SC कोटे में कोटा फैसले का एनालिसिस !
SC कोटे में कोटा फैसले का एनालिसिस …
जो दलित आरक्षण से अफसर बने, क्या उनके बच्चों को नहीं मिलेगा रिजर्वेशन
अनुसूचित जाति के रिजर्वेशन में अब कोटा दिया जा सकेगा। सुप्रीम कोर्ट ने ये ऐतिहासिक फैसला उन याचिकाओं पर सुनाया है, जिनमें कहा गया था कि अनुसूचित जाति और जनजातियों के आरक्षण का फायदा उनमें शामिल कुछ ही जातियों को मिला है। इससे कई जातियां पीछे रह गई हैं।
7 जजों की संविधान बेंच ने 6 अलग-अलग फैसले लिखे। बेंच में शामिल जस्टिस पंकज मिथल ने अपने फैसले में कहा कि जिस परिवार ने एक बार आरक्षण का फायदा उठा लिया, उसे अगली पीढ़ी में आरक्षण का फायदा नहीं लेने देना चाहिए। ऐसे परिवारों के लिए आरक्षण सिर्फ एक पीढ़ी तक सीमित होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद क्या कुछ जातियों या लोगों को क्रीमी लेयर में शामिल कर आरक्षण से बाहर किया जा सकेगा, क्या ये आरक्षण सिर्फ सरकारी नौकरी के लिए है, इस फैसले का राजनीतिक असर क्या होगा; …. एक्सप्लेनर में ऐसे 10 जरूरी सवालों के जवाब जानेंगे…
सवाल 1: सुप्रीम कोर्ट ने SC रिजर्वेशन पर क्या नया फैसला सुनाया? पूरा केस क्या है?
जवाब: सुप्रीम कोर्ट के वकील सचिन कुमार लोहिया के मुताबिक, पंजाब सरकार ने 2006 में एक कानून बनाया था। इस कानून के सेक्शन 4(2) में कहा गया था कि सरकारी नौकरियों में 25% रिजर्वेशन अनुसूचित जातियों और 12% रिजर्वेशन अन्य पिछड़ा वर्ग को दिया जाएगा। इसी कानून के सेक्शन 4(5) में कहा गया कि अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व कुल सीटों में से 50% सीटों पर रिजर्वेशन वाल्मीकियों और मजहबी सिखों को दिया जाएगा।
इस कानून के सेक्शन 4(5) को असंवैधानिक बताते हुए देविंदर सिंह नाम के एक शख्स ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। 2010 में हाईकोर्ट ने अपने फैसले में इस कानून को असंवैधानिक बताकर खत्म कर दिया था।
अब इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट के सात न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने 6:1 के आधार पर माना कि अनुसूचित जाति को उसमें शामिल जातियों के आधार पर बांटना संविधान के आर्टिकल-341 के खिलाफ नहीं है।
कोर्ट ने अपने नए फैसले में राज्यों के लिए जरूरी हिदायत भी दी है। कहा है कि राज्य सरकारें मनमर्जी से फैसला नहीं कर सकतीं। इसके लिए दो शर्तें होंगी…
पहली: अनुसूचित जाति के भीतर किसी एक जाति को 100% कोटा नहीं दे सकतीं।
दूसरी: अनुसूचित जाति में शामिल किसी जाति का कोटा तय करने से पहले उसकी हिस्सेदारी का पुख्ता डेटा होना चाहिए।
सवाल 2: क्या अब SC कैटेगरी में भी क्रीमी लेयर बनाकर उनमें शामिल कुछ जातियों को रिजर्वेशन से बाहर किया जा सकेगा?
