यूनिफॉर्म सिविल कोड से उत्तराखंड में क्या बदलेगा

यूनिफॉर्म सिविल कोड से उत्तराखंड में क्या बदलेगा
लिव इन और बहुविवाह के लिए कानून; मुस्लिम क्यों कर रहे विरोध

जानेंगे कि यूनिफॉर्म सिविल कोड क्या है और इसके लागू होने पर उत्तराखंड में क्या बदल जाएगा?

सवाल 1: उत्तराखंड में लागू होने वाला यूनिफॉर्म सिविल कोड क्या है?

जवाब: आमतौर पर किसी भी देश में दो तरह के कानून होते हैं। क्रिमिनल कानून और सिविल कानून। क्रिमिनल कानून में चोरी, लूट, मार-पीट, हत्या जैसे आपराधिक मामलों की सुनवाई की जाती है। इसमें सभी धर्मों या समुदायों के लिए एक ही तरह के कोर्ट, प्रोसेस और सजा का प्रावधान होता है।

यानी कत्ल हिंदू ने किया है या मुसलमान ने या इस अपराध में जान गंवाने वाला हिंदू था या मुसलमान, इस बात से FIR, सुनवाई और सजा में कोई अंतर नहीं होता।

सिविल कानून में सजा दिलवाने की बजाय सेटलमेंट या मुआवजे पर जोर दिया जाता है। मसलन दो लोगों के बीच प्रॉपर्टी का विवाद हो, किसी ने आपकी मानहानि की हो या पति-पत्नी के बीच कोई मसला हो या किसी पब्लिक प्लेस का प्रॉपर्टी विवाद हो।

ऐसे मामलों में कोर्ट सेटलमेंट कराता है, पीड़ित पक्ष को मुआवजा दिलवाता है। सिविल कानूनों में परंपरा, रीति-रिवाज और संस्कृति की खास भूमिका होती है।

शादी-ब्याह और संपत्ति से जुड़ा मामला सिविल कानून के अंदर आता है। भारत में अलग-अलग धर्मों में शादी, परिवार और संपत्ति से जुड़े मामलों में रीति-रिवाज, संस्कृति और परंपराओं का खास महत्व है। इन्हीं के आधार पर धर्म या समुदाय विशेष के लिए अलग-अलग कानून भी हैं। यही वजह है कि इस तरह के कानूनों को हम पसर्नल लॉ भी कहते हैं।

जैसे- मुस्लिमों में शादी और संपत्ति का बंटवारा मुस्लिम पर्सनल लॉ के जरिए होता है। वहीं, हिंदुओं की शादी हिंदू मैरिज एक्ट के जरिए होती है। इसी तरह ईसाई और सिखों के लिए भी अलग पर्सनल लॉ हैं।

इधर यूनिफॉर्म सिविल कोड के जरिए पर्सनल लॉ को खत्म करके सभी के लिए एक जैसा कानून बनाए जाने की मांग की जा रही है। यानी भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए निजी मामलों में भी एक समान कानून, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो।

जैसे- पर्सनल लॉ के तहत मुस्लिम पुरुष 4 शादी कर सकते हैं, लेकिन हिंदू मैरिज एक्ट के तहत पहली पत्नी के रहते दूसरी शादी करना अपराध है।

विधानसभा में UCC पेश करते उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी। उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन गया है जिसने UCC पेश किया है।
विधानसभा में UCC पेश करते उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी। उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन गया है जिसने UCC पेश किया है।

सवाल 2: यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुस्लिम समुदाय के लोग विरोध क्यों कर रहे हैं?

जवाब: यूनिफॉर्म सिविल कोड का सबसे ज्यादा विरोध अल्पसंख्यक खासकर मुस्लिम समुदाय के लोग कर रहे हैं। उनका कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 25 में सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है। इस कारण शादी और परंपराओं से जुड़े मामले में सभी पर समान कानून थोपना संविधान के खिलाफ है।

मुस्लिम जानकारों के मुताबिक, शरिया कानून 1400 साल पुराना है। यह कानून कुरान और पैगम्बर मोहम्मद साहब की शिक्षाओं पर आधारित है। लिहाजा, यह उनकी आस्था का विषय है।

सवाल 3: उत्तराखंड में लागू होने वाले यूनिफॉर्म सिविल कोड से यहां क्या कुछ बदल जाएगा?
जवाब:

