इस्तीफे के तीसरे दिन बीजेपी में शामिल; .. जस्टिस गंगोपाध्याय

जस्टिस गंगोपाध्याय की कहानी
इस्तीफे के तीसरे दिन बीजेपी में शामिल; ममता सरकार से जुड़े 14 केस ED-CBI को सौंपे थे

5 मार्च की दोपहर करीब 3 बजे। कलकत्ता हाईकोर्ट के जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय ने ईस्ट मेदिनीपुर जिले के एक जज को बर्खास्त करने से जुड़ा एक फैसला सुनाया। ये फैसला उनके करियर का आखिरी फैसला साबित हुआ।

इसके फौरन बाद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने सिर्फ तीन लाइनों में लिखा कि वह व्यक्तिगत कारणों से इस्तीफा दे रहे हैं। इस्तीफे के तीसरे दिन उन्होंने ‌BJP जॉइन कर ली।पश्चिम बंगाल बीजेपी प्रमुख सुकांत मजूमदार, नेता प्रतिपक्ष सुवेंदु अधिकारी और अन्य नेताओं की उपस्थिति में उन्होंने पार्टी की सदस्यता ली।

जस्टिस गंगोपाध्याय की कहानी, उनके किन फैसलों पर पश्चिम बंगाल में बड़ा विवाद खड़ा हुआ और अब उनके किस सीट से लोकसभा चुनाव लड़ने की खबर है...

जानलेवा धमकी, नौकरी से इस्तीफा और कोर्टरूम तक का सफर

जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय की पैदाइश अगस्त 1962 की है। उनकी स्कूली पढ़ाई साल 1979 में कोलकाता से पूरी हुई। इसके बाद उन्होंने कोलकाता यूनिवर्सिटी से जुड़े हाजरा लॉ कॉलेज से कानून की पढ़ाई की। हालांकि, करियर की शुरुआत सरकारी नौकरी से हुई।

वह पश्चिम बंगाल सिविल सर्विस में ग्रेड-ए के ऑफिसर रहे। उत्तरी दीनाजपुर इलाके में तैनाती थी। यहां बतौर रेवेन्यू ऑफिसर काम करते हुए अभिजीत ने स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचार के कई मामलों में कार्रवाई की। इसके चलते उन्हें जान से मारने तक की धमकियां मिल रही थीं। मजबूरन अभिजीत को अपनी नौकरी से इस्तीफा देना पड़ा।

नौकरी छोड़ने के बाद अभिजीत वापस कोलकाता आ गए। यहां सरकारी वकील के तौर पर हाईकोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की। कई बीमा कंपनियों के लिए पैनल एडवोकेट के रूप में काम किया। इसके बाद 2 मई 2018 को अभिजीत की कलकत्ता हाईकोर्ट में बतौर एडिशनल जज नियुक्ति हो गई और 30 मई 2020 को अभिजीत यहां स्थायी न्यायाधीश बन गए।

हाईकोर्ट में बतौर जस्टिस अभिजीत के कार्यकाल के दौरान कई बार ऐसे विवाद खड़े हुए जब कहा गया कि अभिजीत TMC सरकार को निशाना बनाने में जरा भी नहीं चूकते।

जस्टिस अभिजीत से बेहद परेशान थी ममता सरकार, कई बार आरोप लगाए
जस्टिस गंगोपाध्याय ने ममता सरकार से जुड़े कुल 14 मामलों को ED-CBI को सौंपा। इनकी जांच पश्चिम बंगाल पुलिस कर रही थी। BJP के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दिलीप घोष का कहना था कि, ‘राज्य में कानून-व्यवस्था फेल हो गई है। लोगों का सरकार और पुलिस पर से भरोसा उठ गया है। लोग अदालत जा रहे हैं और अदालत मामले CBI को सौंप रही है।’

इधर TMC का आरोप था कि CBI तटस्थ नहीं है। TMC प्रवक्ता कुणाल घोष ने कहा था, ‘अदालत मामले CBI को दे रही है, लेकिन CJI खुद कहते हैं कि CBI को राजनीतिक हाथों से बाहर निकलना होगा। उन्हें खुद CBI पर भरोसा नहीं है। CBI तटस्थ नहीं है। उन्होंने TMC नेताओं से पूछताछ की और गिरफ्तारी की, लेकिन जब शुभेंदु अधिकारी की बात आई तो उन्होंने कुछ नहीं किया।’

