UP में कैसे हुई चर्चित गैंगस्टर्स की संदिग्ध मौत ?
विकास दुबे से अतीक और मुख्तार तक …
UP में कैसे हुई चर्चित गैंगस्टर्स की संदिग्ध मौत; जांच में क्या निकला
विकास दुबे से अतीक अहमद और मुख्तार तक; तमाम गैंगस्टर्स की मौतों पर सवाल खड़े हुए जांच बिठाई गई। मंडे मेगा स्टोरी में ऐसे ही कस्टडी में मौत और एनकाउंटर में मारे गए कुछ चर्चित गैंगस्टर्स की कहानी और जांच की स्टेटस रिपोर्ट…
संविधान में एनकाउंटर का जिक्र नहीं, कस्टडी में मौत की मजिस्ट्रेट जांच जरूरी
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील आशीष पांडेय के मुताबिक, ‘भारतीय संविधान में एनकाउंटर जैसा कोई शब्द नहीं है। ये पुलिसिया कार्रवाई के दौरान इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है।
कस्टडी में मौत को लेकर CrPC में साल 2015 में 176-1 (A) प्रावधान जोड़ा गया। इसके अनुसार किसी व्यक्ति की न्यायिक हिरासत में मौत होने, उसके गायब होने या बलात्कार होने के मामले में मजिस्ट्रेट जांच जरूरी है। इसके तरीके को लेकर भी अलग-अलग मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिए हैं और जरूरत पड़ने पर हस्तक्षेप किया है।
मामले की शुरुआती जांच अक्सर उन्हीं पुलिसकर्मियों द्वारा की जाती है, जिनकी हिरासत में व्यक्ति की मौत हुई हो। ऐसे में कई बार मौत के स्पष्ट कारण का पता नहीं चल पाता। ऐसे मामलों में स्थानीय पुलिस और डॉक्टर्स द्वारा पक्षपात करने की आशंका बनी रहती है।
आशीष कहते हैं, ‘हिरासत में हुई मौत को लेकर कई सख्त निर्देश होने के बावजूद प्रक्रिया की कमियों के चलते एक सीमा से ज्यादा जांच नहीं हो पाती, जब तक कि सरकार खुद न चाहे।’
उत्तर प्रदेश में बढ़े एनकाउंटर पैटर्न और हिरासत में हुई मौतों पर वरिष्ठ पत्रकार अभय दुबे कहते हैं…
- जनता के बीच प्रभाव रखने वाले बाहुबलियों पर कानूनी कार्रवाई लंबी, उबाऊ और ज्यादातर बिना निष्कर्ष के होती है। इस प्रक्रिया में समाज का धैर्य खत्म हो जाता है। जनता, खास तौर पर माध्यम वर्ग के लोग चाहते हैं कि ऐसे लोगों का तुरंत न्याय किया जाना चाहिए। प्रशासन भी जनता की इस भावना को समझता है। जनता सोचती है कि यह ठीक ही हो रहा है।
- उत्तर प्रदेश में सरकार खुद बाहुबली की भूमिका निभा रही है, इसका उसे राजनीतिक फायदा हो रहा है। समाज का एक बड़ा वर्ग इसे सकारात्मक नजरिए से देखता है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री खुलेआम कहते हैं कि आप सरेंडर कर दीजिए या गोली खाने के लिए तैयार रहिए। इस बात को इस तरह पेश किया जाता है कि ये प्रशासन का कानून व्यवस्था सुधारने का तरीका है।
- अपराधियों को गिरफ्तार करने, जांच करके मुकदमा चलाने के बजाय उत्तर प्रदेश पुलिस तय करती है कि हम ‘ऑपरेशन लंगड़ा’ चलाएंगे और वह अपराधियों की टांगों पर गोली मारती है। कानूनी प्रक्रिया के बजाय शॉर्टकट अपनाया जाता है।
- यह हमारी कानून की प्रणाली, राजनीतिक प्रणाली और प्रशासन का मिला-जुला दुष्परिणाम है। दुनिया में 25 से 30 साल बाद सिस्टम में सुधार होते हैं। हमारे यहां आज तक न चुनाव सुधार हुए हैं, न पुलिस रिफॉर्म्स हुए हैं और न ही न्यायिक सुधार हुए हैं। हर सरकार, भले ही वह बहुमत की सरकार हो, एक लंबा दीर्घकालीन ब्लू प्रिंट बनाकर ये सुधार कभी नहीं करती। देश में राजनीतिक लोकतंत्र है, देश की सरकार का काम है कि वह सुधार के प्रयास करे।
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