ED …..शिकंजे में 85% नेता विपक्षी ?

केजरीवाल को गिरफ्तार करने वाली ED की कहानी:इसके शिकंजे में 85% नेता विपक्षी; ED कैसे बनी CBI, NIA से ताकतवर
21 मार्च की देर रात दिल्ली के CM अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार कर लिया। यह पहला मौका है जब किसी मुख्यमंत्री को पद पर रहते हुए गिरफ्तार किया गया है। ऐसा करने वाली जांच एजेंसी का नाम है- प्रवर्तन निदेशालय यानी ED।

पिछले कुछ सालों में ED की ताबड़तोड़ कार्रवाइयों ने सुर्खियां बटोरी हैं। इस जांच एजेंसी को अब CBI और NIA से भी ज्यादा ताकतवर माना जाता है। हालांकि, ED के शिकंजे में आए 85% नेता विपक्ष के ही होते हैं।

 केजरीवाल को गिरफ्तार करने वाली ED की कहानी। वो कैसे इतनी ताकतवर बनी और ED को लेकर इतने बेचैन क्यों रहते हैं विपक्ष के नेता…

गिरफ्तारी के बाद अरविंद केजरीवाल को ED ऑफिस ले जाया गया था। उन्हें रातभर लॉकअप में रखा गया।
गिरफ्तारी के बाद अरविंद केजरीवाल को ED ऑफिस ले जाया गया था। उन्हें रातभर लॉकअप में रखा गया।

एक छोटी सी यूनिट बनी देश की सबसे ताकतवर जांच एजेंसी
आजादी के बाद के सालों में विदेशों में चल रहे स्टॉक एक्सचेंज में लेन-देन करने वाले लोगों की जांच की जरूरत महसूस हुई। इसके लिए देश की आजादी के समय से एक कानून था- फॉरेन एक्सचेंज रेगुलेशन एक्ट यानी FERA 1947।

साल 1956 में देश में जवाहरलाल नेहरू की सरकार थी। इस दौरान आर्थिक मामलों के विभाग ने एक अलग यूनिट बनाने का प्रस्ताव रखा। इस यूनिट का नाम था- एन्फोर्समेंट यूनिट। एक साल बाद 1957 में इस यूनिट की शुरुआत हो गई। दिल्ली में इसका ऑफिस खोला गया और एक लीगल सर्विस अफसर इसका कर्ता-धर्ता बना दिया गया। ये इस यूनिट के डायरेक्टर थे।

इसके बाद RBI के एक अन्य अधिकारी को इस डायरेक्टर का असिस्टेंट बना दिया गया। साथ ही 3 इंस्पेक्टर रैंक के पुलिस अफसर भी इस यूनिट में शामिल किए गए। बॉम्बे, मद्रास और कलकत्ता में एन्फोर्समेंट यूनिट की तीन शाखाएं भी खोली गईं, क्योंकि इन तीनों शहरों में स्टॉक एक्सचेंज हुआ करते थे। इसके बाद इस संस्था का नाम बदलकर एन्फोर्समेंट यूनिट की जगह एन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट यानी ED रख दिया गया।

साल 1960 में ED का प्रशासनिक नियंत्रण आर्थिक मामलों के विभाग से लेकर राजस्व विभाग को दे दिया गया। कुछ वक्त बाद साल 1947 का ‘फॉरेन एक्सचेंज रेगुलेशन एक्ट’ निरस्त हो गया और इसकी जगह 1973 में आए नए फॉरेन एक्सचेंज रेगुलेशन एक्ट ने ले ली। माने FERA 1947 की जगह FERA 1973 आ गया। इसी नए कानून के तहत ED काम करने लगा। साल 1973 से साल 1977 तक ED पर डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनेल एंड एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म्स (कार्मिक एवं प्रशासनिक सुधार विभाग) का प्रशासनिक नियंत्रण रहा।

ED ने कई बड़े हाईप्रोफाइल लोगों से जुड़े मामले हैंडल किए। मसलन- महारानी गायत्री देवी, जयललिता, TTV दिनाकरण, हेमा मालिनी, विजय माल्या, रिलायंस के प्रतिद्वंद्वी ऑर्के ग्रुप, और BCCL के चेयरमैन अशोक जैन से जुड़े मामलों में FERA कानून के उल्लंघन के आरोप में ED ने जांच की।

FERA के तहत ED को बिना वारंट किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने या उसके ऑफिस में घुसने का अधिकार था। ED पर थर्ड डिग्री टार्चर के आरोप भी लगे। 90 के दशक तक ED का ज्यादा डर उद्योगपतियों के बीच ही रहा।

साल 2000 में FERA को इसके बहुत सख्त होने के चलते निरस्त कर दिया गया। इसकी जगह पर आए FEMA कानून के तहत विदेशी मुद्रा से जुड़े अपराधों को सिविल ऑफेंस में बदल दिया गया। इसके चलते अब ED लोगों को गिरफ्तार कर हिरासत में नहीं रख सकती थी।

साल 2002 में केंद्र में अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार थी। इस दौरान प्रिवेंशन ऑफ मनी लांड्रिंग एक्ट यानी PMLA संसद में पेश किया गया। 2004 में कांग्रेस की अगुआई वाले UPA गठबंधन की सरकार बनी। पी चिदंबरम वित्त मंत्री थे।

