बैलेट पेपर से छेड़छाड़ की थ्योरी क्या थी?
1971 का चुनाव: इंदिरा गांधी का दौर… बैलेट पेपर से छेड़छाड़ की थ्योरी क्या थी?
1970 के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर बैलेट पेपर से छेड़छाड़ के आरोप लगे थे. इस पूरी घटना ने उस समय काफी विवाद और खलबली मचा दी थी.
भारत में आजकल चुनावी माहौल है. चुनाव प्रचार जोरों पर चल रहा है. इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) पर हैकिंग के आरोपों ने चुनाव की पारदर्शिता पर एक बार फिर सवालिया निशान लगा दिया है. फिर से बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग तेज हो गई है, लेकिन क्या यह समाधान है?
1982 में पहली बार ईवीएम का इस्तेमाल केरल के एर्नाकुलम जिले में ट्रायल के रूप में किया गया था. देश में अब तक 148 विधानसभा और 4 लोकसभा चुनाव ईवीएम से हो चुके हैं. सबसे ज्यादा ईवीएम से छह बार छत्तीसगढ़ में चुनाव हुए.
इससे पहले भारत में बैलेट पेपर से ही चुनाव कराने का इतिहास रहा है. हालांकि, अगर चुनाव कराने के इतिहास के पन्ने पलटें जाएं तो पता चलता है कि बैलेट पेपर पर भी हैक होने के आरोप लगते रहे हैं.
इंदिरा गांधी के चुनाव जीतने पर कई लोगों ने आरोप लगाया कि चुनाव में धांधली हुई थी. इन आरोपों में से एक बहुत ही अजीब और चौंकाने वाला था.
उस समय चुनाव में धांधली करने का मतलब अक्सर ये होता था कि गुंडे मतदान केंद्रों पर कब्जा कर लेते थे. लेकिन 1971 चुनाव में एक आरोप बहुत अलग था. ये एक साइंस फिक्शन जैसी कहानी थी.
चुनाव आयोग ने अपनी पांचवीं जनरल रिपोर्ट (1971-72) में धांधली की इस पूरी थ्योरी में विस्तार से बताया है. इस स्पेशल स्टोरी में बैलेट पेपर से छेड़छाड़ कर चुनाव जीतने वाली पूरी थ्योरी समझेंगे.
इंदिरा गांधी पर क्या आरोप लगे
1971 में पांचवीं लोकसभा के लिए आम चुनाव हो गया था. इंदिरा गांधी ने बड़े अंतर से चुनावी जीत हासिल की थी. उनकी पार्टी लोकसभा की 518 में से 375 सीटें जीतीं थी.
चुनाव नतीजों के कुछ दिन बाद 20 मार्च 1971 को मुंबई से प्रकाशित होने वाले अखबार ब्लिट्ज में एक रिपोर्ट छपी, जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था. रिपोर्ट में दावा किया गया था कि बैलेट पेपर पर केमिकल का इस्तेमाल करके चुनाव में धांधली की गई.
ब्लिट्ज की रिपोर्ट के अनुसार, कुछ लोगों ने कैमिकल का इस्तेमाल करके बैलेट पेपर को इस तरह से बदल दिया था कि वोट इंदिरा गांधी की इंडियन नेशनल कांग्रेस (आर) पार्टी को ही गया. रिपोर्ट में दावा किया गया था कि यह कैमिकल केवल अल्ट्रावायलेट लाइट में ही दिखाई देता था.
कैमिकल से चुनाव में धांधली का आरोप
थ्योरी में दावा किया गया कि 1971 के लोकसभा चुनाव में 200 से 250 सीटों पर कुल मतदाताओं के कुछ फीसदी बैलेट पेपर को पहले से ही केमिकल का इस्तेमाल करके तैयार कर लिया गया. इन बैलेट पेपर पर पहले ही एक न दिखने वाली स्याही से मुहर लगा दी गई. दावा किया गया कि इस मुहर पर गाय और बछड़े बना हुआ था. उस समय गाय और बछड़ा कांग्रेस पार्टी का चुनाव चिन्ह था. ये ऐसी खास स्याही थी कि इस्तेमाल किए जाने के 72 घंटे बाद दिखाई देती थी और वोटर्स की असली स्याही गायब हो जाती थी.
कुछ लोगों का आरोप था कि पश्चिम बंगाल और अलीगढ़ में मतदान के तुरंत बाद ही गिनती कर ली गई, जिससे वहां मिले नतीजे अलग तरह के रहे. एक और आरोप ये था कि किसी मशीन की मदद से ये खास स्याही का निशान गाय और बछड़े की तस्वीर पर एक ही जगह पर लगाया गया था.
सबसे पहले किस नेता ने उठाया मुद्दा
ब्लिट्ज अखबार में ये रिपोर्ट कुछ विपक्षी नेताओं द्वारा आरोप लगाए जाने के बाद छपी थी. सबसे पहले भारतीय जनसंघ पार्टी के एक वरिष्ठ नेता और पूर्व अध्यक्ष बलराज मधोक ने दावा किया था कि देश में लगभग 3 करोड़ 27 लाख बैलेट पेपर पर एक खास कैमिकल छिड़का गया.
