पार्टनर्स के डीएनए की कुंडली जितनी अलग, उतनी फायदेमंद …
पार्टनर्स के डीएनए की कुंडली जितनी अलग, उतनी फायदेमंद …
शादी में जेनेटिक वैरिएशन से बच्चे होंगे सुपरस्मार्ट, आनुवांशिक बीमारियों का खतरा कम
जीवनसाथी चुनते हुए किन बातों पर गौर करना चाहिए। यह सवाल किसी परंपरावादी बुजुर्ग से पूछें तो वे जाति-गोत्र का बंधन और कुंडली मिलान का फलसफा समझाएंगे।
नई उम्र के प्रेमियों से पूछें तो संभव है कि वे जगजीत सिंह की गजल सुना दें-
”न उम्र की सीमा हो, न जन्म का हो बंधन
जब प्यार करे कोई, देखे केवल मन”
लेकिन शादियों के इस सीजन में हम इन दोनों को किनारे रखकर विज्ञान की बात करेंगे। साथ ही जानेंगे कि जीवनसाथी के चुनाव में सबसे जरूरी बातें क्या हैं। इस कवायद में जाति, गोत्र, रंग और नस्ल कहां टिकता है।

गलत शादियों से बिखर गया मिस्र का महान साम्राज्य
मिस्र के पिरामिड और ममीज के बारे में सभी जानते हैं। इसे बनाने वाले महान साम्राज्य की कहानियां भी खूब सुनाई जाती हैं। यहां के राजा यानी फैरोहों को भगवान का दर्जा हासिल था।
3000 साल पहले यह दुनिया का सबसे विकसित और ताकतवर साम्राज्य बन गया था। लेकिन एक गलत कदम पूरे राज्य और इस वंश को बरबादी की ओर ले गया।
सत्ता, प्रतिष्ठा और दौलत परिवार में ही बनी रहे, इसके लिए यहां के राजा अपने घर में ही शादियां करते थे। लेकिन इस तरह की शादियों से पैदा हुए बच्चे तमाम बीमारियों से घिरे रहते और समय से पहल ही चल बसते। तुतनखामेन जैसे फैरोहों राजा की मौत भी इसी वजह से हुई।
पाकिस्तान में 50% शादियां चचेरी-फुफेरी बहनों से
पाकिस्तानी अखबार ‘द डॉन’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में लगभग 50% शादियां करीबी रिश्ते में ही होती है। दुनिया के कई देशों में कजन मैरिज का चलन रहा है।
लेकिन ‘द डॉन’ की ही एक रिपोर्ट के मुताबिक इस प्रैक्टिस की वजह वहां के गांव-कस्बे जेनिटिक रूप से समान लोगों का क्लोज ग्रुप बन चुका है। इस ग्रुप में होने वाली तमाम शादियों में जेनेटिक डिसऑर्डर का खतरा होता है।
यही वजह है कि पाकिस्तान में बच्चों की मृत्यु दर, जन्मजात बीमारियों के साथ जन्म लेने की दर बाकी देशों के मुकाबले काफी ज्यादा है।
इन्हीं वजहों से कतर, यूएई और सऊदी अरब जैसे अमीर देशों ने अपने यहां कजन मैरिज से पहले जेनिटिक टेस्ट को अनिवार्य किया है।

