हरियाणा में बीजेपी ने पलटी बाजी….
क्या हरियाणा में ‘भूपेंद्र सिंह हुड्डा’ ने कर दी ‘कमल नाथ’ वाली गलती?
कांग्रेस की तुलना में बीजेपी की रैलियों की संख्या ज्यादा रही, हरियाणा चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी ने जहां 150 रैलियां आयोजित की थी वहीं कांग्रेस ने केवल 70 सभाएं कीं.
हरियाणा विधानसभा चुनाव के परिणामों की तस्वीर अब साफ होती जा रही है. ताजा रुझानों के अनुसार, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को 49 सीटें मिलती नजर आ रही हैं, जबकि कांग्रेस केवल 35 तक सिमटकर रह सकती है. 90 सीटों के इन रुझानों पर गौर करें तो भारतीय जनता पार्टी तीसरी बार सत्ता में आने की ओर अग्रसर है, जबकि कांग्रेस अब पीछे होती दिख रही है.
चुनाव आयोग के अनुसार, अभी तक के मतगणना के अनुसार, इस चुनाव में बीजेपी को 39.82 प्रतिशत, कांग्रेस को 39.65, आप को 1.76, जेजेपी को 0.89 और आईएलडी को 4.32 प्रतिशत वोट मिले हैं. इस आंकड़े से साफ जाहिर है कि बीजेपी और कांग्रेस के वोटों में ज्यादा का अंतर नहीं है ऐसे में 2024 में हुए लोकसभा चुनाव की तरह ही अगर इंडिया गठबंधन एकजुट होकर मैदान में उतरती तो इन सीटों के हिसाब से परिणाम में बड़ा अंतर देखने को मिल सकता था.
इसे ऐसे समझें कि वोट प्रतिशत के अनुसार, अगर हम 39.65% (कांग्रेस) और 1.65% (आप) को जोड़ते हैं, तो यह कुल 41% होता है. जो कि बीजेपी के मुकाबले इस आंकड़े के बीच का अंतर 1.89% है.
28 सीटें ऐसी जहां पांच हजार से कम अंतर पर हारी कांग्रेस
यहां ये भी ध्यान देने वाली बात है कि हरियाणा विधानसभा चुनाव में हुई वोटों की गिनती में लगभग 28 ऐसी सीटें हैं, जहां भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों के बीच केवल 5,000 या उससे कम वोटों का अंतर है. इस स्थिति में, अगर आम आदमी पार्टी कांग्रेस के साथ मिलकर मौदान में उतरती, तो इसके परिणाम पर एक अलग प्रभाव पड़ सकता था.
तो क्या हुड्डा ने कर दी कमल नाथ वाली गलती?
पॉलिटिकल एक्सपर्ट प्रेम कुमार कहते हैं कि राहुल गांधी हरियाणा विधानसभा चुनाव के अंतिम में आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन कर मैदान में आना चाहते थे. लेकिन सूत्रों के अनुसार हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा के आत्मविश्वास के कारण कांग्रेस-आप का गठबंधन नहीं हो पाया. प्रचार के दौरान भी जब केजरीवाल जेल से बाहर आए थे तो राजनीतिक गलियारे में इस बात की खूब चर्चा हुई कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का गठबंधन लगभग तय है, लेकिन हुड्डा इसके लिए तैयार नहीं हुए.
ठीक ऐसा ही कुछ मध्यप्रदेश के चुनाव में भी हुआ था. उस वक्त कमल नाथ ने अति आत्मविश्वास में सपा के साथ चुनावी मैदान में उतरने से मना कर दिया था. इतना ही नहीं जब कमल नाथ ने उसी वक्त अखिलेश-वखिलेश वाला विवादित बयान भी दे दिया था.
हालांकि इस चुनाव में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच मध्य प्रदेश में वोट प्रतिशत में इतना अंतर था कि सपा के साथ मिलकर भी कांग्रेस जीत हासिल नहीं कर पाती लेकिन मध्यप्रदेश में बीजेपी को 48.55 परसेंट और कांग्रेस को 40.40 परसेंट वोट मिले थे.
जबकि केवल 72 सीटों पर ही चुनाव लड़ने के बाद समाजवादी पार्टी 46 परसेंट वोट मिलें. यही कारण है कि सपा का इतना कम वोट परसेंटेज भी ठीक ठाक ही माना जाएगा है. अगर इस चुनाव में कांग्रेस और सपा एक साथ मैदान में उतरती तो वोट प्रतिशत बढ़ने के भी चांसेज थे. अलग-अलग चुनाव लड़ने पर बहुत से वोटर्स दोनों पार्टियों को वोट नहीं देते हैं, वे किसी तीसरे को अपना वोट देने को मजबूर होते हैं.
