2006 की जंग के बाद कितना बदले इस्राइल-हिजबुल्ला ?
धरती के अंदर मिसाइल लॉन्चर, ट्रक जा सकें इतनी बड़ी सुरंगें, 2006 की जंग के बाद कैसे बदला हिजबुल्ला?
इस्राइल ने हिजबुल्ला के खिलाफ लेबनान में अब जमीनी हमला शुरू कर दिया है। यह 2006 में लेबनान में 34 दिन तक चले युद्ध के बाद पहली बार हुआ है। वहीं हिजबुल्ला ने 2006 की जंग के बाद इस्राइल से मुकाबला करने के लिए खुद को मजबूत किया है। इसने विशाल सुरंगें बनाई हैं। इस वजह से इस्राइल के लिए चुनौतियां बढ़ गई हैं।
पश्चिम एशिया इस वक्त चौतरफा युद्ध से घिरा हुआ है। करीब एक साल पहले 7 अक्तूबर 2023 को इस्राइल और हमास के बीच शुरू हुआ युद्ध अभी भी जारी है। ये संघर्ष रुका नहीं लेकिन इस्राइल और ईरान और इसके समर्थक सशस्त्र गुटों हिजबुल्ला, हूती के बीच कई और मोर्चे खुल गए। हर ओर से क्रिया और प्रतिक्रिया हो रही है।
पिछले दिनों पश्चिम एशिया में उस वक्त तनाव बढ़ गया जब इस्राइल ने हिजबुल्ला के मुखिया हसन नसरल्ला को मार गिराया। नसरल्ला की मौत का बदला लेने के लिए ईरान ने इस्राइल में बैलिस्टिक मिसाइलें दागीं। कई विशेषज्ञों ने दावा किया कि इस्राइल का मजबूत सुरक्षा चक्र ‘आयरन डोम’ हमले रोकने में एक हद तक असफल रहा। उधर दूसरी ओर इस्राइल ने हिजबुल्ला को निशाना बनाने के लिए लेबनान में जमीनी हमला भी शुरू कर दिया है। 2006 में देश में 34-दिवसीय युद्ध के बाद पहली बार देश में जमीनी आक्रमण हुआ है।
आइये जानते हैं कि आखिर 2006 का लेबनान युद्ध क्या था? इस युद्ध के बाद इस्राइल और हिजबुल्ला कितना बदले? दोनों ने अपना रक्षा तंत्र कितना मजबूत किया? अब इस्राइल लेबनान में कैसे जमीनी हमला कर रहा है? ईरान ने इस्राइल पर कैसे मिसाइल हमला किया? आयरन डोम कितना हद तक हमलों को रोक सका?
इस्राइल और हिजबुल्ला की पिछली जंग साल 2006 में हुई थी। इसी संघर्ष के कारण इस्राइल ने दक्षिणी लेबनान में जमीनी सेना भेजी थी। इस युद्ध की शुरुआत 12 जुलाई 2006 को हुई जब सुबह लगभग 9 बजे हिजबुल्ला के लड़ाके इस्राइली क्षेत्र में घुस गए और सीमा पर गश्त कर रहे इस्राइली सेना (आईडीएफ) के काफिले पर हमला कर दिया। ह्यूमन राइट्स वॉच के अनुसार, घात लगाकर किए गए हमले में तीन आईडीएफ सैनिक मारे गए और दो पकड़े गए जिन्हें अगवा कर लेबनान ले जाया गया था। माना जाता है कि हिजबुल्ला का ऑपरेशन पूरी तरह से योजनाबद्ध था, क्योंकि इससे पहले सीमा पर और इस्राइली शहर जारित के पास आईडीएफ ठिकानों पर हिजबुल्ला ने रॉकेट दागे थे। हमले के बाद आईडीएफ ने लेबनान में मर्कवा टैंक भेजा ताकि पकड़े गए सैनिकों को वापस लाया जा सके। हालांकि, मर्कवा टैंक करीब 300 किलोग्राम विस्फोटक वाले एक विशाल एंटी-टैंक माइन से टकरा गया, जिससे तीन आईडीएफ सैनिक मारे गए और चौथा घायल हो गया। टैंक से शवों और घायलों को निकालने के लिए हुई लड़ाई में आठवां आईडीएफ सैनिक मारा गया।
हिजबुल्ला ने इसे ‘ऑपरेशन ट्रुथफुल प्रॉमिस’ का नाम दिया गया जो हिजबुल्ला नेता हसन नसरल्ला की लंबे समय से चले आ रही एक कोशिश थी। नसरल्ला उस वक्त इस्राइल पर दबाव डालने के लिए आईडीएफ सैनिकों को बंधक बनाना चाहता था, ताकि इस्राइली जेलों में बंद लेबनानी कैदियों को रिहा कराया जा सके और इस्राइल के नियंत्रण वाले विवादित शेबा फार्म क्षेत्र को लेबनानी नियंत्रण में वापस लाने की मांग की जा सके। हमले के तुरंत बाद हिजबुल्ला ने कहा कि वह ‘अप्रत्यक्ष वार्ता’ के जरिए अपहृत सैनिकों को इस्राइल को वापस कर देगा, जिसके बदले में इस्राइली जेलों में बंद लेबनानी कैदियों को छोड़ना होगा।
