MP में 20 साल में आई 67% कमी; 2018-2023 में सिर्फ 92 बैठक ?
लोकसभा स्पीकर बोले- विधानसभा बैठकों की संख्या बढ़ाएं ….
MP में 20 साल में आई 67% कमी; 2018-2023 में सिर्फ 92 बैठक
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने राज्यों की विधानसभा में बैठकों की घटती संख्या पर चिंता जताई है। भोपाल में विधायकों के प्रबोधन कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि बैठकों की कम संख्या लोकतंत्र के लिए अच्छी परंपरा नहीं है।
लोकसभा अध्यक्ष की इस चिंता पर ….. ने मध्यप्रदेश विधानसभा का रिकॉर्ड खंगाला तो पता चला कि 20 साल में बैठकों की संख्या 67% घट गई है। 11वीं विधानसभा में दिग्विजय शासनकाल (1998-2003) में पांच साल के दौरान 278 बैठकें हुई थीं। यह संख्या 15वीं विधानसभा (2018-2023) तक आते-आते घटकर 92 रह गई। इसमें कुछ सत्रों को छोड़ दें तो अधिकतर सत्र तय की गई अवधि से पहले ही खत्म हो गए।
ज्यादा दिन तक सत्र चलाने में रुचि नहीं
जानकार कहते हैं कि सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, किसी की भी रुचि अब ज्यादा दिन तक सत्र चलाने में नहीं रह गई है। सरकार का जोर इस बात पर रहता है कि विधायी कार्य पूरे हो जाएं। वहीं, विपक्ष शुरुआत से ही हंगामा करना शुरू कर देता है।
अब हालत यह बनने लगे हैं कि प्रश्नकाल तक पूरा नहीं हो पाता और अध्यक्ष को सदन की कार्यवाही बार-बार स्थगित करनी पड़ती है। सदन के सुचारू संचालन में पक्ष और विपक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। जाहिर है कि दोनों पक्ष इसके लिए एक-दूसरे को ही जिम्मेदार बताते हैं।
अब जानिए, सत्र को लेकर कितनी गंभीरता
मध्यप्रदेश का बजट सत्र 7 से 19 फरवरी तक प्रस्तावित है। इस दौरान सिर्फ 8 बैठकें हाेंगी। सरकार सत्र में लेखानुदान पेश करेगी, जो करीब एक लाख करोड़ रुपए का होना संभावित है। जिस बजट के लिए प्रदेश में कभी 31 बैठकें होती थीं, वह अब सिमटते-सिमटते हफ्ते-दस दिन की बैठकों तक सीमित रह गया है।
11वीं विधानसभा में 25 से लेकर 31 बैठकों में बजट पारित हुआ, लेकिन 15वीं विधानसभा आते-आते 22 साल में बजट जैसे गंभीर मामले में बैठकों की संख्या 8 से 13 के बीच रह गई।
1999 में बजट सत्र 52 दिन का रहा
मध्यप्रदेश की 11वीं विधानसभा में दिग्विजय सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने फरवरी-मार्च 1999 में बजट पेश किया था। यह सत्र 52 दिन का था। यह अब तक की पांच विधानसभाओं का सबसे ज्यादा बैठकों का बजट सत्र रहा है। 31 बैठकों में बजट पर विधायकों ने चर्चा की, तब मध्यप्रदेश का बजट पारित हुआ था। इसके बाद से आज तक कभी भी 31 बैठकों का बजट सत्र नहीं रहा। दिग्विजय सरकार के बाद के चार बजट सत्र भी 25 से 28 बैठकों वाले रहे।
14वीं विधानसभा में एक बार ही 20 से ज्यादा बैठकें
बजट सत्र में चर्चा के लिए ज्यादा से ज्यादा बैठकें कराने की कोशिशें 14वीं और 15वीं विधानसभा में नाकाम साबित हुईं। हंगामे और शोर-शराबे की वजह से निर्धारित बैठकों के पहले ही सत्र समाप्त करने की परिस्थितियां बनती गईं। कमलनाथ सरकार के 15 महीने के कार्यकाल में सिर्फ एक बार बजट आया। यह सत्र मात्र 19 दिन का रहा।
एक्सपर्ट बोले- सरकार की जवाबदेही और आलोचना से बचने की कोशिश
विधानसभा की बैठकें कम होने से सरकार, विपक्ष और जनता पर क्या असर पड़ता है? इसका जवाब देते हुए विधानसभा के पूर्व प्रमुख सचिव भगवान देव इसराणी कहते हैं, ‘किसी भी सत्र में कितनी बैठकें होंगी, यह सरकार तय करती है। इनकी संख्या कम होने से फायदा सरकार को ही होता है जबकि विपक्ष को जनहित के मुद्दों पर सरकार को घेरने का मौका कम मिलता है। सदन में जब विपक्ष कोई मुद्दा उठाता है तो सरकार की जवाबदेही है कि वह उसका निराकरण करें, लेकिन ऐसा बहुत ही कम देखने को मिलता है। ऐसे में सरकार अपनी जवाबदेही और आलोचना से बचना चाहती है।’
कम बैठकों से जनता का नुकसान
इसराणी कहते हैं, ‘रहा सवाल विपक्ष का तो वह सदन में जनता के मुद्दे ही उठाता है। बैठकें कम होने से विधायक अपने क्षेत्र की समस्या नहीं उठा पाते। प्रश्नकाल सीमित समय (एक घंटा) के लिए होता है, लेकिन विधायकों के पास ध्यानाकर्षण और शून्यकाल में मुद्दे उठाने का मौका रहता है। बैठक ही नहीं होती है तो उन्हें ये मौका नहीं मिलता। इसमें नुकसान जनता का ही होता है।
एक सवाल की कीमत औसतन 50 हजार रुपए
जानकारों के मुताबिक विधानसभा में हंगामे के चलते 220 से 310 तक सवालों के जवाब बनने के बावजूद सार्वजनिक नहीं हो पाते, जबकि एक सवाल का जवाब तैयार करने में औसत 50 हजार रुपए तक खर्च होते हें। कुछ सवालों के जवाब जुटाने में गांवों से भी जानकारी मंगाई जाती है। इनका खर्च 75 हजार से एक लाख रुपए तक चला जाता है।
एक दिन के प्रश्नकाल पर औसतन 50 लाख रुपए तक व्यय आता है। ये राशि विधानसभा की एक दिन की बाकी कार्यवाही के कुल खर्च से भी ज्यादा है, क्योंकि सदन की हर घंटे की कार्यवाही 2.50 लाख रुपए की पड़ती है। यदि 5 घंटे सदन चला तो कुल खर्च 12.50 लाख तक आता है। 2019 से अब तक ऐसे 500 से अधिक सवाल पूछे जा चुके हैं, जिनमें एक ही जवाब मिला- जानकारी एकत्रित की जा रही है।