बीजेपी की इस रिकॉर्ड जीत के 5 मुख्य कारण
खट्टर की जगह सैनी को सीएम बनाना
मनोरंजन लाल खट्टर, जो लगभग 9.5 साल तक हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे, को चुनाव से 6 महीने पहले नायब सिंह सैनी से बदल दिया गया. बीजेपी के इस कदम ने OBC समुदाय को आकर्षित किया जा कि राज्य की 44% आबादी है. खट्टर के खिलाफ किसान आंदोलन और महिला पहलवानों के विरोध के चलते एंटी-इनकंबेंसी लहर का सामना भी करना पड़ा. इसके अलावा, खट्टर चुनाव प्रचार में अपेक्षाकृत अनुपस्थित रहे.
उम्मीदवारों को बदला
बीजेपी ने 25 सीटों पर उम्मीदवारों को बदला, जिसमें से 16 कैंडिडेट्स जीतने या आगे बढ़ने की स्थिति में हैं. कुल 90 सीटों में से 49 पर जीत हासिल की गई है, जो करीब 56% है. वहीं, टिकट बदलने वाले 25 कैंडिडेट्स में से 16 की सफलता दर 67% है, जिससे साबित होता है कि बीजेपी का यह कदम लाभकारी रहा.
JJP का जनाधार कमजोर होना
2019 में, जेजेपी ने 10 सीटें जीती थीं, लेकिन 2024 में उसका प्रभाव समाप्त हो गया था. बीजेपी और कांग्रेस ने जेजेपी की सीटों पर बढ़त बनाई है, जहां बीजेपी ने 4 सीटों पर कब्जा किया. जेजेपी का 2019 में बीजेपी के साथ अलायंस करने के बाद 2024 में अलग होकर चुनाव लड़ने का फैसला, बीजेपी के लिए फायदेमंद साबित हुआ.
जाट बनाम गैर-जाट रणनीति का सफल प्रयोग
हरियाणा में 36 बिरादरियों में से जाट समुदाय सबसे बड़ा है, जिसकी आबादी 27% है. बीजेपी ने गैर-जाट वोटरों पर ध्यान केंद्रित किया, ब्राह्मण, पंजाबी, बनिया और राजपूत समुदाय को अपने साथ लाने में सफल रही. पिछड़े और दलित वोट बैंक को भी मजबूत करने का प्रयास किया गया, जिससे 2014 और 2019 के चुनावों की तरह इस बार भी सफलता मिली.
कांग्रेस की तुलना में बीजेपी की रैलियों की संख्या
कांग्रेस की तुलना में बीजेपी की रैलियों की संख्या ज्यादा रही, यहां बीजेपी ने जहां 150 रैलियां आयोजित की थी वहीं कांग्रेस ने केवल 70 सभाएं कीं. बीजेपी की रैलियों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की प्रमुख रैलियां शामिल थीं. वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस ने केवल 70 सभाएं कीं, जिसमें राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की सीमित भागीदारी रही. इस चुनाव में बीजेपी की अधिक रैलियों ने कांग्रेस की तुलना में उन्हें स्पष्ट बढ़त दिलाई.
हरियाणा में पिछले दो चुनाव का परिणाम
2019 विधानसभा चुनाव
- भारतीय जनता पार्टी (भाजपा): भाजपा ने 90 सीटों में से 40 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी.
- कांग्रेस: कांग्रेस ने 31 सीटें जीतीं, उस वक्त पार्टी का वोट शेयर 28 प्रतिशत था.
- जेजेपी: जेजेपी ने 10 सीटों पर जीत हासिल की और पार्टी ने भाजपा के साथ गठबंधन कर सरकार बनाने में सहयोग किया था.
- अन्य दल: अन्य छोटे दलों ने मिलकर कुछ सीटें जीतीं, लेकिन उनका प्रभाव सीमित रहा.
2014 विधानसभा चुनाव
- बीजेपी ने 47 सीटें जीती. जबकि पार्टी का वोट शेयर 33.2% था.
- इनेलो ने 19 सीटें अपने नाम किया था. इस पार्टी का वोट शेयर 24.01% था.
- कांग्रेस को 15 सीटें मिली थी. जबकि वोट शेयर 20.06 प्रतिशत था.
- निर्दलीय को 5 सीटें जीती थी और उनका वोट शेयर 10.06 % था.