जवाब: सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता के मुताबिक, 1990 के दशक में मंडल आयोग की रिपोर्ट के बाद OBC के आरक्षण में क्रीमी लेयर फार्मूले को लागू किया गया था। उसी तर्ज पर SC कैटेगरी में भी सुप्रीम कोर्ट ने जातियों के वर्गीकरण के लिए राज्यों को अधिकार दिए हैं। जस्टिस गवई के अनुसार इस वर्गीकरण में किसी एक सब-कैटेगरी को 100 फीसदी आरक्षण नहीं दिया जा सकता।
क्रीमी लेयर व्यक्तियों पर लागू होता है, जातियों पर नहीं।
ऐसे में किसी एक परिवार को क्रीमी लेयर में शामिल होने के आधार पर आरक्षण के दायरे से बाहर किया जा सकता है। क्रीमी लेयर फार्मूले के अनुसार किसी जाति को SC आरक्षण के दायरे से बाहर करना मुश्किल होगा।
लीगल एक्सपर्ट सचिन कुमार लोहिया के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के 7 में से 4 जजों ने इस मामले में अपने फैसले में लिखा है कि राज्य OBC की तरह SC रिजर्वेशन में भी क्रीमी लेयर की पहचान करने के लिए फैसले ले सकती है। मतलब साफ है कि अब राज्य सरकारों पर निर्भर करता है कि वो कोटा में कोटा जारी करने के लिए अनुसूचित जातियों को क्रीमी और नॉन क्रीमी लेयर में बांटना चाहती है या नहीं।
जस्टिस पंकज मिथल ने अपने फैसले में जस्टिस बीआर गवई को कोट करते हुए कहा कि अगर कोई पिछड़ा IAS या IPS बन जाता है तो समाज में उसका स्टेटस बढ़ने के बावजूद उसके बच्चों को रिजर्वेशन के पूरे फायदे मिलेंगे। क्योंकि कुछ लोगों की तरक्की से पूरी कास्ट का पिछड़ापन दूर नहीं होता। पूरी जाति को आरक्षण से दूर नहीं किया जा सकता।
जस्टिस पंकज ने कहा कि जिस परिवार ने एक बार आरक्षण का फायदा उठा लिया है, उसे अगली पीढ़ी में आरक्षण का फायदा नहीं लेने देना चाहिए। ऐसे परिवारों के लिए आरक्षण सिर्फ एक पीढ़ी तक सीमित होना चाहिए। भविष्य में SC रिजर्वेशन का लाभ एक पीढ़ी को ही मिले इसको लेकर भी सरकार को नीति बनाना चाहिए। हालांकि, फैसले में शामिल इस हिस्से को लागू करना सरकारों के लिए आसान नहीं होगा।
सवाल 3: यह आरक्षण सिर्फ सरकारी नौकरियों के लिए ही है या फिर एडमिशन और संसद में भी इसका असर होगा?
जवाब: विराग के मुताबिक सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक पिछड़ापन के आधार पर देश में आरक्षण दिए जाते हैं। जजों ने अपने फैसले में कहा है कि SC समुदाय में पिछड़े हुए वर्ग को प्राथमिकता के आधार पर आरक्षण देने से संविधान की समानता के लक्ष्य को जल्द हासिल किया जा सकता है।
क्रीमी लेयर के फार्मूले से आर्थिक स्थिति सुधरने का पता चलता है। ऐसे में क्रीमी लेयर के दायरे में आने वाले लोगों को नौकरियों के आरक्षण से वंचित किया जा सकता है। लेकिन, संसद और विधानसभा में SC/ST के आरक्षण में इस फैसले का प्रभाव नहीं पड़ेगा।
वहीं, लीगल एक्सपर्ट सचिन लोहिया के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सिर्फ सरकारी नौकरियों को लेकर दिया गया है। एजुकेशन इंस्टीट्यूशन में एडमिशन और संसद को लेकर इस फैसले में कुछ नहीं कहा गया है।
सवाल 4: क्या पहले भी राज्यों में कोटे में कोटा देने की कोशिशें हुई हैं। तब क्या हुआ था?
जवाब: हां, इससे पहले अनुसूचित जाति के कोटा में कोटा देने की कोशिश कई राज्यों ने की है। हालांकि, इनमें ये तीन राज्य प्रमुख हैं…
पंजाब: 2006 में पंजाब सरकार कानून लेकर आई, जिसमें शेड्यूल कास्ट कोटा में वाल्मीकि और मजहबी सिखों को नौकरी में 50% रिजर्वेशन और प्राथमिकता दी। 2010 में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने इसे असंवैधानिक बताया और कानून खत्म कर दिया।
आंध्र प्रदेश: आंध्र प्रदेश विधानमंडल ने 57 अनुसूचित जातियों को उप-समूहों में बांटने के लिए विधानसभा से एक कानून पारित किया। इसका मकसद अनुसूचित जातियों के अंदर एक वर्ग को शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 15% आरक्षण देना था। हालांकि, इस कानून को 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक घोषित कर दिया। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की पहचान करने वाली सूची में बदलाव करने का अधिकार सिर्फ राष्ट्रपति के पास है और राज्यों के पास नहीं है।
