वक्फ बोर्ड पर सरकारी नियंत्रण बेहद जरूरी !
वक्फ बोर्ड पर सरकारी नियंत्रण बेहद जरूरी, तभी हो पाएगा पसमांदा मुस्लिमों का भी भला
वक्फ बोर्ड में संशोधन को लेकर पूरे देश में इस समय चर्चा चल रही है. वर्तमान की मोदी सरकार संसद के पिछले सत्र में इस पर बिल भी लेकर आई थी, लेकिन विपक्षी दलों का भारी विरोध देखकर इसे जेपीसी में भेज दिया. विपक्ष का आरोप है कि सरकार बैठक में पूरी तैयारी से नहीं आ रही है. सरकार हालांकि दावा कर रही है कि विपक्ष जान-बूझकर अड़ंगे डाल रहा है. शुक्रवार को जेपीसी की अर्बन डेवलपमेंट बोर्ड और रेलवे के अधिकारियों के साथ बैठक थी. इससे पहले भी दो बैठकें हो चुकी हैं.
भारत में कई धर्म के लोग रहते हैं, सभी धर्मों में दान करने की परंपरा रही है, लेकिन किसी भी धर्म में वक्फ बोर्ड की तरह दान को लेकर बनी कोई विशिष्ट संस्था नहीं है. वक्फ के बारे में हमें इतना समझना चाहिए कि आजादी और बंटवारे से पहले ही तत्कालीन सरकार से मिलकर कुछ लोगों ने ऐसे कानून बनवाए, जिससे उनका स्वार्थ सधता रहे. समय- समय पर इसके नियम कानून में बदलाव होते रहते हैं. अभी तक चाहे देश में किसी की सरकार हो, लेकिन आप वक्फ बोर्ड पर ध्यान देंगे तो उसमें अब तक अशराफ यानी कि बाहर से आए मुस्लिम शासकों के ही वंशज या मुस्लिमों का उच्च वर्ग ही उसके कर्ता-धर्ता होते हैं. वक्फ का मतलब दान दी गयी संपत्ति होता है. उस दान दी हुई राशि और संपत्ति से गरीब, दीन और असहाय लोगों की ही मदद की जानी चाहिए, लेकिन फिलहाल वक्फ बोर्ड के लोग इसको अपने स्वार्थ के हिसाब से मैनेज करते हैं. आज तक वक्फ बोर्ड से गरीब और दबे-कुचले मुस्लिम लोगों का कोई खास फायदा होता हुआ नहीं दिख रहा है.
भारत के अंदर कई मिनी पाकिस्तान
देश के बंटवारे से पहले ही कुछ लोगों का विचार एक अलग देश बनाने का था. भारत की आजादी के वक्त बंटवारा हुआ और तभी पाकिस्तान भी.बना. आज भी भारत में कई मिनी पाकिस्तान हैं. जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी, अलीगढ़ यूनिवर्सिटी, मदरसा बोर्ड, वक्फ बोर्ड इसके उदाहरण हैं. इसमें सिर्फ एक ही समुदाय का आधिपत्य देखने को मिलता है. ये सरकार को पीछे रखकर काम करते हैं लेकिन मीडिया तथा समाज के ओपिनियन-मेकर्स से बैलेंस बनाकर काम करते हैं.
इस तरह इन लोगों ने भारत में भी कई मिनी पाकिस्तान बनाकर रखे हैं. अब सरकार इसमें संशोधन करना चाहती है, तो ये लोग इसका विरोध कर रहे हैं. अभी जो सरकार बिल लेकर आई है, उसमें सरकार सेकुलरिज्म भी ला रही है और अन्य धर्म के लोगों को भी मेंबर बनाने की बात आई है, साथ ही सरकारी मशीनरी यानी ब्यूरोक्रेसी को भी मजबूत करने की बात इसमें है. कुल मिलाकर कहा जाए तो जो अशराफ मुसलमानों का कंट्रोल है, उसकी स्वायत्तता को कंट्रोल किया जा रहा है, और लोकतांत्रिक देश में ऐसा कंट्रोल होना भी जरूरी है. इससे दबे, कुचले परिवार वालों को ज्यादा फायदा होगा.
वक्फ का मतलब स्वार्थसिद्धि
किरन रिजिजू ने वक्फ बोर्ड में माफिया का कब्जा होने की बात कही है. वक्फ बोर्ड के पास अपना खुद का ट्रिब्यूनल कोर्ट है. वक्फ के भीतर जमा लोगों को बस अपना स्वार्थ सिद्ध करना है. वक्फ के पास पावर है, सरकार ने भी वक्फ को पावर दिया ताकि गरीबों और असहाय की मदद हो सके, लेकिन उस पावर का गलत इस्तमाल किया गया. भारत में ज्यादातर जो मुस्लिम लीडर हैं वो अशराफ ही हैं, इसलिए अगर उनका कोई भाई लूट रहा होता है, तो दूसरा उसका विरोध नहीं करता है. वक्फ द्वारा कई जगह हिंदुओं की संपत्ति पर कब्जा की बात सामने आई है तो ये हो सकता है. इसके साथ ही कई ऐसी संपत्तियों पर भी ये दावा करते हैं जब देश में इस्लाम नहीं था. मुस्लिम समुदाय की संपत्तियों पर भी वक्फ बोर्ड अपना दावा करते आया है.
