न पुलिस, न कानून और न ही धरती की कोई ताकत रेप की घटना को रोक सकती है, जब तक…
न पुलिस, न कानून और न ही धरती की कोई ताकत रेप की घटना को रोक सकती है, जब तक…
कभी रेप के खिलाफ बंगाल का खून खौलता है, कभी असम में आक्रोश दिखता है तो कभी बिहार के मुजफ्फरपुर में इसके खिलाफ गुस्सा भड़कता है. जगह भले ही बदल जाती है, लेकिन स्थिति नहीं बदलती. जब हर रक्षा बंधन पर भाई अपनी बहनों से ये वादा करता है कि वे उसकी रक्षा करेगा, लेकिन सवाल है कि किस से? क्या वे किसी दूसरे की भाई से रक्षा करेगा? क्यों नहीं हर भाई अपनी बहन से ये वादा करता है कि वे किसी और बहन के लिए असुरक्षा पैदा नहीं करेगा, किसी और बहन के लिए वो खतरा नहीं बनेगा?
हर रोज अखबर के पन्नों की सुर्खियां रेप, हत्या, छेड़छाड़ जैसी घटनाओं से पटी पड़ी रहती है. इसके बाद प्रदर्शन होता है, इस्तीफे मांगे जाते हैं, कड़े कानून की मांग की जाती है. लेकिन, कोई इसकी जड़ में जाकर असल समस्या की बात नहीं करता है.
रेप नहीं नीतिगत समस्या
आप महाभारत की उस घटना को याद करिए जब द्रौपदी का कौरवों की तरफ से भरी महफिल में चीर हरण किया जा रहा था. उन्हें अपनी इज्जत बचाने के लिए भगवान कृष्ण को याद कर उन्हें बुलाना पड़ा. इसके बाद कौरवों की क्रूरतापूर्वक हत्या हुई. महाकाव्यों में इंसाफ का जिक्र है. लेकिन वास्तविक जिंदगी में, जीवन इतना आसान भी नहीं है, जहां पर अक्सर इंसाफ नहीं मिल पाते. अगर मिलते भी हैं तब तक काफी देर हो चुकी होती है. आप याद करिए अजमेर गैंगरेप रैकेट का, जिस पर इंसाफ होते-होते 32 साल का लंबा वक्त लग गया.
यहां पर परिवार में लड़कियों और लड़कों की परवरिश एक तरह की नहीं रहती है. ये कोई नई समस्या नहीं है और न ही इसका समाधान रातों-रात किया जा सकता है. लेकिन, इस असल समस्या की पहचान कर, उस पर चर्चा कर उस अंतर को ठीक कर इस समस्या से जरूर निदान पा सकते हैं. जब तक परिवार में लड़कियों को दोयम दर्जे का माना जाएगा, तब तक न पुलिस, न ही कानूनी… यानी दुनिया की कोई भी ताकत रेप होने से नहीं बचा सकती है. हद तो ये है कि ये माना जाता है कि महिलाएं घर की इज्जत है और उसका रक्षा होनी चाहिए.
ऐसे नहीं रुकेगा रेप
2012 गैंगरेप के दोषियों में से एक का नाम था मुकेश सिंह. उसने कहा था कि रात में घूमती महिलाओं को सबक सिखाना जरूरी है. रेप भी एक सबक है. हमारी संस्कृति में एक तरफ जहां पुरुषों को छुट्टी घूमने के लिए छोड़ दिया जाता है तो वहीं दूसरी तरफ महिलाओं को इज्जत करार दिया जाता है. ऐसे में धरती की वो कौन सी ताकत है जो रेप जैसी घटनाओं पर ब्रेक लगा दे?
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की तरफ से साल 2022 में ये कहा गया था कि हर तीन में से एक महिला को शादी के बाद प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता है. इससे भी ज्यादा अलार्मिंग डेटा ये है कि देश में करीब 50 फीसदी बच्चे 18 साल के होने से पहले ही किसी न किसी तरह के यौन उत्पीड़न के शिकार हो जाते हैं. इनमें से कई मामले इसलिए सामने नहीं आ पाते हैं, क्योंकि उसके साथ ऐसा करने वाला कोई अंजान नहीं बल्कि अपने ही होते है.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो का साल 2021 का आंकड़ा कहता है कि बलात्कार के 96.5 फीसदी मामलों में आरोपी कोई और नहीं बल्कि उसका दोस्त, परिवार, लिव-इन पार्टनर, पूर्व पति या फिर परिवार का दोस्त था.
दरअसल, बलात्कर कोई आंकड़ा, अखबार की सुर्खी, प्रदर्शन या फिर रिपोर्ट्स नहीं है, बल्कि ये एक हमारी सांस्कृतिक समस्या है, जिसको जड़ से ही इलाज करने की जरूरत है. इसका इलाज कहीं और से नहीं बल्कि हमारे घर से और परिवार से ही करने की जरूरत है.
कानून से नहीं बदलेगा
रेप की बढ़ती घटनाओं पर सामाजिक कार्यकर्ता योगिता भयाना कहती है कि देश के अंदर कोई बेटी आज अपने आपको सुरक्षित महसूस नहीं कर पा रही हैं. उनका कहना है कि अब तो लेडी डॉक्टर जो समाज की सेवा करती आयी हैं, जब उनको भी इन सब स्थिति से गुजरना पड़े तो फिर जरा सोचिए… जब पढ़े-लिखे लोगों के साथ ऐसा हाल हो सकता है तो फिर देश में उन जगहों पर क्या होता होगा, जहां पर शिक्षा नहीं पहुंच पाई है.
योगिता आगे कहती है कि वे तो लगातार इसके लिए काम कर रही हैं और उनके पास रोजाना ऐसे मामले आते हैं. उनका कहना है कि अब समाज में ये घटनाएं अति हो चुकी है. लेकिन, दूसरी तरफ सरकार और प्रशासन कठोर कार्रवाई करने में कहीं ना कहीं पीछे हैं. अभी उस प्रकार से कार्रवाई नहीं हो पा रही है, जिस तरह से होनी चाहिए. जिस तरह का आक्रोश होना चाहिए वो नहीं है, हालांकि चिकित्सक इस कार्य में लगे हुए हैं.
योगिता ऐसी हैवानियत वाली घटनाओं पर बताता है कि ये घटनाएं जब सोशल मीडिया और टेलीविजन के माध्यम से सामने आ जाती है, तो देश में बातें होने लगती है, नहीं तो आम दिनों में कई घटनाएं दबकर मात्र रह जाती है. वे बताती हैं कि कानून के आने के बाद ऐसा नहीं है कि घटना थम गई हो, बल्कि घटनाएं और भी बढ़ गई. ऐसी घटनाओं से बचाने के लिए समाज के सभी लोगों को साथ लगना होगा.
2012 गैंगरेप का जिक्र करते हुए योगिता बताती है कि निर्भया कांड में दोषियों पर कार्रवाई में 10 साल तक का समय लग गया. कोई फास्ट ट्रैक पर काम नहीं हो रहा है, पुराने तरीके से ही मामले चल रहे हैं. कानून आने के बाद भी ऐसे मामले अगर सामने आ रहे हैं तो कानून को किस प्रकार से ठीक माना जाए.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं.यह ज़रूरी नहीं है कि ….न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]