बढ़ती आबादी के लिए कितने तैयार हैं हमारे शहर?
बढ़ती आबादी के लिए कितने तैयार हैं हमारे शहर?
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक साल 2050 तक शहरी आबादी में ढाई अरब अतिरिक्त लोग जुड़ जाएंगे। भारत में फिलहाल 50 करोड़ या 35 फीसदी आबादी शहरी है। 2050 तक देश की आबादी 167 करोड़ होने की उम्मीद है, इससे अतिरिक्त 33.5 करोड़ लोगों को शहरों में समाहित करने की जरूरत होगी। ज्यों-ज्यों पूरी दुनिया में शहरीकरण बढ़ रहा है, नए शहरों की योजनाओं के साथ उनका निर्माण भी जारी है।
शुरुआती दौर में शहर नदी किनारे की उपजाऊ भूमि पर बसे। करीब 7500 ईसा-पूर्व में मेसोपोटामिया में टाइग्रिस और यूफ्रेटस नदियों के बीच में एरिडु, उरुक और उर शहर बसे। मिस्र, भारतीय उपमहाद्वीप और चीन में क्रमश: नील, सिंधु और यलो नदियों के पास भी शहर बसे।
औद्योगिक क्रांति से शहरीकरण तेजी से बढ़ा, जिसके बाद इसमें कभी कमी नहीं आई। भीड़भाड़, पर्यावरण पर प्रभाव और हाशिए के लोगों की हालत देखते हुए शहरों को अक्सर कोसा जाता रहा है। हाालांकि, शहर भी मानवता के सर्वोत्कृष्ट आविष्कारों में से एक हैं।
ये प्राचीन काल से ही व्यापार, शिक्षा, संस्कृति, रोजगार, मुद्रा, प्रतिभा के केंद्र रहे हैं। ज्यों-ज्यों शहरों का विस्तार होता है, आर्थिक इकाइयां करीब आती हैं और लोग भी नौकरियों के लिए आते हैं। बढ़ता हुआ शहर समग्र आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है।
वैश्विक जीडीपी का 80% से ज्यादा हिस्सा शहरों से आता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक शहरों की आबादी दोगुनी होने से उत्पादकता में भी 2 से 5% का इजाफा होता है। पर शहर भी सेचुरेशन पॉइंट पर पहुंचते हैं, इसलिए नए शहर बसाने या मौजूदा शहरों का विस्तार करने की बात जंचती है।
दुनियाभर में सरकारें-निजी निवेशक भी नए शहर बसा रहे हैं। सिलिकॉन वैली के निवेशकों का एक समूह सैन-फ्रांसिस्को के निकट शहर बसा रहा है, जिसे फिलहाल कैलिफोर्निया फॉरएवर कहा जा रहा है। इसके पीछे वजह पश्चिम तटीय इलाके में हाउसिंग की कमी है। इसे इस तरह योजनाबद्ध किया जा रहा है, ताकि रहवासी दफ्तर या स्कूल बिना कार के पहुंच सकें, यह ‘15-मिनिट सिटी’ घर, दफ्तर व स्वच्छ ऊर्जा के लिए प्लान हो रही है।
बिल गेट्स भी एक स्मार्ट सिटी के रूप में एरिजोना में बेलमोंट नामक महानगर की योजना बना रहे हैं। यहां के निवासियों को सेंसर्स के जरिए ट्रैफिक के बारे में निर्देशित किया जाएगा या सलाह दी जाएगी कि नहाने का पर्यावरण अनुकूल समय कौन-सा है!
अरबपतियों और निजी निवेशकों ने अन्य शहरों का भी प्रस्ताव रखा है, जो इस तरह के आइडिया के साथ प्रयोग करेंगे, जिसमें भूमि का सामुदायिक मालिकाना हक हो और क्रिप्टो करेंसी को स्वीकार करने वाले इकोनॉमिक जोन हों।
मिस्र से लेकर नैरोबी और सऊदी अरब से लेकर भूटान तक, नए शहरों की योजना बनाई जा रही है, वे बसाए जा रहे हैं। कुछ शहर राजधानियों पर दबाव को कम करने के लिए बसाए जा रहे हैं तो कुछ को उद्योग और प्रकृति के साथ संयुक्त बसाहट के रूप में, जबकि कुछ को बौद्ध मंडल के आकार में ‘माइंडफुलनेस शहरों’ के रूप में योजनाबद्ध किया जा रहा है। भारत में भी 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुरूप आठ नए शहरों के प्रस्ताव विचाराधीन हैं। यह उन सौ स्मार्ट सिटी परियोजनाओं से अलग हैं, जो विभिन्न राज्यों में चल रही हैं।
नए शहरों को सड़कों, सीवरेज, सार्वजनिक स्थानों के मामले में अपनी बुनियादी चीजें ठीक करने की जरूरत है। योजना में शामिल ज्यादातर शहरों में हरे और पर्यावरण के अनुकूल जीवन पर फोकस है।
प्रकृति के साथ जुड़ाव, जलवायु के प्रति जागरूकता और नए विचारों में निवेश ही इन सभी नियोजित शहरों की यूएसपी है। शायद ज्यादातर सफल नहीं हों पर कुछ हो सकते हैं।
2050 तक हर तीन में से दो व्यक्ति शहरों में रहेंगे। ऐसे में नए शहरों के लिए नए विचारों में निवेश करना महत्वपूर्ण और अनिवार्य है।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)