‘नेताओं द्वारा दोषियों को मौत की सजा दिलाने के आश्वासन से बनाया जा रहा भीड़तंत्र’ ?
SC: ‘नेताओं द्वारा दोषियों को मौत की सजा दिलाने के आश्वासन से बनाया जा रहा भीड़तंत्र’; जस्टिस ओका का बड़ा बयान
न्यायमूर्ति ओका ने संविधान का पालन सुनिश्चित करने में वकीलों और न्यायपालिका के बीच संवेदनशीलता की महत्वपूर्ण भूमिका को भी बताया। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका का सम्मान करना है तो उसकी स्वतंत्रता अक्षुण्ण रहनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति अभय ओका ने पुणे में बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र और गोवा द्वारा आयोजित एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए अहम बयान दिया है। उन्होंने इस सम्मेलन में जोर देते हुए कहा कि भले ही कानूनी फैसले पारित करने की शक्ति केवल न्यायपालिका के पास है, बावजूद इसके एक भीड़ तंत्र बनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हमने एक भीड़तंत्र बना दिया है। जब कोई घटना होती है, तो राजनीतिक लोग इसका फायदा उठाते हैं। नेता उस विशेष स्थान पर जाते हैं और लोगों को आश्वासन देते हैं कि आरोपियों को मौत की सजा दी जाएगी। जबकि निर्णय लेने की शक्ति केवल न्यायपालिका के पास है। अपने संबोधन में उन्होंने न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने और त्वरित, न्यायपूर्ण निर्णय देने के महत्व पर भी जोर दिया।
इस दौरान न्यायमूर्ति ओका ने संविधान का पालन सुनिश्चित करने में वकीलों और न्यायपालिका के बीच संवेदनशीलता की महत्वपूर्ण भूमिका को भी बताया। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका का सम्मान करना है तो उसकी स्वतंत्रता अक्षुण्ण रहनी चाहिए। संविधान का पालन तभी होगा जब वकील और न्यायपालिका संवेदनशील रहेंगे। न्यायपालिका को बनाए रखने में वकीलों की बड़ी भूमिका होती है और उन्हें यह जिम्मेदारी निभानी होगी, अन्यथा लोकतंत्र नष्ट हो जाएगा। इस दौरान उन्होंने कुछ मामलों में जमानत देने को लेकर न्यायपालिका की बिना किसी कारण के आलोचना का भी मुद्दा उठाया।
वहीं,सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति प्रसन्ना भालचंद्र वरले ने इसी कार्यक्रम में शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से संवैधानिक मूल्यों को संरक्षित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हमारे मूल्यों को संरक्षित करना और कड़ी मेहनत ही सफलता की कुंजी है। हमारे संविधान को जानना या पढ़ना ही केवल महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके बारे में जागरूक होने की जरूरत है। महिलाओं के उत्पीड़न को देखते हुए न्यायमूर्ति वराले ने लड़कों को लड़कियों और महिलाओं के प्रति संवेदनशील बनाने की आवश्यकता का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि अब ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ की जरूरत नहीं है, बल्कि ‘बेटा पढ़ाओ’ का नारा देना भी अब महत्वपूर्ण है।