हाइवे होंगे हरे-भरे!

हाइवे होंगे हरे-भरे! ‘मायावाकी’ के जरिए राजमार्गों पर लगेंगे पेड़? यहां समझिए क्या है ये पद्धति
दुनियाभर में तापमान के बढ़ने का सबसे बड़ा कारण क्लाइमेट चेंज माना जा रहा है. इसके अलावा ईंधन का ज्यादा इस्तेमाल और शहरीकरण के चक्कर में पेड़ों का काटा जाना भी बढ़ती गर्मी का एक कारण है.

इस साल भारत समेत दुनिया के लगभग सभी देशों में पिछले सालों की तुलना में ज्यादा गर्मी पड़ रही है. भारत में तो गर्मी का आतंक इतना ज्यादा है कि केवल एक राज्य यानी यूपी में अब तक हीट वेव से 51 लोगों की मौत हो चुकी है. 

एक्सपर्ट की मानें तो दुनियाभर में तापमान के बढ़ने का सबसे बड़ा कारण क्लाइमेट चेंज माना जा रहा है. इसके अलावा ईंधन का ज्यादा इस्तेमाल और शहरीकरण के चक्कर में पेड़ों का काटा जाना भी बढ़ती गर्मी का एक कारण है.

भारत की बात की जाए तो यहां बड़े बड़े शहरों में पेड़ को काट के सड़के तो बना दी गई है. लेकिन इसी चिलचिलाती गर्मी में अगर किसी व्यक्ति को सड़कमार्ग से सफर करना पड़ जाए, तो कई किलोमीटर तक बिना पेड़े के छांव और ठंडी हवा के सफर करने से उसकी हालत खराब हो जाती है. 

राष्ट्रीय राजमार्ग (National Highway) से सफर करते वक्त होने वाली इसी तरह की परेशानियों को देखते हुए भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) ने बीते मंगलवार को घोषणा की है कि जल्द ही दिल्ली-एनसीआर और उसके आसपास के हाईवे के किनारे पेड़ लगाने का काम शुरू किया जाएगा.

भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की घोषणा के अनुसार दिल्ली-NCR में नेशनल हाईवे के किनारे अलग-अलग इलाकों में कुल 53 एकड़ क्षेत्र में पेड़ लगाए जाएंगे. सबसे खास बात ये है कि ये वृक्षारोपण आम तरीके से नहीं बल्कि मियावाकी तकनीक (Miyawaki plantations) का इस्तेमाल करते हुए किया जाएगा. 

ऐसे में इस रिपोर्ट में विस्तार से समझाते हैं कि आखिर मियावाकी तकनीक होती क्या है, इससे क्या लाभ हैं. 

कहां से आई मियावाकी तकनीक

भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने जिस मियावाकि तकनीक की मदद से पेड़ लगाने की बात कही है. उस तकनीक का इस्तेमाल आमतौर पर पॉकेट वनों को लगाने के लिए किया जाता है, जिससे जैव विविधता का निर्माण किया जा सके. 

इसी तकनीक का इस्तेमाल शहरी क्षेत्रों को पुनर्जीवित करने के लिए भी किया जाता है. जापान के बॉटनिस्ट डॉ. अकीरा मियावाकी ने कई दशक पहले इस तकनीक को विकसित किया था. इसकी मदद से बेहद ही कम या बंजर जमीन में भी तीन तरह के पौधे (झाड़ीनुमा, मध्यम आकार के पेड़ और छांव देने वाले बड़े पेड़) लगाकर जंगल उगाए जा सकते हैं. 

यह कार्यविधि 1970 के दशक में विकसित की गई थी, जिसका मूल उद्देश्य भूमि के एक छोटे से टुकड़े के भीतर हरित आवरण को सघन बनाना था. इस पद्धति में पेड़ काफी जल्दी अपना विकास करता है और तीन सालों के भीतर वे अपनी पूरी लंबाई तक बढ़ जाते हैं.

मियावाकी पद्धति में इस्तेमाल किये जाने वाले पौधे ज़्यादातर आत्मनिर्भर होते हैं और उन्हें खाद और पानी देने जैसे नियमित रख-रखाव की जरूरत नहीं होती है.

