11 साल बाद सरकार ने स्वीकारा दो इंजीनियरों का करप्शन ?

11 साल बाद सरकार ने स्वीकारा दो इंजीनियरों का करप्शन
प्रमुख अभियंता पद से रिटायर एमजी चौबे, ईई रहे शिखर जैन के विरुद्ध चलेगा केस
जलाशय (फाइल फोटो) - Dainik Bhaskar
जलाशय (फाइल फोटो)

जल संसाधन विभाग के प्रमुख अभियंता पद से रिटायर हुए मदन गोपाल चौबे के विरुद्ध की गई जांच के मामले में आखिरकार 11 साल बाद सरकार ने मान लिया कि उनके द्वारा सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में करप्शन किया गया है। अब सरकार ने ईओडब्ल्यू द्वारा की गई जांच के मामले में प्रमुख अभियंता चौबे और अन्य जिम्मेदार अफसरों के विरुद्ध न्यायालय में अभियोजन दायर करने की स्वीकृति दे दी है। इस मामले में शिखरचंद जैन रिटायर्ड एसडीओ कुंडम सब डिवीजन-3 और प्रभारी कार्यपालन यंत्री हिरन जल संसाधन संभाग जबलपुर भी आरोपी बनाए गए हैं। प्रमुख अभियंता चौबे इस दौरान तत्कालीन कार्यपालन यंत्री जल संसाधन संभाग डिंडोरी पदस्थ थे।

इस मामले में ईओडब्ल्यू द्वारा अभियोजन की स्वीकृति मांगे जाने के बाद राज्य शासन ने जल संसाधन विभाग के अफसरों का अभिमत मांगा था। इस पर अफसरों ने कहा कि ठेकेदार संतोष कुमार मिश्रा के टेंडर के मामले में हुई गड़बड़ी पर पूर्व एसडीओ जैन और पूर्व कार्यपालन यंत्री जिम्मेदार नहीं हैं। इसमें कहा गया कि अनुभव प्रमाण पत्र जारी करना और उसका सत्यापन करना टेंडर प्रक्रिया का एक शुरुआती पार्ट है। इसे आधार बनाकर ईओडब्ल्यू द्वारा इन अफसरों को वित्तीय नुकसान के लिए जिम्मेदार बताया गया है। यह उचित प्रतीत नहीं होता है। हंसा जलाशय और रीवा जलाशय के ठेके के काम के मामले में फर्जी और कूटरचित दस्तावेज बनान में इन अफसरों की भूमिका को लेकर अभियोजन स्वीकृति के लिए जब प्रस्ताव ईओडब्ल्यू ने शासन को भेजा तो सरकार ने उसे रोक दिया था और लंबे समय से यह स्वीकृति पेंडिंग थी।

इसी हफ्ते मिली केस चलाने की परमिशन

ठेकेदारों को लाभ पहुंचाने के लिए बाबुओं के साइन के आधार पर उनके रिकार्ड सत्यापित करने का काम करने वाले शिखर चंद जैन और एमजी चौबे के विरुद्ध अभियोजन के लिए जब विधि और विधायी कार्य विभाग से सरकार ने अभिमत मांगा तो इन पर दर्ज अपराध क्रमांक 18-2013 को विधि विभाग ने सही माना और विभाग द्वारा दी गई क्लीनचिट से असहमति जताई थी। इसके बाद अब जाकर राज्य सरकार के जल संसाधन विभाग ने इन रिटायर्ड अफसरों के विरुद्ध न्यायालय में केस दायर करने की अनुमति दे दी है।

यह था मामला

कार्यपालन यंत्री हिरन जल संसाधन संभाग जबलपुर द्वारा वर्ष 2008-09 में हंसापुर जलाशय में काम कराए जाने को लेकर बुलाए गए टेंडर के मामले में आरोपी ठेकेदार संतोष कुमार मिश्रा के दस्तावेजों का फिजिकल वेरिफिकेशन आरोपी कार्यपालन यंत्री शिखर चंद जैन ने नहीं कराया था और उसके टेंडर को मंजूरी दी गई थी। इसकी शिकायत के बाद अधीक्षण यंत्री जल संसाधन छिंदवाड़ा से इसकी जांच कराई गई थी जिसमें पाया गया था कि ठेकेदार द्वारा ग्रामीण यांत्रिकी सेवा जबलपुर के कार्यपालन यंत्री के नाम से जारी अनुभव प्रमाण पत्र असत्य था। ठेकेदार ने कार्यपालन यंत्री जल संसाधन डिंडोरी एमजी चौबे द्वारा जारी प्रमाण पत्र पेश किया गया था। इसके भी कुछ आयटमों में भी गलतियां पाई गई थीं। जैन के द्वारा 2008-09 में ही रीवा जलाशय से संबंधित टेंडर के मामले में भी गड़बड़ी किए जाने की बात आई है। मेसर्स प्रीत कंसट्रक्शन परासिया द्वारा पेश अर्हता प्रमाण पत्र में भी गड़बड़ी की गई थी जो ईओडब्ल्यू द्वारा की गई जांच में सही पाई गई। इसके बाद शिकायत पर ईओडब्ल्यू ने ठेकेदार को पात्रता नहीं होने के बाद भी काम दिलाने के मामले में इन अफसरों को जिम्मेदार मानकर केस दर्ज किया गया था।

बार-बार संविदा वृद्धि से आए थे चर्चा में

एमजी चौबे प्रमुख अभियंता रहने के दौरान सरकार द्वारा बार-बार सेवा वृद्धि दिए जाने के कारण भी प्रशासनिक गलियारे में चर्चा में रहते थे। सेवाकाल के दौरान कई बार तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान की कैबिनेट बैठक के दौरान उनके सेवावृद्धि प्रस्ताव का मंत्रियों द्वारा विरोध भी किया जाता रहा है लेकिन तबके जल संसाधन मंत्री चौबे को कर्मठ अफसर बताकर संविदा सेवाा अवधि बढ़वाते रहे थे।

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