दोनों सैनिकों के अपहरण के बाद हिजबुल्ला को लगा कि इस्राइल की जवाबी कार्रवाई सीमित होगी। इसके बाद कैदियों की अदला-बदली पर बातचीत होगी, जैसा कि पहले बंधक बनाने की घटनाओं के दौरान हुआ था। इसके बजाय इस्राइल ने व्यापक पैमाने पर सैन्य हमला कर दिया ताकि पकड़े गए सैनिकों को वापस लाया जा सका और उसकी उत्तरी सीमा से हिजबुल्ला को खदेड़ा जा सके।
सैनिकों के अपहरण के लगभग तुरंत बाद आईडीएफ के युद्धक विमानों ने पुलों, सड़कों और हिजबुल्ला के संदिग्ध ठिकानों पर बमबारी शुरू कर दी। पहली बमबारी में इस्राइल ने सड़कों और संचार की अन्य लाइनों को काट दिया ताकि हिजबुल्ला पकड़े गए आईडीएफ सैनिकों को दक्षिण से दूर न ले जा सके। इस्राइल ने जल्द ही हिजबुल्ला के खिलाफ देशव्यापी हमला शुरू कर दिया। 13 जुलाई को इस्राइल ने लेबनान पर भूमि, समुद्र और हवाई नाकाबंदी लगा दी जो 14 अगस्त, 2006 को युद्ध विराम होने के बाद सितंबर तक जारी रही। इस्राइली युद्धक विमानों ने बेरूत के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के रनवे और ईंधन टैंकों पर बमबारी की ताकि हिज्बुल्ला आईडीएफ सैनिकों को ईरान या सीरिया में स्थानांतरित न कर पाए। युद्ध के पहले चरण के दौरान 12 जुलाई से 23 जुलाई तक इस्राइली सेना ने लगभग पूरी तरह से हवाई, नौसैनिक और तोपखाने की बमबारी की। इन हमलों में हिजबुल्ला की सैन्य क्षमता को कम करने के लिए उसके लड़ाकों, ठिकानों और रॉकेटों को निशाना बनाया गया। अंततः 2006 का संघर्ष 34 दिनों तक चला। जंग की समाप्ति संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के एक प्रस्ताव से हुई जिसका उद्देश्य दुश्मनी को समाप्त करना था। युद्ध में 1,000 से अधिक लेबनानी और 150 इस्राइली मारे गए थे।
इस संघर्ष को मोटे तौर पर इस्राइली सरकार के लिए झटके के रूप में देखा गया और इसने देश की सैन्य और खुफिया सेवाओं के भीतर सुधार का दौर शुरू कर दिया। वाशिंगटन इंस्टीट्यूट में आतंकवाद निरोधक और खुफिया विशेषज्ञ और हिजबुल्ला: द ग्लोबल फुटप्रिंट ऑफ लेबनान्स पार्टी ऑफ गॉड के लेखक मैथ्यू लेविट ने कहा कि इस्राइल ने जिस तरह से युद्ध लड़ा, उसे लेकर वे खुद ही आलोचनात्मक थे। ऐसा लगता है कि उनके पास हिजबुल्ला की क्षमताओं के बारे में पर्याप्त खुफिया जानकारी नहीं थी।’पूर्व इस्राइली प्रधानमंत्री एहुद ओलमर्ट ने वाशिंगटन पोस्ट को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि इस्राइली सेना व्यापक जमीनी अभियान के लिए तैयार नहीं थी। बाद में इस्राइल के इस सैन्य अभियान का मूल्यांकन करने के लिए विनोग्राद आयोग गठित किया गया था। आयोग ने बाद में अपनी रिपोर्ट में कहा कि युद्ध में जाने का फैसला जल्दबाजी में लिया गया था और अभियान की योजना भी खराब थी। आयोग ने कहा कि खुफिया जानकारी में खामियां थीं और हिजबुल्ला को और भी बड़ा झटका देने का अवसर था जो चूक गया।
वहीं दूसरी ओर युद्ध खत्म होने के बाद हिजबुल्ला के मुखिया नसरल्ला ने अपनी गलतियों को स्वीकार किया था। उस वक्त नसरल्ला ने कहा था कि अगर उसे पता होता कि इसके बाद कितना घातक युद्ध होगा तो वह सीमा पार घात लगाकर हमला करने की अनुमति नहीं देता।
अब जबकि इस्राइल और हिजबुल्ला फिर आमने-सामने हैं तो विश्लेषकों का मानना है कि इस्राइल के साथ हिजबुल्ला ने भी अतीत के सबक सीख लिए हैं। इस्राइल की बात करें तो इसने वर्षों से तमाम तैयारियां की हैं, जिसमें खुफिया जानकारी जुटाना, सैन्य अभ्यास, युद्ध की बारीक योजनाएं और आयरन डोम जैसी बहुस्तरीय वायु रक्षा प्रणाली शामिल है।इस्राइल की मोसाद खुफिया एजेंसी के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी ओडेड ईलम के मुताबिक 2006 से लेकर अब तक इस्राइल ने अपनी खुफिया जानकारी में काफी सुधार किया है। इसने किसी भी युद्ध में निशाना साधने के लिए हजारों ठिकानों की पहचान कर ली हैं। 2011 तक इस्राइली खुफिया एजेंसियों ने दक्षिण में 1,000 ठिकानों की रूपरेखा तैयार कर ली थी।