मियावाकी तकनीक की खासियत ही यही है कि इससे पेड़ उगाना इतना आसान है कि कोई भी व्यक्ति बगीचे या आसपास की खुली जगह में भी मियावाकी जंगल उगा सकता है. अब इस तकनीक की मदद से दुनियाभर में तक तीन हजार से भी ज्यादा जंगल उगाए जा चुके हैं. 

कैसे उगाया जाता है कि इस तकनीक से जंगल 

मियावाकी तकनीक में दो तरीके से जंगल या पेड़ लगाए जाते हैं. पहले तरीके में किसी बड़े हिस्से में पेड़ों को विकसित किया जाता है, और दूसरे तरीके में घर के आसपास या बगीचे में. इन दोनों ही तरीकों में अलग-अलग जगह होने के कारण पौधों की संख्या के हिसाब से कुछ जरूरी बातें ध्यान में रखनी होती है.  

1. मियावाकी तकनीक से पेड़ लगाने का पहला नियम है कि पेड़ या पौधे का चयन वहां की मिट्टी और आबोहवा के अनुकूल होना चाहिए. इस तकनीक के तहत ऐसे पौधे चुनें जाते हैं जो इस इलाके की मूल प्रजाति है. 

2. अब जिस इलाके या जमीन पर इस तकनीक से पड़े उगाए जा रहे हैं सबसे पहले वहां की जमीन को कम से कम 3 फीट गहरा खोदा जाता है और वहां की मिट्टी की जांच की जाती है. एक बार जांच पूरी हो जाने पर उसी मिट्टी के अनुकूल पौधों के बीजों को तलाश कर नर्सरी में छोटे पौधे उगा लिए जाते हैं. 

3. जिस जगह पर पेड़ लगाना है वहां 3 फीट गहरा खड्डा खोद कर वहां की मिट्टी की उर्वरता को बेहतर बनाने के लिए उसमें चावल का भूसा, गोबर, जैविक खाद या नारियल के छिलके डालकर ऊपर से मिट्‌टी डाल दी जाती है. 

4. अब पहले से जो पौधे नर्सरी में उगा लिए गए हैं उसे आधे-आधे फीट की दूरी पर इस मिट्टी में लगा दिए जाते हैं. इस तकनीक के तहत तीन तरह के पौधे – झाड़ीनुमा पौधे, मध्यम आकार के पेड़ और इन दोनों पर छांव, नमी और सुरक्षा देने वाले बड़े पेड़ लगाएं जाते है. ये पौधे एक-दूसरे को बढ़ने और जमीन की नमी बरकरार रखने में मदद करते हैं. 

5. पौधे को लगा दिए जाने के बाद इसके आसपास घास-फूस या पत्तियां डाल दी जाती है ताकि धूप मिट्टी की नमीं को खत्म न कर सकें.

इस पांच प्रक्रिया से गुजरने के बाद मियावाकी जंगल का बेसिक स्ट्रक्चर लगभग तैयार हो जाता है, बस इसके बाद मौसम के अनुसार इन पौधों पर पानी देने और देखरेख की व्यवस्था करने की जरूरत होती है.

इस तकनीक के तहत उगाए जाने वाले पेड़ों को सिर्फ दो से तीन साल तक की देखरेख की जरूरत होती है, चौथे साल से यह आत्मनिर्भर जंगल की तरह विकसित हो जाता है. 

मियावाकी टेकनिक से कितने पौधे लगाए जा सकते हैं

एक्सपर्ट के अनुसार इस तकनीक की मदद से 2 फीट चौड़ी और 30 फीट पट्टी में 100 से भी ज्यादा पौधे रोपे जा सकते हैं. इतना ही इस तकनीक की मदद से बेहद ही कम खर्च में पौधे को 10 गुना तेजी से उगाने के साथ 30 गुना ज्यादा घना बनाया जा सकता है. 

पौधे का चयन बेहद जरूरी 

एक्सपर्ट की मानें तो इस तकनीक से पौधे लगाने के लिए सबसे जरूरी है सही पौधे का चयन करना. मियावाकी तकनीक से ज्यादातर बांस, शीशम, पीपल, बरगद जैसे छायादार पौधे लगाए जाते हैं. इसके अलावा अगर आपको बगीचे या घर के पिछले हिस्से में जंगल विकसित करना है तो झाड़ीनुमा पौधे लगाएं ताकि ये छोटे से हिस्से में आसानी से बढ़ सकें.         

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