पश्चिम बंगाल के शिक्षक भर्ती घोटाले के मामले में सुनवाई के दौरान उनके फैसलों पर बड़ा विवाद खड़ा हुआ। इस मामले में उनके फैसलों के चलते सत्तारूढ़ TMC के कई पूर्व मंत्री और विधायक फिलहाल जेल में हैं।

जून, 2021 से 30 जनवरी 2024 तक हाईकोर्ट में जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय ने मामले की सुनवाई की और CBI को जांच का निर्देश दिया। जिसके बाद CBI ने पार्थ चटर्जी, उनकी करीबी अर्पिता मुखर्जी सहित TMC के कई बड़े नेताओं से पूछताछ की और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

गिरफ्तारी के बाद ममता बनर्जी ने पार्थ को मंत्रिमंडल से हटा दिया। साथ ही पार्टी से भी बर्खास्त कर दिया।

2023 की फरवरी में जस्टिस अभिजीत ने ग्रुप डी के करीब दो हजार कर्मचारियों, मार्च में ग्रुप सी के 785 कर्मचारियों और मई में 30 हजार से ज्यादा गैर-प्रशिक्षित शिक्षकों को बर्खास्त कर दिया था।

यही नहीं, सुनवाई के दौरान अभिजीत ने CBI के अधिकारियों को भी अपनी संपत्ति का हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया था।

अपने ही कोर्ट के जज पर गंभीर आरोप लगाए, सुप्रीम कोर्ट को दखल देना पड़ा
जस्टिस गंगोपाध्याय ने मेडिकल प्रवेश के एक मामले से संबंधित कुछ दस्तावेज CBI को सौंपने और उससे मामले की जांच करवाने के निर्देश दिए थे। डिवीजन बेंच के जस्टिस सोमेन सेन और उदय कुमार ने अभिजीत गंगोपाध्याय के इस ऑर्डर पर स्टे लगा दिया।

इसके बाद अभिजीत ने सीधे हाईकोर्ट के एडवोकेट जनरल को ही ऑर्डर दे दिया कि वह केस से संबंधित दस्तावेजों को CBI को सौंपें। गौरतलब बात ये है कि जस्टिस अभिजीत घोटाले से जुड़ी जिस याचिका की सुनवाई कर रहे थे, उसमें CBI जांच की मांग नहीं की गई थी। एडवोकेट जनरल को ऑर्डर देने के पीछे उनका तर्क था कि उन्हें डिवीजन बेंच के स्टे ऑर्डर के बारे में सूचित नहीं किया गया।

इसी ऑर्डर में जस्टिस अभिजीत ने जस्टिस सोमेन सेन पर ये आरोप लगाए कि वे एक राजनीतिक दल के लिए काम करते हैं। जस्टिस अभिजीत ने कहा कि डिवीजन बेंच का आदेश पूरी तरह से अवैध है और इसे नजरअंदाज किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘जस्टिस सोमेन सेन ने अपने चैंबर में जस्टिस अमृता सिन्हा को बुलाया था। अमृता सिन्हा TMC नेता अभिषेक बनर्जी से जुड़े मामलों की सुनवाई कर रही थीं। और अपने चैंबर में बुलाकर उन्होंने अमृता से यह कहा कि अभिषेक बनर्जी का एक राजनीतिक भविष्य है और उन्हें किसी भी मामले में परेशान नहीं किया जाना चाहिए।’

गंगोपाध्याय के इस ऑर्डर से डिवीजन बेंच के स्टे ऑर्डर की साफ तौर पर अवहेलना हुई थी। इसे सुप्रीम कोर्ट ने अपने संज्ञान में लिया और आगे की सारी कार्यवाही अपने पास स्थानांतरित कर ली।

जस्टिस अभिजीत का टीवी इंटरव्यू, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल खड़े किए
मई 2018 से हाईकोर्ट में कुर्सी संभालने के बाद से अभिजीत गंगोपाध्याय पर लगातार ये आरोप लगते रहे कि वे बड़ी बेंच के आदेशों को नजरअंदाज करते हैं। उन पर राजनीतिक मुद्दों पर टीवी चैनलों से बात करने और यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार तक को आदेश देने के आरोप हैं।