यह कैमिकल अदृश्य था जो चुनाव बाद स्वत: ही नजर आ जाता था. इस तरह 100 फीसदी वोट कांग्रेस पार्टी को मिल गया. मधोक ने यह भी बताया कि उन्हें यह जानकारी एक अज्ञात और इमानदार व्यक्ति से मिली है जो लोकतंत्र और देश को बचाना चाहता है.
हालांकि बलराज मधोक ने आरोप साबित करने के लिए कोई भी सबूत नहीं दिखाया और न ही बताया कि उन्हें यह जानकारी किस व्यक्ति से मिली. उन्होंने चुनाव में धांधली का आरोप लगाते हुए राष्ट्रपति और चुनाव आयोग से शिकायत की, मगर उनके आरोप खारिज कर दिए गए.
इसके बाद उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया. सितंबर 1971 में हाईकोर्ट ने बैलेट पेपर की जांच का आदेश दिया. मगर इंदिरा सरकार ने आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी और एक दिन के भीतर स्टे ले लिया.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला दिया
जस्टिस हेगड़े और जस्टिस खन्ना ने 22 अक्टूबर 1971 को अपने फैसले में इंदिरा सरकार की अपील खारिज कर दी. मगर हाईकोर्ट के आदेश को संशोधित कर दिया. कोर्ट ने सिर्फ 800 मतपत्रों की जांच करने का आदेश दिया. लेकिन इस जांच से कुछ खास नहीं निकला.
इसके बाद कोर्ट ने आरोपों को खारिज कर दिया. इसे एक बेबुनियाद और निराधार आरोप ही माना गया. बाद में मधोक ने 1973 में इस पूरे वाक्ये को अपनी लिखित एक किताब में प्रकाशित किया था.
यही नहीं, कई चुनाव याचिकाओं में ऐसे आरोप लगाए गए थे. ये याचिकाएं दिल्ली हाईकोर्ट, मैसूर हाईकोर्ट, बॉम्बे हाईकोर्ट, इलाहाबाद हाई कोर्ट आदि कई हाई कोर्ट्स में दाखिल की गई थीं. इन सभी आरोपों को न सिर्फ हाईकोट्स बल्कि सुप्रीम कोर्ट ने भी खारिज कर दिया था. साथ ही हर मामले में चुनाव आयोग को खर्च देने का आदेश दिया गया था.
चुनाव आयोग ने भी उठाए सवाल
चुनाव आयोग ने चुनाव में धांधली के आरोपों को बेतुका बताया. आयोग ने कहा कि ये लोग शायद भारत के संविधान को नुकसान पहुंचाना चाहते थे, पूरे देश में अफरातफरी मचाना चाहते थे और इस तरह देश के लोकतंत्र को ही खत्म कर देना चाहते थे.
आयोग ने सवाल उठाते हुए अपनी जनरल रिपोर्ट में कहा कि 200 से 250 सीटों पर धांधली का आरोप लगा. लेकिन, इतने बड़े क्षेत्र में पर धांधली करना नामुमकिन है.
इतने बड़े एरिया में धांधली के लिए करोड़ों मतदाताओं को साथ में लाना होगा. साथ ही, लाखों सरकारी कर्मचारियों, पुलिसवालों और सुरक्षाकर्मियों को भी शामिल करना होगा. इतने लोगों को मिलाकर धांधली करना बहुत ही मुश्किल है.
आयोग ने ये भी कहा कि असल में ये साफ नहीं बताया गया कि ये कैमिकल लगाने वाले मतपत्र कौन से थे. क्या ये वही मतपत्र थे जो सबसे सख्त सुरक्षा के साथ सरकारी प्रेस में छापे गए थे? ये वही थे जिनकी छपाई मुख्य चुनाव अधिकारी और उनके स्टाफ की निगरानी में हुई थी? ये भी नहीं बताया गया कि किसने और कहां पर मतपत्रों पर कैमिकल लगाया.
‘अगर ऐसा है तो इसकी अनुमति किसने दी? क्या इसके लिए किसी प्रयोगशाला की मदद नहीं पड़ी होगी? क्या पेपर मिलों के परिसर में ही ऐसी कोई प्रयोगशाला मौजूद है? इतनी बड़ी चुनाव धांधली की साजिश क्या पेपर मिल के हजारों मजदूरों से छिपी रह सकती थी? क्या कैमिकल लगाने के बाद कागज का रंग बदल गया?’
‘चुनाव में वोट चोरी’ का आरोप निराधार साबित होने के बाद क्या?
चुनाव में धांधली का आरोप उस वक्त निराधार साबित हो गया था, मगर इस घटना ने बैलेट पेपर से चुनाव की निष्पक्षता पर सवाल खड़े कर दिए थे. कई लोगों ने रिपोर्ट में लगाए गए आरोपों को सच माना, जबकि कई ने इसे राजनीतिक साजिश बताया.
अच्छी बात ये हुई कि ऐसे तमाम आरोप लगने के बाद चुनाव सिस्टम में कई बदलाव किए गए. बैलेट पेपर को बदलने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले कैमिकल प्रतिबंधित कर दिया गया. इसके अलावा, मतदान केंद्रों पर सुरक्षा व्यवस्था को भी मजबूत किया गया. यह घटना चुनाव में धांधली की संभावनाओं पर एक बड़ी बहस का कारण बनी. इस घटना ने चुनाव आयोग को चुनावी प्रक्रिया में बदलाव करने और ज्यादा सुरक्षित बनाने के लिए कई कदम उठाने के लिए प्रेरित किया.