कई जगहों के कब्रिस्तान, मस्जिद और मदरसा तक को अपना बताते हुए कब्जा कर लिया है. जिन संपत्तियों को अगर किसी ने वक्फ कर दिया हो, उस पर भी वक्फ बोर्ड का कब्जा है, इसके साथ ही उन संपत्तियों को कई बार अपने फायदे के लिए बेच दिया जाता है. जबकि इस्लामिक कानून के मुताबिक वक्फ किये किसी भी संपत्ति का क्रय-विक्रय नहीं किया जा सकता है. पहले अंबानी परिवार की संपत्ति पर वक्फ बोर्ड ने दावा किया था, बाद में उसको बेच दिया गया. वक्फ की जमीनों को ये नाजायज तरीके से किराये पर दे रहे हैं, और जब सरकार इस पर अंकुश लगाने की कोशिश कर रही है तो ये विरोध कर रहे हैं. जब भी इन पर कोई संकट आता है, तो ये इस्लाम और मुसलमान को आगे कर देते हैं और ये कहते हैं कि इस्लाम धर्म पर खतरा है. मिथ्या और झूठ फैलाकर पहले ये पाकिस्तान बनवा चुके हैं, अब ये फिर से यही काम करके वक्फ को बचाने की कोशिश कर रहे हैं.
वक्फ बोर्ड संशोधन से इस्लाम पर खतरा नहीं
अब तक वक्फ के विरोध का स्वर मुस्लिम समुदाय की ओर से नहीं देखा जा रहा, इसके पीछे कई कारण हैं. मुस्लिम लोग अपने नेता को सुनते हैं. उनको झूठ का पाठ पढ़ा कर गुमराह किया जाता है और ये कहा जाता है कि इससे इस्लाम पर खतरा है, इस कारण मुस्लिम समुदाय के लोग इस बात को ना समझ कर उनकी बात में आ जाते हैं. अशराफ लोग काफी चालाक होते हैं, जब वो खतरे में होते हैं तब इस्लाम को आगे कर देते हैं. इससे पहला हमला इस्लाम पर होता है तो फिर पूरे दुनिया भर से आवाज आने लगती है.
वक्फ से पसमांदा समाज के मुसलमान को जो फायदा मिलना चाहिए, उनको वो फायदा नहीं दिया जा रहा है. मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड और इमारत-ए-शरिया 15 सितंबर को पटना के बापू सभागार में बैठक कर रहे हैं. वहां भी मुस्लिमों में भ्रामक चीजें भरी जाएंगी. कई बार मुस्लिम समाज के लोगों को भ्रमित किया जाता है. इसके लिए जो विरोध के स्वर उठाता है, कई बार उसे दबा भी दिया जाता है. मीडिया भी इसको तरज़ीह नहीं देती. अशराफ वर्ग समाज के हर क्षेत्र में है, जिससे कि वो बात को घुमा फिराकर समझा जाता है, और लोग उस पर ही यकीन कर लेते हैं. मुस्लिम समाज के लोग भी विरोध करते हैं, लेकिन उनके विरोध को सहयोग नहीं मिल पाता, जिससे कि मामला सामने नहीं आ पाता. बलिया में हम तो मुसलमानों से कब्रिस्तान की लड़ाई लड़ रहे हैं, जबकि हिंदू समाज के लोग हमारे सहयोग में हैं. ओवैसी को मीडिया कवरेज मिलता है, लेकिन पिछड़े मुस्लिम की कोई बात नहीं सुनता है.
सांप्रदायिक बनाने की कर रहे कोशिश
वक्फ बोर्ड का बिल पास हो जाए तो पूरे मुस्लिम समुदाय और देश दोनों को फायदा होगा. अभी जिस तरह से विरोध हो रहा है, बिल के पास होने के बाद होगा, ठीक उसी तरह जब कभी तीन तलाक के बारे में विरोध हो रहा था, हालांकि वो कदम समाज के हित के लिए था. एनडीए सरकार से आशा थी कि वो इस बिल को पास करा लेगी, लेकिन वो नहीं हो सका, और बिल जेपीसी में चला गया. अभी हाल में ही जेपीसी ने देश भर के लोगों से आम सहयोग और उनका मंतव्य मांगा है, इसके लिए हमने भी अपना मंतव्य दिया है. अगर मौका मिला तो जेपीसी के समक्ष वक्फ बोर्ड के बारे में कई जानकारी देंगे. समाज के लोगों को कई बार हित की चीजें समझ नहीं आती है, लेकिन सरकार को कठोर होकर इस पर संशोधन करना चाहिए, बाद में लोगों को इसका फायदा दिखेगा तो फिर समझ में आ जाएगा. कई बार दवा कड़वी होती है लेकिन वो बीमारी को भी ठीक कर देती है.
पूरे मुद्दे को अब संप्रदायिक बनाने की कोशिश की जा रही है, जबकि सरकार सिर्फ संशोधन करने की बात कर रही है, तो लोगों को पहले समझना होगा कि इसको बेवजह का संप्रदायिक मसला बनाने की कोशिश ना किया जाए. पहली बार किसी सरकार ने मुस्लिम हितों के लिए अपनी भूमिका दिखाई है, आज से पहले किसी सरकार ने ऐसी हिम्मत नहीं दिखाई थी. अब अशराफ वर्ग का कहना है कि महिला और पसमांदा समुदाय को मना नहीं किया गया था कि वो वक्फ में नहीं रहेंगे, लेकिन देखा जाए तो अभी तक कभी इनको मौका भी नहीं दिया गया. अब सरकार संशोधन कर रही है, तो इनको दिक्कत हो रही है. वक्फ बिल में ओबीसी को शामिल करने की बात कही गई है, लेकिन अगर उसमें एससी-एसटी मुस्लिम को भी शामिल करने की बात होती तो वो भी काफी फायदेमंद होता.
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