मामला कुछ यूं है कि अप्रैल 2023 में टीचर भर्ती घोटाले से जुड़ी याचिकाओं की सुनवाई के दौरान ही अभिजीत ने एक लोकल बंगाली न्यूज चैनल को इंटरव्यू दिया। इसमें उन्होंने TMC नेता और ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी की भूमिका पर बात की। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई और कहा कि मौजूदा जजों का टीवी चैनलों को इंटरव्यू देने का कोई औचित्य नहीं है।

इस मामले में CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कलकत्ता हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से एक रिपोर्ट मांगी। इसमें पूछा गया कि क्या जस्टिस अभिजीत ने वाकई इंटरव्यू दिया था। शीर्ष अदालत ने यह भी साफ कहा कि अगर जस्टिस गंगोपाध्याय ने वास्तव में इंटरव्यू दिया है, तो उन्हें याचिकाओं पर सुनवाई जारी रखने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘मैं सिर्फ यह कहना चाहता हूं कि जज को उन मामलों पर इंटरव्यू नहीं देना चाहिए, जो लंबित हैं। अगर उन्होंने याचिकाकर्ता के बारे में ऐसा कहा है तो उन्हें कार्यवाही में हिस्सा लेने का कोई अधिकार नहीं है। सवाल यह है कि क्या एक जज, जिसने राजनीति से जुड़े लोगों पर बयान दिया है, उसे सुनवाई का हिस्सा रहना चाहिए? इसकी कुछ प्रक्रिया होनी चाहिए।’

इसके बाद CJI ने कलकत्ता हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को उक्त मामला किसी दूसरी बेंच को सौंपने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के कुछ ही घंटों के अंदर जस्टिस गंगोपाध्याय ने स्वतः संज्ञान लेते हुए एक ऑर्डर जारी किया। इसमें सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल को निर्देश दिया गया कि उन्होंने बंगाली न्यूज़ चैनल को जो इंटरव्यू दिया था उसकी एक रिपोर्ट और उसका आधिकारिक अनुवाद जस्टिस गंगोपाध्याय को पेश किया जाए।

जस्टिस गंगोपाध्याय ने इस ऑर्डर में लिखा था, ‘मैं भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय के महासचिव को यह निर्देश देता हूं कि वो मेरे सामने रिपोर्ट और मीडिया में मेरे द्वारा दिए गए इंटरव्यू का आधिकारिक अनुवाद और इस न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल के हलफनामे की मूल प्रति आज आधी रात 12 बजे तक पेश करें।’

उन्होंने कहा कि वह दस्तावेजों के लिए 12:15 बजे तक अपने कक्ष में इंतजार करेंगे।

नतीजतन, इस ऑर्डर पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट को देर शाम बेंच बैठानी पड़ी। जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली की इस बेंच ने कहा कि इस तरह का आचरण न्यायिक अनुशासन के खिलाफ है।

कोर्ट रूम से वकील को गिरफ्तार करने का आदेश, बहिष्कार झेलना पड़ा
18 दिसंबर, 2023 को जस्टिस अभिजीत ने अदालत की अवमानना के आरोप में एक वकील को अपने कोर्ट रूम से गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया। इस पर कलकत्ता हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय के बहिष्कार की घोषणा की। एसोसिएशन ने हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से अपील की थी कि जस्टिस गंगोपाध्याय से सभी न्यायिक कार्य वापस ले लिए जाएं।

उनका कहना था कि एसोसिएशन का कोई भी मेंबर उनकी अदालत में तब तक कदम नहीं रखेगा, जब तक वह संबंधित वकील और बार से माफी नहीं मांग लेते। दो दिन तक गंगोपाध्याय कोर्ट नहीं आए। उसके बाद बार एसोसिएशन से कहा कि उनकी इस गलतफहमी को भुला दिया जाए। तब कहीं जाकर एसोसिएशन ने बहिष्कार की जिद छोड़ी थी। इस मामले में जस्टिस गंगोपाध्याय को वकील की गिरफ्तारी का आदेश भी वापस लेना पड़ा था।

