पानी की कमी देश के लिए बड़ी समस्या ?
पानी की कमी देश के लिए बड़ी समस्या, इसका सीधे पड़ेगा अर्थव्यवस्था पर असर
पानी की कमी से देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ कृषि पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, पैदावार कम हो जायेगी. जिससे खाद्य पदार्थों की सब्सिडी बढ़ानी होगी , मतलब सरकार के खजाने पर बोझ बढ़ जाएगा. इसके अलावा कृषि निर्यात में कमी आएगी. जिससे विदेशी मुद्रा के भंडारण पर प्रभाव पड़ेगा. जिसका सीधा सम्बन्ध देश की घटती आर्थिक मजबूती से होगा, क्योंकि 1947 में 60% से आज कृषि क्षेत्र का भारत की जीडीपी में लगभग 15% पहुंच गयी है. इसके अलावा देश की आधी अधिक जनसंख्या रोजी- रोजगार के लिए कृषि पर निर्भर है. अतः कृषि में उपज का घटना अर्थव्यवस्था के साथ-साथ सामाजिक विषमताओं को जन्म देगा.
पानी की कमी के कारण कृषि पर भी प्रभाव
एक अध्ययन के अनुसार पानी की कमी के कारण सकल घरेलू उत्पाद में 6% तक की कमी दर्ज की जा सकती है. इसका मूल कारण पानी की कमी के कारण लगभग 60% कृषि भूमि पर खेती हो की जा सकती है. विशेष कर उन फसलों का उत्पादन प्रभावित होगा जो पूरी तरह से जल पर निर्भर करती है. जैसे गेहूं, मक्का, धान, सोयाबिन, गन्ना आदि फसलों के उत्पादन में गिरावट होगी.
कृषि उत्पादन में भारत दूसरे नंबर पर है, कपास का सबसे बड़ा निर्यातक भारत है. इसके अलावा भारत दुनिया के प्रमुख खाद्य पदार्थ गेहूं और चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है. भारत वर्तमान में कई सूखे मेवों, कृषि-आधारित कपड़ा कच्चे माल, जड़ों और कंद फसलों, दालों, खेती की मछली, अंडे, नारियल, गन्ना और कई सब्जियों का दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है. जिससे स्पष्ट है कि भारत के विदेशी मुद्रा के भंडारण में कमी आएगी. पिछले 15 वर्षों में भारतीय कृषि उत्पादन 12% की वार्षिक वृद्धि के साथ 87 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 459 बिलियन डॉलर हो गया है. इससे पूरी तरह स्पष्ट है कि पानी की कमी चलते कृषि और उद्योग को मिलाकर लगभग 1000 बिलियन डॉलर का नुकसान भारत को झेलना पड़ सकता है. कृषि उद्योग के अलावा जो प्राकृतिक घटनाये है जैसे जंगल की आग जिनका सीधा सम्बन्ध जल से है.
पानी सभी के क्षेत्र के लिए जरूरी
ये जंगल की आग पानी की कमी से अपना क्षेत्रफल बढ़ा लेगी. जैसा कि पिछले कुछ समय से भारत सहित दुनिया भर के कई देश जंगलों में लगी आग से प्रभावित हुए हैं. इनमें सरकारों को अरबों रुपये का नुकसान उठाना पड़ा है. एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत के 60 फीसदी जिले हर साल जंगल की आग से बुरी तरह प्रभावित होते हैं. आग लगने की इन घटनाओं से देश को हर साल करीब 1,100 करोड़ रुपये का नुकसान होता है. आज कृषि निर्यात में विश्व में भारत का स्थान 9वां है जो घट सकता है. भारत दुनिया का सबसे बड़ा भू-जल उपयोगकर्ता है. एक अध्ययन के अनुसार 2007 से 2017 तक यानी पिछले 10 वर्षों में भारत में भू जल स्तर में 61% की कमी आयी है. जबकि आकड़ों के हिसाब से भारत का स्थान बांधो को लेकर पूरे विश्व में तीसरा है.
सिर्फ भारत ही नहीं पूरे विश्व में 17 देश ऐसे है जिनको “डे जीरो” का सामना करना पड़ेगा. दुनिया के सैकड़ों शहर जल की कमी से परेशान होंगे. जैसा कि दक्षिण अफ्रीका का केपटाउन अपने इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है. कुछ इसी तरह का हाल भारत का है. सटेलिते डाटा के माध्यम से पता चला है कि पिछले 70 सालों में पूरे उत्तर भारत में बारिश की मात्रा 8.5% कम हो गयी है. जिसके चलते उत्तर भारत के किसान और उद्योगपति 450 क्यूबिक किलोमीटर भूमि गत जल पिछले 20 सालो में उपयोग कर चुके है. जो की किसी भी बड़े बांध की भंडारण क्षमता का पचासों गुना है. अगर उद्योगों कर दृष्टिकोण से देखा जाए तो 2016 में सूखे के चलते 100 बिलियन अमरीकन डॉलर का नुकसान हुआ था. जो अब शायद दो से तीन गुना हो गया होगा, क्योंकि पानी की कमी कारण स्टील, तापीय बिजली संयंत्र, पेट्रोकेमिकल आदि महत्वपूर्ण उद्योग बंद होने कगार पर आ जायेंगे.
क्या है इसके समाधान
पानी की कमी की समस्या से निपटने के लिए विश्व में पंचमहाभूतों के संरक्षण के लिए एक एकीकृत कार्यक्रम चलाया जाए, तभी हम प्राकृतिक आपदाओं को हल करने में सफल हो सकते है. तकनीकी का प्रयोग करके हम सूक्ष्म सिंचाई के माध्यम से अगर 10% पानी भी बचा लें तो देश के सभी शहरों की पानी की समस्या दूर हो जायेगी. इसी तरह सरकार पिछले 3 सालों से कृषि क्षेत्र के बजट में कटौती करती जा रही है, उसको कम न करके बढ़ाया जाए ताकि कृषि के भीतर विविधिकरण बागवानी, डेरी, मछली पालन, सब्जी, कृषि उत्पादों का प्रसंस्करण को बढ़ावा मिल सके. इसके अलावा ढेर सारा पैसा खर्च करने के बावजूद बांधो के निराशाजनक प्रदर्शन को देखते हुए तालाबों पर और कार्य किया जाए, ताकि स्थानीय समस्याओं से लेकर वैश्विक समस्याओं का भी समाधान तलाशा जा सके.
क्योंकि तालाबों से बांधो की अपेक्षा कई ऐसे फायदे है, जिनको तकनीकी, सामाजिक, आर्थिक, और पर्यावरणीय दृष्टि से नकारा नहीं जा सकता है. इसी तरह कृषि के लिए भी विश्व के किसानों द्वारा आज की जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक समस्याओं को हल करने के लिए एकीकृत माध्यम अपनाया जाए, जिसमें बागवानी, पशु पालन, सब्जी, डेरी आदि को एक साथ लेकर आवर्तन शील अर्थशास्त्र के आधार पर अगर कृषि की जाए तो बहुत सी ऐसी समस्याओं से हम छुटकारा पा सकते है. जिनके समाधान के लिए विश्व के नीति निर्माता दशकों से प्रयासरत है.
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