पहले दिल्ली और अब मुंबई … थोड़ी सी बारिश में क्यों डूब रहे शहर?

पहले दिल्ली और अब मुंबई, थोड़ी सी बारिश में क्यों डूब रहे शहर? जानें सब कुछ
किसी सीमित क्षेत्र में एक घंटे में 10 सेंटीमीटर से अधिक बारिश होने को ‘बादल फटने’ की घटना कहते हैं। मुंबई में भारी बारिश बादल फटने की घटना के आधे के बराबर है, लेकिन किसी शहर की सीमित जल निकासी व्यवस्था इस बारिश को ‘बहुत अधिक’ में तब्दील कर देती है।

बीती रात से सुबह के बीच लगभग छह घंटे में मुंबई में रिकॉर्ड 300 मिलीमीटर की बारिश हुई है। कुछ क्षेत्रों में 315 मिमी तक बारिश रिकॉर्ड की गई है। भारी बारिश के कारण मुंबई में जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। बारिश के कारण दर्जनों ट्रेनों को स्थगित करना पड़ा है, जबकि कई अन्य को दूसरे रूट पर डायवर्ट कर दिया गया है। मौसम विभाग ने अगले 24 घंटे के लिए मुंबई और आसपास के इलाकों में ऑरेंज अलर्ट जारी किया है। यानी मुंबई में बारिश की आफत अभी टलने वाली नहीं है। पूरी मुंबई बारिश के कारण ठहर सी गई है। 

इससे पहले 28 जून को दिल्ली में भारी बारिश दर्ज की गई थी। उस दिन राजधानी क्षेत्र में 88 सालों में सबसे ज्यादा बारिश हुई थी और दिल्ली-एनसीआर में रिकॉर्ड तोड़ 228.1 मिमी पानी गिरा था। इससे पूरे दिल्ली-एनसीआर में हालत बहुत खराब हो गई थी। इस दौरान कई जगहों पर सड़कों के धसने, मकान के गिरने और पेड़-पौधों की उखड़ने के समाचार मिले थे। मुंबई की तरह उस दिन दिल्ली और आसपास के इलाकों बारिश के कारण में पूरी तरह ठहराव आ गया था। 

किसी सीमित क्षेत्र में एक घंटे में 10 सेंटीमीटर से अधिक बारिश होने को ‘बादल फटने’ की घटना कहते हैं। मुंबई में भारी बारिश बादल फटने की घटना के आधे के बराबर है, लेकिन किसी शहर की सीमित जल निकासी व्यवस्था इस बारिश को ‘बहुत अधिक’ में तब्दील कर देती है। शहरी मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि किसी घने बसे शहर में जल निकासी की व्यवस्था एक सीमित तरीके से ही विकसित की जा सकती है। मुंबई-दिल्ली जैसे पुराने बसे शहरों में भूमि की कमी होने के कारण बढ़ी आबादी के अनुपात में जल निकासी की व्यवस्था कर पाना बहुत मुश्किल है। ऐसे शहरों में सीमित जल निकासी की व्यवस्था छोटी बारिश के भी गंभीर परिणाम पैदा करती है। ऐसे में बारिश के नकारात्मक असर से बचने के क्या उपाय हो सकते हैं? 

शहरी मामलों के विशेषज्ञ जगदीश ममगाई ने अमर उजाला से कहा कि पूरे देश के मौसम में ही इस तरह का बदलाव देखा जा रहा है कि पहले तो काफी समय तक बारिश नहीं होती, लेकिन अचानक बेहद सीमित समय में बहुत अधिक बारिश हो जाती है। अचानक भारी बारिश होने से शहर का ड्रेनेज सिस्टम उसे संभालने में बुरी तरह असफल रहता है। जल निकासी की व्यवस्था अपर्याप्त रहने के कारण पूरा शहर डूबने लगता है और शहर ठहर जाता है। किसी भी शहर के लिए इस तरह की भारी बारिश से निपट पाना आसान नहीं है। 

गरीब वर्ग सबसे अधिक प्रभावित
भारी बारिश से अमीर-गरीब हर वर्ग प्रभावित होता है, लेकिन सबसे ज्यादा असर उन दिहाड़ी मजदूरों और श्रमिकों पर पड़ता है, जो रोज मेहनत कर अपना जीवन यापन करते हैं। चूंकि, अधिकांश शहरों में यह वर्ग अवैध इलाकों में बनी झुग्गी-झोपड़ी में निवास करता है। अवैध इलाकों में बसे होने के कारण भी ये क्षेत्र नगर निगम की प्राथमिकता में नहीं आते, लिहाजा यहां जल निकासी की उचित व्यवस्था भी नहीं होती। यही कारण है कि बारिश में सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में ये इलाके सबसे प्रमुख होते हैं। इन वर्गों को भारी बारिश से बचाने का सबसे कारगर उपाय यही हो सकता है कि उन इलाकों में ही रोजगार की संभावनाएं विकसित की जाएं, जहां से ये वर्ग आते हैं। इससे आर्थिक विकेंद्रीकरण होगा, दूसरे क्षेत्रों को भी विकास करने का अवसर मिलेगा। साथ ही इन गरीब लोगों को भी भारी बारिश और बेतहाशा गर्मी से बचाया जा सकेगा। 

नालों की सफाई, जल भंडारण केंद्र
ज्यादातर शहर कंक्रीट की चादर के नीचे ढकते जा रहे हैं। शहरों में जल भूमि के अंदर नहीं पहुंच पा रहा है। इससे दोतरफा नुकसान होता है। बारिश के समय पानी भूमि के अंदर नहीं जा पाता, इससे बारिश के कारण अधिक नुकसान होता है, जबकि भूमि के अंदर पानी न जा पाने के कारण गर्मी के समय लोगों को पीने के लिए पानी नहीं मिलता। इससे बचने के लिए शहरों में आवासीय क्षेत्र के बीच में बने पार्कों, सड़कों के दोनों तरफ कुछ दूरी पर और अन्य इलाकों में तालाब, झील या अन्य जल संग्रहण केंद्रों की स्थापना की जानी चाहिए। पुराने झील, तालाब को पुनर्जीवित किया जाना चाहिए। वर्षा ऋतु के पूर्व शहर के नालों की डिसिल्टिंग भी बारिश के कहर से बचने में मदद कर सकती है।

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