  • समान संपत्ति अधिकार : बेटे और बेटी दोनों को संपत्ति में समान अधिकार मिलेगा। इससे फर्क नहीं पड़ेगा कि वह किस कैटेगरी के हैं।
  • मौत के बाद संपत्ति: अगर किसी व्यक्ति की मौत जाती है तो यूनिफॉर्म सिविल कोड उस व्यक्ति की संपत्ति को पति/पत्नी और बच्चों में समान रूप से वितरण का अधिकार देता है। इसके अलावा उस व्यक्ति के माता-पिता को भी संपत्ति में समान अधिकार मिलेगा। पिछले कानून में ये अधिकार केवल मृतक की मां को मिलता था।
  • समान कारण पर ही मिलेगा तलाक: पति-पत्नी को तलाक तभी मिलेगा, जब दोनों के आधार और कारण एक जैसे होंगे। केवल एक पक्ष के कारण देने पर तलाक नहीं मिल सकेगा।
  • लिव इन का रजिट्रेशन जरूरी: उत्तराखंड में रहने वाले कपल अगर लिव इन में रह रहे हैं तो उन्हें इसका रजिस्ट्रेशन कराना होगा। हालांकि ये सेल्फ डिक्लेशन जैसा होगा, लेकिन इस नियम से अनुसूचित जनजाति के लोगों को छूट होगी।
  • संतान की जिम्मेदारी : यदि लिव इन रिलेशनशिप से कोई बच्चा पैदा होता है तो उसकी जिम्मेदारी लिव इन में रहने वाले कपल की होगी। दोनों को उस बच्चे को अपना नाम भी देना होगा। इससे राज्य में हर बच्चे को पहचान मिलेगी।

सवाल 4: देश के संविधान में यूनिफॉर्म सिविल कोड के बारे में क्या कहा गया है?
जवाब: 
संविधान के अनुच्छेद 44 के भाग- 4 में यूनिफॉर्म सिविल कोड की चर्चा है। राज्य के नीति-निदेशक तत्व से संबंधित इस अनुच्छेद में कहा गया है कि ‘राज्य, देशभर में नागरिकों के लिए एक यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू कराने का प्रयास करेगा।’

हमारे संविधान में नीति निदेशक तत्व सरकारों के लिए एक गाइड की तरह हैं। इनमें वे सिद्धांत या उद्देश्य बताए गए हैं, जिन्हें हासिल करने के लिए सरकारों को काम करना होता है।

सवाल 5: BJP का यूनिफॉर्म सिविल कोड के मुद्दे पर क्या स्टैंड है?
जवाब: 
बीते दिनों एक इंटरव्यू में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था, ‘जब से हमारी पार्टी बनी है, तब से यूनिफॉर्म सिविल कोड हमारा मुद्दा रहा है।

एक भी घोषणा पत्र ऐसा नहीं है, जिसमें हमने यूनिफॉर्म सिविल कोड की बात न की हो। पंथ निरपेक्ष देश में कानून का आधार धर्म नहीं हो सकता। हमारे संविधान निर्माताओं ने भी कहा कि जब कभी भी अनुकूलता हो, देश के विधान मंडलों और संसद को यूनिफॉर्म सिविल कोड लाना चाहिए।’

सवाल 6: यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा सबसे पहले कब उठा?

जवाब: 1835 में ब्रिटिश सरकार ने एक रिपोर्ट पेश की। इसमें क्राइम, एविडेंस और कॉन्ट्रैक्ट्स को लेकर देशभर में एक समान कानून बनाने की बात कही गई। 1840 में इसे लागू भी कर दिया गया, लेकिन धर्म के आधार पर हिंदुओं और मुसलमानों के पर्सनल लॉ को इससे अलग रखा गया। बस यहीं से यूनिफॉर्म सिविल कोड की मांग की जाने लगी।

1941 में बीएन राव कमेटी बनी। इसमें हिंदुओं के लिए कॉमन सिविल कोड बनाने की बात कही गई।

आजादी के बाद 1948 में पहली बार संविधान सभा के सामने हिंदू कोड बिल पेश किया गया। इसका मकसद हिंदू महिलाओं को बाल विवाह, सती प्रथा, घूंघट प्रथा जैसे गलत रिवाजों से आजादी दिलाना था।

शुक्रवार को उत्तराखंड सरकार की यूसीसी विशेषज्ञ समिति ने अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट सीएम पुष्कर सिंह धामी को सौंपी थी। इस समिति की अध्यक्ष जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई हैं।
शुक्रवार को उत्तराखंड सरकार की यूसीसी विशेषज्ञ समिति ने अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट सीएम पुष्कर सिंह धामी को सौंपी थी। इस समिति की अध्यक्ष जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई हैं।

सवाल 7: दूसरे देशों में यूनिफॉर्म सिविल कोड जैसा कुछ है क्या?

जवाब: अभी देश में गोवा ही अकेला राज्य है जहां यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है। ये पुर्तगाली सिविल कोड 1867 के नाम से जाना जाता है। 1961 में गोवा का भारत में विलय हुआ। इसके बाद भी वहां ये कानून लागू रहा।

अगर दूसरे देशों की बात करें तो ज्यादातर मुस्लिम देश शरिया लॉ फॉलो करते हैं। पाकिस्तान, इराक, ईरान, यमन और सउदी अरब जैसे देशों में सबके लिए एक ही कानून है।

इजिप्ट, सिंगापुर, मलेशिया और श्रीलंका जैसे देशों में शरिया लॉ सिर्फ पर्सनल लॉ के रूप में लागू है। इजराइल में अलग-अलग धर्मों के लिए अलग फैमिली लॉ हैं।

अमेरिका सहित ईसाई बहुल देशों में शादी, तलाक और संपत्ति से जुड़े मसलों के लिए सभी नागरिकों के लिए कॉमन लॉ है। अमेरिका में ट्राइबल कम्युनिटी के लिए शादी और तलाक से जुड़े मामलों में छूट है।

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