पास जमा रखती है।
प्रॉपर्टी
आयकर विभाग को बेनामी प्रॉपर्टी ट्रांजैक्शन (प्रोहिबिटेशन) एक्ट और आयकर एक्ट के तहत संपत्ति को अटैच करने का अधिकार है। अदालत में संपत्ति की जब्ती साबित होने पर इस संपत्ति को सरकार कब्जे में ले लेती है।
आयकर विभाग किसी की प्रॉपर्टी को अटैच करती है, तो उस पर बोर्ड लगा दिया जाता है, जिस पर लिखा होता है इस संपत्ति की खरीद-बिक्री या इसका इस्तेमाल नहीं हो सकता है। हालांकि कई मामलों में घर और कॉमर्शियल प्रॉपर्टी को अटैच किए जाने पर उनके इस्तेमाल को लेकर छूट भी है।
आयकर विभाग कितने दिनों के लिए अटैच कर सकती है प्रॉपर्टी?
आयकर विभाग के कानून के तहत किसी प्रॉपर्टी को अधिकतम 60 दिन यानी 2 महीने के लिए अटैच किया जा सकता है।
अगर तब तक आयकर विभाग अटैच करने को अदालत में वैध नहीं ठहरा पाती है तो संपत्ति खुद ही रिलीज हो जाएगी, यानी वो अटैच नहीं रह जाएगी।
ED के मामले में ये समय 180 दिनोंं का होता है। अगर ED 180 दिनों के अंदर प्रॉपर्टी अटैच करने को अदालत में सही साबित कर देती है तो संपत्ति पर सरकार का कब्जा हो जाता है। इसके बाद आरोपी को ED की इस कार्रवाई के खिलाफ ऊपर की अदालतों में अपील करने के लिए 45 दिन का समय मिलता है।
क्या कॉमर्शियल प्रॉपर्टी अटैच होने के बावजूद काम जारी रख सकती है?
आयकर विभाग जब किसी संपत्ति को जांच के दौरान जब्त करती है या प्रोविजनल अटैच करती है तो वह सील नहीं हो जाती है।
कई बार ऐसा भी होता है कि आयकर या दूसरी जांच एजेंसी जिस संपत्ति को अटैच करती है, उस मामले की अदालत में सुनवाई जारी रहने के दौरान आरोपी उस संपत्ति का उपयोग कर सकता है।
उदाहरण के लिए 2018 में ED ने पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम के दिल्ली स्थित जोरबाग के बंगले का 50% हिस्सा अटैच कर दिया था, लेकिन उस प्रॉपर्टी को खाली करने का कोर्ट का नोटिस मिलने तक उनका परिवार वहीं रह रहा था। चिदंबरम के बेटे कार्ति ने इस नोटिस के खिलाफ भी कानूनी राहत ले ली थी।
कॉमर्शियल प्रतिष्ठान आयकर विभाग के प्रॉपर्टी अटैच किए जाने के बाद भी बंद नहीं होते हैं। जैसे-दुकानें, मॉल, रेस्टोरेंट, होटल जैसी कॉमर्शियल प्रॉपर्टीज को भले ही आयकर विभाग ने अटैच कर दिया हो, लेकिन इसके बावजूद अदालत का फैसला आने तक वह काम करना जारी रख सकते हैं।
संपत्ति किसकी होगी, अदालत करती है आखिरी फैसला
- कैश, गहने या प्रॉपर्टी, जब्त किए गए सामान पर आखिरी फैसला कोर्ट करती है। मुकदमा शुरू होने पर जब्त किए गए सामान को सबूत के तौर पर कोर्ट में पेश किया जाता है।
- अगर अदालत जब्ती का आदेश देती है तो पूरी संपत्ति पर सरकार का कब्जा हो जाता है। अगर आयकर विभाग कोर्ट में जब्ती की कार्रवाई को सही नहीं साबित कर पाता है तो संपत्ति संबंधित व्यक्ति को लौटा दी जाती है।
- जब्ती को अदालत में चुनौती दिए जाने पर या हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में अगर अपीलकर्ता जब्त किए गए सामान को लीगल साबित कर देता है तो उसे जब्त किया गया सारा सामान वापस मिल जाता है।
- कई बार कोर्ट जिसकी संपत्ति है, उस पर कुछ फाइन लगाकर भी उसे संपत्ति लौटाने का मौका देती है।
- जांच एजेंसियां प्रशासनिक आदेश से ही संपत्ति को अटैच करती हैं और फिर कोर्ट के ऑर्डर से वो सरकार की हो जाती है या जिसकी संपत्ति जब्त की गई है, उसे लौटा दी जाती है।