हिजबुल्ला ने भी 2006 के युद्ध के बाद खुद को मजबूत किया है। 2006 में हिजबुल्ला के पास करीब 15,000 रॉकेट और मिसाइलों का भंडार होने का अनुमान था। संघर्ष के दौरान समूह ने इनका जमकर इस्तेमाल किया था और कत्युशा रॉकेटों की लगातार बौछार की थी। 2006 में हुए खतरनाक युद्ध के बाद हिजबुल्ला ने इस्राइल का मुकाबला करने के लिए इन वर्षों में अपनी सैन्य क्षमता बढ़ाई है। ऐसा अनुमान है कि हिजबुल्ला के पास हजारों रॉकेट और कुछ उन्नत और सटीक मिसाइलें हैं। इस महीने की शुरुआत में इस्राइली सेना ने पड़ोसी सीरिया में हिजबुल्ला के मिसाइल उत्पादन केंद्र को तबाह कर दिया था।इस युद्ध के शुरुआती कुछ वर्षों में ही हिजबुल्ला ने लगभग 1,50,000 रॉकेटों और मिसाइलों का अपना शस्त्रागार इकट्ठा कर लिया था। मिडिल ईस्ट इंस्टीट्यूट के बेरूत स्थित विशेषज्ञ पॉल सलेम के मुताबिक हिजबुल्ला ने 2006 युद्ध के बाद पिछले 18 वर्षों में अपनी मिसाइल और ड्रोन क्षमता, सुरंग निर्माण और सुरक्षा में भारी बढ़ोतरी की है। ईरान से प्राप्त भारी समर्थन के साथ हिजबुल्ला ने अपनी यह क्षमता बढ़ाई है।
खासकर सुरंगों की बात करें तो इसके लिए काफी काम किया गया है। इसी साल अगस्त के मध्य में हिजबुल्ला ने एक वीडियो पोस्ट किया था जिसमें 4 भूमिगत ठिकाने दिखाए गए थे, जहां से इस्राइल के खिलाफ मिसाइलें दागी जा रही हैं। वीडियो में विशाल सुरंगें दिखाई गई थीं जो इतनी चौड़ी हैं कि ट्रक आसानी से गुजर सकते हैं और ये कंप्यूटर और बिजली से लैस हैं। एक के बाद एक ट्रक चलते हुए दिखे रहे थे। वहीं मिसाइल लांचर ऐसी जगह बनाए गए हैं जो जमीन से ऊपर निकलते हैं और फिर फायर करने के बाद बंद हो जाते हैं। हिजबुल्ला से जुड़े अल मायादीन नेटवर्क के मुताबिक यह ठिकाने भूमिगत गहराई में हैं, दुश्मन की खुफिया एजेंसियों की नजर में नहीं आते हैं और यह हमले से रक्षा कर सकते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि जमीन पर इस्राइली सैनिकों के खिलाफ लड़ाई के लिए भी हिजबुल्ला के लड़ाकों के पास अनुभव है। समूह को सीरिया में वर्षों से लड़ने का अनुभव है, जहां इसके लड़ाकों ने सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल-असद के साथ मिलकर विद्रोहियों के एक समूह के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। इसके लड़कों को दक्षिणी लेबनान के इलाके की भी अच्छी जानकारी है।
27 सितंबर को इस्राइल ने हिजबुल्ला के प्रमुख हसन नसरल्ला को मार गिराया। इसके जवाब में 1 अक्तूबर को ईरान ने इस्राइल पर करीब 180 मिसाइलों को दागते हुए एक बड़ा हमला किया। विशेष रूप से यरूशलम और तेल अवीव शहरों में विस्फोट किए गए। ईरानी सशस्त्र बलों के जनरल स्टाफ के अनुसार, लक्ष्य दो इस्राइली वायु सेना के ठिकाने और मोसाद मुख्यालय थे। दावा किया गया कि मोसाद मुख्यालय पर दर्जनों मिसाइलें दागी गईं। हालांकि, उनमें से कोई भी परिसर पर नहीं लगी, इसलिए इमारत को कोई नुकसान नहीं पहुंचा।रूसी सैन्य विशेषज्ञ एलेक्सी लियोनकोव ने कहा कि मिसाइल रक्षा प्रणाली ‘आयरन डोम’ ईरानी मिसाइल हमले से इस्राइल की पूरी तरह से रक्षा करने में विफल रही। लियोनकोव का कहना है कि ईरानी हमले में सैन्य अड्डे प्रभावित हुए हैं। हाइपरसोनिक मिसाइलों ने नेवातिम एयर बेस को निशाना बनाया, जहां F-35 विमान मौजूद थे, तीन सैन्य अड्डे और पूरे इस्राइल में कई सैन्य ठिकाने थे।