1 जुलाई को 2005 को UPA सरकार ने अटल सरकार के समय बने PMLA कानून को लागू कर दिया। फिर UPA सरकार ने ही 2012 में PMLA (संशोधन) अधिनियम लाकर इसके तहत आने वाले अपराधों का दायरा बढ़ाया।

इनमें धन छुपाने, अधिग्रहण और धन के आपराधिक कामों में इस्‍तेमाल को शामिल किया गया। इस संशोधन की बदौलत ED को कुछ और विशेषाधिकार मिले। मसलन, PMLA, ED को राजनीतिक घोटालों पर कार्रवाई का भी अधिकार देता है।

इसके बाद विदेशों में शरण ले लेने वाले आर्थिक मामलों के अपराधियों की तादाद बढ़ी, तो इनसे निपटने के लिए BJP की अगुआई वाली NDA सरकार ने साल 2018 में ‘भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम’ (FEOA) पास कर दिया। इस कानून के तहत कार्रवाई करने की जिम्मेदारी भी ED के पास आ गई।

मामला ED के हाथ में कब जाता है?
जब किसी थाने में 1 करोड़ रुपए या उससे ज्यादा की रकम गलत तरीके से कमाने का मामला दर्ज हो तो ये सूचना पुलिस ED को देती है। इसके अलावा अगर ऐसा कोई मामला ED के स्वतः संज्ञान में आए तो वो खुद थाने से FIR या चार्जशीट की कॉपी मांग सकती है। इसके बाद ED यह देखती है कि मामला मनी लॉन्ड्रिंग का तो नहीं है।

CBI और NIA से भी ज्यादा पावर ED के पास
2020 का वो किस्सा याद कीजिए। जब एक के बाद एक 8 राज्यों ने CBI को अपने यहां बिना परमिशन घुसने से रोक दिया था। इनमें पंजाब, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, केरल और मिजोरम जैसे राज्य शामिल थे।

मतलब साफ है कि दिल्ली पुलिस स्पेशल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट 1946 के तहत बनी CBI को किसी भी राज्य में घुसने के लिए राज्य सरकार की अनुमति जरूरी है। हां, अगर जांच किसी अदालत के आदेश पर हो रही है तब CBI कहीं भी जा सकती है। पूछताछ और गिरफ्तारी भी कर सकती है। करप्शन के मामलों में अफसरों पर मुकदमा चलाने के लिए CBI को उनके डिपार्टमेंट से भी अनुमति लेनी होती है।

इसी तरह नेशनल इंवेस्टिगेटिंग एजेंसी यानी NIA को कानूनी ताकत NIA Act 2008 से मिलती है। NIA पूरे देश में काम कर सकती है, लेकिन उसका दायरा केवल आतंक से जुड़े मामलों तक सीमित है।

इन दोनों से उलट ED केंद्र सरकार की इकलौती जांच एजेंसी है, जिसे मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में नेताओं और अफसरों को तलब करने या उन पर मुकदमा चलाने के लिए सरकार की अनुमति की जरूरत नहीं है। ED छापा भी मार सकती है और प्रॉपर्टी भी जब्त कर सकती है। हालांकि, अगर प्रॉपर्टी इस्तेमाल में है, जैसे मकान या कोई होटल तो उसे खाली नहीं कराया जा सकता।

मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट में ED जिसे गिरफ्तार करती है, उसे जमानत मिलना भी बेहद मुश्किल होता है। इस कानून के तहत जांच करने वाले अफसर के सामने दिए गए बयान को कोर्ट सबूत मानता है, जबकि बाकी कानूनों के तहत ऐसे बयान की अदालत में कोई वैल्यू नहीं होती।

18 साल में 148 प्रमुख नेता ED के शिकंजे में, इनमें 85% विपक्षी नेता
साल 2022 में इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि ED ने पिछले 18 साल में 147 प्रमुख राजनेताओं की जांच की। इनमें 85% विपक्षी नेता थे।

वहीं 2014 के बाद NDA शासन के 8 सालों में नेताओं के खिलाफ ED के इस्तेमाल में 4 गुना बढ़ोत्तरी हुई है। इस दौरान 121 राजनेता जांच के दायरे में आए जिनमें 115 विपक्षी नेता हैं। यानी इस दौरान 95% विपक्षी नेताओं पर कार्रवाई हुई।

UPA शासन यानी 2004 से 2014 के बीच ED ने सिर्फ 26 राजनेताओं की जांच की। इनमें विपक्ष के 14 यानी करीब 54% नेता शामिल थे।

ED ने करीब 6 हजार केस दर्ज किए, सजा 0.4% में हुई
विपक्षी दलों की ओर से सवाल उठाए जाने के बाद ED ने 31 जनवरी 2023 तक दर्ज केसों के बारे में डेटा जारी किया था। ED के मुताबिक, PMLA कानून आने के बाद से 31 जनवरी 2023 तक 5,906 केस दर्ज किए गए। इनमें से सिर्फ 2.98% यानी 176 केस विधायक, पूर्व विधायक, MLC, सांसद, पूर्व सांसदों के खिलाफ दर्ज किए गए।

इन केसों में से 1,142 में चार्जशीट दाखिल की जा चुकी हैं, जबकि 513 लोगों को गिरफ्तार किया गया। इनमें से 25 केस में ट्रायल पूरा हो चुका है। 24 केसों में आरोपी दोषी ठहराए गए हैं, जबकि एक मामले में आरोपी को बरी कर दिया गया। ED के मुताबिक मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत के तहत इन 24 केसों में 45 आरोपी दोषी पाए गए हैं।

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