जस्टिस गंगोपाध्याय की राजनीतिक पारी किस करवट बैठेगी?
लंबे विवादों से भरे करियर के बाद अभिजीत इसी साल अगस्त में अपने पद से रिटायर होने वाले थे, लेकिन इससे पहले ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया। इस्तीफे के बाद अपने घर पर प्रेस कॉन्फ्रेंस करके उन्होंने ये भी कहा कि वह 7 मार्च को भाजपा में शामिल हो सकते हैं।

पश्चिम बंगाल में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने भी दावा किया था कि 7 मार्च को एक बड़ा नाम पार्टी में शामिल होगा। हालांकि, जस्टिस गंगोपाध्याय के इस्तीफे के बाद शुभेंदु का कहना है कि पहले इस्तीफा स्वीकार हो जाए, उसके बाद ही वह कोई टिप्पणी करेंगे।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अभिजीत के CPI जॉइन करने की भी खबरें चल रही थीं। हालांकि, उन्होंने किसी भी कीमत पर वामदल के साथ न जाने की वजह बताई और कहा, ‘मैं धर्म में विश्वास करता हूं। भगवान में विश्वास करता हूं। वे ऐसा नहीं करते।’

राजनीति में आने की मंशा के पीछे अभिजीत ने ये भी कहा कि सत्तारुढ़ TMC के तानों के चलते उन्हें इस निर्णय के लिए मजबूर होना पड़ा।

उन्होंने कहा कि, ‘सत्ता पक्ष ने कई बार मेरा अपमान किया। उनके प्रवक्ताओं ने मेरे खिलाफ असंसदीय शब्दों का इस्तेमाल किया। मुझे लगता है कि उनकी शिक्षा में समस्या है। TMC के नेताओं ने मुझे कई बार मैदान पर आकर लड़ने की चुनौती दी है, इसलिए मैंने उनकी इच्छा को पूरा करने का सोचा है।’

इस्तीफा देने से पहले जस्टिस अभिजीत ने इस्तीफे की वजह बताते हुए TMC पर उन्हें अपमानित करने का आरोप लगाया। (फोटो सोर्स- ANI)
इस्तीफा देने से पहले जस्टिस अभिजीत ने इस्तीफे की वजह बताते हुए TMC पर उन्हें अपमानित करने का आरोप लगाया। (फोटो सोर्स- ANI)

दरअसल, बीते साल सितंबर के महीने में TMC के प्रवक्ता कुणाल घोष ने कहा था कि अभिजीत को जज की कुर्सी छोड़कर राजनीति में आना चाहिए। कुणाल, कलकत्ता हाईकोर्ट में एक मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस अभिजीत के एक बयान को राजनीति से प्रेरित बता रहे थे। नाराजगी जाहिर करते हुए उन्होंने अभिजीत को राजनीति में आने की सलाह दी थी। कह सकते हैं कि ये सलाह अब अभिजीत ने मान ली है।

लोकसभा चुनाव लड़ने के सवाल पर जस्टिस अभिजीत का कहना है कि ये पार्टी तय करेगी कि वे चुनाव लड़ेंगे या नहीं। दो दिन पहले जब उन्होंने कहा था कि इस्तीफा देने के बाद राजनीति में आने वाले हैं। तब उनसे पूछा गया कि वे किस पार्टी में शामिल होंगे। उनका कहना था कि वे TMC छोड़कर BJP, कांग्रेस या वाम दल जॉइन कर सकते हैं। हालांकि, ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि वे BJP के टिकट पर तमलुक सीट से चुनाव लड़ेंगे।

अब जबकि जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय ने BJP में शामिल होने की घोषणा कर दी है तब उन पर आरोप लगाया जा रहा है कि उनके कई फैसले तटस्थ नहीं थे।

तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता अरूप चक्रवर्ती ने अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा है, ‘अब जबकि BJP के टिकट पर जस्टिस गंगोपाध्याय का चुनाव लड़ना लगभग तय है, ऐसे में उनके हाल के फैसलों की तटस्थता पर सवाल उठना लाजिमी है।’

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