शिवराज को मिली क्लीन चिट पर संदेह, व्यापमं का जिन्न बोतल से फिर निकलेगा बाहर?
Vyapam Scam: शिवराज को मिली क्लीन चिट पर संदेह, व्यापमं का जिन्न बोतल से फिर निकलेगा बाहर? क्यों उठ रहे सवाल
Vyapam Scam: मध्य प्रदेश में हुए व्यापमं घोटाले का जिन्न एक बार फिर बाहर आता दिखाई दे रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने एक कांग्रेस विधायक की याचिका पर सुनवाई करते हुए, सीबीआई और प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है।
पूर्व विधायक पारस सकलेचा व्यापमं घोटाले में एक व्हिसलब्लोअर भी रहे हैं। उनके आवेदन पर सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की बेंच ने राज्य सरकार और सीबीआई को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। इससे व्यापमं का जिन्न एक बार फिर बोतल से निकलता दिख रहा है। सकलेचा का कहना है कि जुलाई 2009 में व्यापमं घोटाला सामने आया। 17 दिसंबर 2009 को जांच कमेटी गठित की गई। इसके बाद भी 2010 से 2013 तक घोटाले के जिम्मेदारों से पूछताछ नहीं की गई। सकलेचा ने उनसे पूछताछ करने की मांग की थी। इस पर सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की बेंच ने राज्य शासन और सीबीआई को नोटिस जारी किए हैं।
हाईकोर्ट में खारिज हो चुका है आवेदन
पूर्व विधायक पारस सकलेचा ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर बेंच में पिटीशन क्रमांक 20371/2023 दायर की थी। उन्होंने एसटीएफ से 11 दिसंबर 2014 को दस्तावेज सहित 350 पेज का आवेदन दिया था और कार्रवाई की मांग की थी। 19 अप्रैल 2024 को हाईकोर्ट ने आवेदन को खारिज कर दिया। इसके विरुद्ध सकलेचा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी, अब इस पर ही नोटिस जारी हुए हैं। सकलेचा की ओर से पैरवी वरिष्ठ अभिभाषक व राज्यसभा सांसद विवेक तनखा और सर्वम ऋतम खरे ने की।
जांच एजेंसियों ने की लीपापोती
सकलेचा ने 850 पेज के दस्तावेज प्रस्तुत करते हुए आरोप लगाया है कि सीबीआई और एसटीएफ ने व्यापमं फर्जीवाड़े की जांच में लीपापोती की है। महत्वपूर्ण दस्तावेजों को जांच में शामिल न कर बड़े मगरमच्छों को बचाया है। मात्र रैकेटियर, दलाल, मीडियेटर, स्कोरर, सॉल्वर, छात्र, अभिभावक और छोटे अधिकारी ही आरोपी बनाए गए हैं। इतना बड़ा रैकेट 10 साल तक संगठित व्यापार की तरह बैखोफ चलता रहा। शासन-प्रशासन के संज्ञान में आने के बाद भी कई गुना कैसे बढ़ गया। पीएमटी में शुरू हुआ यह घोटाला भर्ती परीक्षा तक पहुंच गया। इस गंभीर बिंदु पर एसटीएफ और सीबीआई ने किसी भी पहलू की जांच नहीं की। सत्ता और प्रशासन के सहयोग के बिना यह सब संभव नहीं है।
शिवराज की भूमिका पर उठाए सवाल
सकलेचा ने कहा कि उन्होंने 12 जून 2015 को मौखिक साक्ष्य के साथ-साथ 71 पेज का लिखित बयान दिया था। 240 पेज के दस्तावेज भी एसटीएफ को दिए। इसके बाद 11 से 13 सितंबर 2019 तक 13 घंटे बयान दर्ज कराए। इसके बाद भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। अक्टूबर 2016 में सीबीआई के सामने भी बयान दर्ज कराया था। उस पर भी कुछ नहीं हुआ। उस समय के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रभारी भी थे। उनके साथ-साथ मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक, प्रमुख सचिव, चिकित्सा शिक्षा संचालक और व्यापमं के अध्यक्ष सहित अन्य जिम्मेदार अधिकारियों की भूमिका पर सवाल उठाए गए हैं। सकलेचा का कहना है कि दिसंबर 2009 में सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों में भर्ती की जांच के आदेश दिए गए थे, लेकिन निजी महाविद्यालयों की भर्ती की जांच नहीं की गई।
सीबीआई ने दी थी शिवराज को क्लीन चिट
सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 9 जुलाई 2015 को मामले की जांच अपने हाथों में ली थी। 2013 में हुए इस परीक्षा घोटाले में नवंबर 2017 में आरोप-पत्र दाखिल किया था। 490 लोगों के नाम थे। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को क्लीन चिट दी थी। सीबीआई ने भोपाल की विशेष अदालत में कहा था कि मध्य प्रदेश पुलिस से जब्त हार्ड डिस्क ड्राइव से कोई छेड़छाड़ नहीं हुई है, जिसका आरोप वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने लगाया था। चार्जशीट में जिन लोगों के नाम शामिल किए गए थे, उनमें व्यापमं के तीन अधिकारी, तीन रैकेटियर, 17 बिचौलिए, 297 पेपर हल करने वाले और लाभार्थी अभ्यर्थी और 170 लभार्थी अभ्यर्थियों के अभिभावक शामिल थे। ये चार्जशीट 2013 के प्री-मेडिकल टेस्ट से संबंधित थी।