बिहार: 2007 में बिहार ने अनुसूचित जातियों यानी SC के रिजर्वेशन में कोटे के भीतर कोटा के लिए SC के भीतर पिछड़ी जातियों की पहचान करने के लिए महादलित आयोग का गठन किया था। इस आयोग ने बताया कि बिहार में करीब 10% महादलिता आबादी है। 2010 विधानसभा चुनाव से पहले नीतीश कुमार ने SC कोटे के अंदर महादलितों के लिए अलग से रिजर्वेशन लागू करने की कोशिश की थी। हालांकि, इसमें कामयाब नहीं होने पर बाद में उन्होंने महादलितों को घर और जमीन दिलाने के लिए कई योजनाएं शुरू की।
तमिलनाडु: हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस रामचंद्र राजू की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि राज्य में अनुसूचित जाति की आबादी 16% होने के बावजूद उनके पास केवल 0-5% नौकरियां हैं। ऐसे में कोटा के अंदर कोटा देकर इस समुदाय के सभी लोगों को लाभ दिया जाना चाहिए। इसके आधार पर ही अगस्त 2020 में तमिलनाडु सरकार ने अनुसूचित जाति कोटे के अंदर अरुंधतियार जाति को 3% कोटा दिया था।
कर्नाटक: 18 जनवरी 2024 को कर्नाटक में सिद्दारमैय्या सरकार ने कैबिनेट मीटिंग में तय किया था कि कर्नाटक सरकार, केंद्र सरकार से संविधान संशोधन करने की सिफारिश करेगी, जिससे दलितों के लिए इंटरनल रिजर्वेशन मिल सके। कर्नाटक के सोशल वेलफेयर मिनिस्टर एचसी महादेवप्पा ने कहा था कि जब तक आर्टिकल 341 में संशोधन नहीं किया जाएगा, तब तक कुछ नहीं हो सकेगा।
सवाल 5: सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का असर क्या सिर्फ अनुसूचित जाति तक ही सीमित है या इसमें अनुसूचित जनजातियां भी शामिल होंगी?
जवाब: विराग बताते हैं कि संविधान के आर्टिकल-341 में अनुसूचित जातियों और 342 में अनुसूचित जनजातियों को परिभाषित किया गया है। इन दोनों विषयों पर संसद को कानून बनाने और राष्ट्रपति को आदेश जारी करने के अधिकार को सुप्रीम कोर्ट ने 2004 में चिन्नैया फैसले में मान्यता दी थी।
संविधान पीठ के 7 जजों के फैसले के बाद राज्यों को जातियों के वर्गीकरण का अधिकार मिल गया है। बिहार, पंजाब, आन्ध्र प्रदेश और तमिलनाडु आदि राज्यों में SC आरक्षण से जुड़े कई मामलों में विवाद चल रहा था, जिन पर संविधान पीठ ने अपना फैसला सुनाया है।
इस फैसले में अनुसूचित जनजातियों का भी जिक्र है, लेकिन उनके बीच बंटवारे को लेकर ज्यादा कानूनी विवाद नहीं है। इसीलिए सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के दायरे में SC कैटेगरी के आरक्षण का ही मामला आएगा।
वहीं, सुप्रीम कोर्ट के वकील सचिन लोहिया का कहना है कि भले ही सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला अनुसूचित जातियों से जुड़े संविधान के आर्टिकल 341 पर हो रही सुनवाई के बाद सुनाया हो, लेकिन राज्य सरकारें इसे अनुसूचित जाति और जनजाति दोनों के आरक्षण कोटे में कोटा जारी कर सकती हैं।
ऐसा इसलिए क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों ने अपने फैसले में लिखा है कि राज्यों को SC/ST के बीच क्रीमी लेयर की पहचान करने और उन्हें सकारात्मक कार्रवाई के दायरे से बाहर करने के लिए एक नीति विकसित करनी चाहिए।
साफ है कि ये फैसला सिर्फ अनुसूचित जाति यानी SC के लिए ही है। ये अनुसूचित जनजाति यानी ST पर लागू होगा या नहीं, इस बात को लेकर कानूनविदों में अभी एक राय नहीं है।
सवाल 6: सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के राजनीतिक मायने और असर क्या है?
जवाब: पॉलिटिकल एक्सपर्ट रशीद किदवई के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का दो तरह से राजनीतिक तौर पर असर देखने को मिल सकता है…
1. अनुसूचित जाति के एक वर्ग को अपनी ओर कर सकेंगी राजनीतिक पार्टियां
अनुसूचित जातियों में कुछ समूह इसके खिलाफ जबकि कुछ इसके समर्थन में होगा। अब सारा खेल हर प्रदेश की सरकार पर निर्भर करेगा। जिन लोगों को अब तक आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा है वो SC समुदाय के लोग इस तरह के कोटे को लागू करने वाली सरकार के साथ हो जाएगी।
2. दलितों की राजनीति करने वाले दलों को नुकसान
इसे ऐसे समझें कि यूपी में दलितों को अब तक मायावती का वोट बैंक माना जाता रहा है, लेकिन कोटे में कोटा लागू होने से ये मिथ टूट सकता है। अगर BJP कोटे में कोटा लागू करती है तो दलितों में जिस वर्ग को इससे फायदा होगा वो BJP के साथ हो सकता है। यह सिर्फ एक उदाहरण है। कुछ इसी तरह का नाजारा बिहार, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, पंजाब हर जगह देखने को मिलेगा।
सवाल 7: अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों का इस फैसले पर क्या स्टैंड है?