शादी में जीन, डीएनए की कुंडली जितनी अलग, उतनी ही फायदेमंद
आसान भाषा में समझें तो माता-पिता के कुछ गुण जीन के माध्यम से बच्चों में ट्रांसफर होते हैं। बच्चा कैसा दिखेगा, हेल्दी या बीमार होगा, माइंड, रंग-रूप कैसा होगा, ये बातें मां-बाप के जीन से ही तय होती हैं। बच्चे में जीन की एक कॉपी मां से तो दूसरी कॉपी पिता से आती है।
कई बार इसी जीन के जरिए बीमारियां भी एक-पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में ट्रांसफर होती जाती है। ऐसे में अगर मां-बाप दोनों एक ही आनुवांशिकता के हुए तो बच्चों को दोनों तरफ से बीमारी वाला जीन और डीएनए ही मिलेगा।
अमेरिका के जाने-माने एंथ्रोपॉलिजिस्ट डॉ. डेविड ऑगस जैसे वैज्ञानिकों की राय है कि मां-बाप के जीन में पर्याप्त अंतर होना चाहिए, ताकि बच्चों में जीन की दोनों कॉपियां अलग-अलग आएं। अगर किसी एक कॉपी में बीमारी हो तो दूसरी कॉपी उसे संभाल ले।
शादी में हो जेनेटिक वैरिएशन तो बच्चे होंगे एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी
अमेरिका में साल 2015 में 3 लाख लोगों पर एक बड़ी स्टडी हुई। डॉ. डेविड ऑगस की इस स्टडी में पाया गया कि अगर मां-बाप के जीन में पर्याप्त वैरिएशन यानी फर्क हो तो इस रिश्ते से पैदा होने वाले बच्चे बाकी बच्चों की तुलना में ज्यादा मजबूत होते हैं।
इस रिसर्च में पाया गया कि मां और पिता के बीच नस्ल, समुदाय, जीन के मामलों में जितना ज्यादा फर्क होगा, बच्चा जेनेटिक रूप से उतना ही मजबूत पैदा होगा। आने वाली पीढ़ियां मजबूत होती जाएंगी।
चार्ल्स डॉर्विन की थ्योरी ‘सर्वाइवल ऑफ फिटेस्ट’ यानी सबसे मजबूत ही जिंदा रह पाएंगे, भी इस बात की तस्दीक करती है।
इस थ्योरी के मुताबिक जब दो अलग-अलग समुदाय या नस्ल के लोग आपस में शादी करते हैं तो उनकी अगली पीढ़ी में दोनों ओर से सबसे मजबूत जीन ट्रांसफर होते हैं, शरीर कमजोर जीन और बीमारियां पीछे छोड़ता जाता है।

गोत्र में शादी नहीं करने का कारण वैज्ञानिक, समझें कॉन्सेप्ट
शादी-ब्याह में जेनेटिक्स के महत्व को हमारे वैदिक पूर्वज भी बखूबी समझते थे। उन्होंने सप्तऋषि के नाम से 7 गोत्र बनाए। नियम बनाया गया कि शादियां गोत्र से बाहर ही होंगी।
किसी की शादी अपने गोत्र, मां के गोत्र और दादी के गोत्र के बाहर ही की जा सकती है। गोत्र परंपरा के सहारे वैदिक पूर्वजों ने खून के रिश्ते में होने वाली शादियों पर रोक लगाकर आनुवांशिक डिसऑर्डर का खतरा काफी हद तक टाल दिया।
हालांकि यहां एक विरोधाभास भी है। शादियां गोत्र से बाहर करना बेहतर मानते हैं, लेकिन जाति के मामले में ऐसा नहीं होता। ‘जेनेटिक डायवर्सिटी’ वाले फलसफे की मानें तो इंटरकास्ट मैरिज भी बेहतर विकल्प है। लेकिन अपने देश में बमुश्किल 5% शादियां ही अंतर्जातीय होती हैं।
कुल जमा बात यह है कि शादी-ब्याह, जीन और डीएनए के मामले में न तो समाज की पारंपरिक सोच पूरी तरह सही है और न ही युवाओं के रूमानी ख्याल। हकीकत इनके बीच में कहीं है। दूल्हा-दुल्हन दूर के ही अच्छे होते हैं। बहिर्विवाह यानी, गोत्र, पिंड, प्रवर, समुदाय और गांव से बाहर की शादी वैज्ञानिक रूप से ज्यादा बेहतर मानी गई है।