जवाब: रशीद कहते हैं कि सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य यूपी में बीजेपी लंबे समय से बसपा के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रही है। लोकसभा चुनाव में BJP ने दलितों को साधने के लिए योगी सरकार के दलित मंत्री बेबी रानी मौर्य, असीम अरुण, गुलाब देवी को आगे किया।
दलितों के क्षेत्र में होने वाले सम्मेलन को सफल बनाने की जिम्मेदारी कभी मायावती के साथ रहे बीजेपी प्रवक्ता ने जुगल किशोर को दी गई। नतीजा ये हुआ कि 24 करोड़ से ज्यादा दलितों की आबादी वाले राज्य में बसपा को लोकसभा चुनाव में एक भी सीटों पर जीत नहीं मिली।
अब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से दलितों को दो खेमे में बांटना प्रदेश सरकारों के लिए आसान होगा। बीजेपी इसका सबसे ज्यादा फायदा उठाने की कोशिश करेगी।
सवाल 8: सुप्रीम कोर्ट के फैसले से किन पार्टियों को सबसे ज्यादा फायदा होगा?
जवाब: रशीद के मुताबिक अभी यह कह पाना मुश्किल है। जो राजनीति दल जिस राज्य में अनुसूचित जातियों में कोटे में कोटा लागू करेगी, उसी को इसका फायदा मिलेगा। यह मुद्दा राजनीति दलों को राष्ट्रीय के बजाय क्षेत्रीय स्तर पर ज्यादा फायदा या नुकसान पहुंचाएगी।
सवाल 9: सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का असर किन राज्यों में सबसे ज्यादा देखने को मिल सकता है?
जवाब: पॉलिटिकल एक्सपर्ट किदवई के मुताबिक कोटे में कोटे के इस फैसले का देश के 17 प्रदेशों में देखने को मिलेगा, जहां SC की आबादी 15% या उससे ज्यादा है। हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, पंजाब वो राज्य हैं, जहां 20% से ज्यादा अनुसूचित जातियों की आबादी है।
साफ है कि यहां जैसे ही अनुसूचित जातियों को दिए जाने वाले रिजर्वेशन के कोटे में कोटा दिया जाएगा तो राजनीतिक तौर पर इस पूरे समुदाय में उथल-पुथल मच जाएगा।
उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति की कुल 17 लोकसभा सीटें हैं। इनमें से 8 बीजेपी के पास और 7 सीटें समाजवादी पार्टी ने जीती है। यूपी के अलावा बंगाल में 10, तमिलनाडु में 7, बिहार में 6, महाराष्ट्र और कर्नाटक में 5-5 लोकसभा सीटें हैं। इन राज्यों में देश की सबसे ज्यादा SC आबादी रहती है। साफ है कि कोटा सिस्टम में बदलाव करने पर अनुसूचित जाति दो खेमे में बंटेगा। इससे जिस वर्ग को फायदा मिलेगा वो इसे लागू करने वाले दलों की सरकार का समर्थन करेंगे।
सवाल 10: सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का अनुसूचित जाति के लोगों पर क्या असर पड़ेगा?
जवाब: JNU में सोशियोलॉजी के प्रोफेसर सुरिंदर सिंह जोधका कहते हैं कि हर प्रदेश में अनुसूचित जातियों में 30-40 कम्युनिटी होती हैं, जिनमें से कुछ कम्युनिटी को ही ज्यादा फायदा मिलता है। क्लासिफिकेशन अच्छी बात है, क्योंकि इससे रिजर्वेशन का असल मकसद पूरा होगा, यानी हर किसी को फायदा मिलेगा।
इसका सबसे अच्छा एग्जाम्पल पंजाब में अनुसूचित जातियों का क्लासिफिकेशन है।
मान लीजिए इस कैटेगरी में 39 जातियां हैं तो इसे दो हिस्सों A और B में बांट दिया जा सकता है। अगर नीचे से डिमांड आती है तो इन A और B कैटेगरी में भी सब-क्लासिफिकेशन किया जा सकता है। यह कुछ ऐसा ही हो सकता है जैसे OBC को MBC या EBC, क्रीमी लेयर और नॉन-क्रीमी लेयर, लोवर OBC और अपर OBC में बांटा जाता है। मतलब साफ है कि इस तरह के फैसले से रिजर्वेशन का लाभ सही लोगों तक पहुंच सकेगा।