क्या हम अपने स्मार्टफोन से दूर रह सकते हैं?
डिजिटल डिटॉक्स: क्या हम अपने स्मार्टफोन से दूर रह सकते हैं?
प्यू रिसर्च सेंटर (2023) की एक रिपोर्ट के अनुसार डिजिटल डिवाइस से ब्रेक लेने से ध्यान केंद्रित करने की क्षमता में सुधार होता है. शारीरिक गतिविधियों में भी वृद्धि होती है.
आज के दौर में स्मार्टफोन हमारी जिंदगी का अनिवार्य हिस्सा बन चुका है. सुबह की पहली किरण से लेकर रात की आखिरी सांस तक, ये डिवाइस हमारी हर गतिविधि में शामिल रहता है. लेकिन, क्या कभी आपने सोचा है कि क्या हम इन डिजिटल उपकरणों से दूर रह सकते हैं?
डिजिटल डिटॉक्स, या डिजिटल निर्भरता से छुटकारा पाने की प्रक्रिया आज एक जरूरी चर्चा का विषय बन चुका है. लगातार सूचनाओं, सोशल मीडिया की लत और ऑनलाइन गतिविधियों के चलते मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. कई विशेषज्ञ अब सलाह दे रहे हैं कि हमें अपने स्मार्टफोन से कुछ समय के लिए दूरी बनानी चाहिए.
ऐसे में इस रिपोर्ट में विस्तार से समझते हैं कि क्या है ये डिजिटल डिटॉक्स और वाकई क्या हम अपने स्मार्टफोन से दूर रह सकते हैं?
सबसे पहले समझिए क्या होता है डिजिटल डिटॉक्स
डिजिटल डिटॉक्स का मतलब है किसी व्यक्ति का अपनी डिजिटल डिवाइस, जैसे स्मार्टफोन, टैबलेट, या कंप्यूटर से एक निश्चित समय के लिए दूरी बना लेना. ऐसा करना तनाव और चिंता को कम करने में मदद करता है. इसके अलावा फोन या डिजिटल डिवाइस से कुछ समय के लिए दूरी बनाना परिवार और दोस्तों के साथ वास्तविक बातचीत को भी बढ़ावा देता है..
प्यू रिसर्च सेंटर (2023) की एक अध्ययन के अनुसार डिजिटल डिवाइस से ब्रेक लेने से ध्यान केंद्रित करने की क्षमता में सुधार होता है. शारीरिक गतिविधियों में भी वृद्धि होती है. यह हमारे मानसिक स्वास्थ्य को सुदृढ़ करने, प्रोडक्टिविटी बढ़ाने और व्यक्तिगत संबंधों को बेहतर बनाने में मदद कर सकता है.
एक व्यक्ति दिन भर में 200 से 300 बार करता है फोन चेक
स्मार्टफोन के उपयोग में पिछले दशक में तेजी आई है. प्यू रिसर्च की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2023 में, वैश्विक स्तर पर लगभग 6.4 बिलियन स्मार्टफोन उपयोगकर्ता थे. यह संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. आमतौर पर, एक व्यक्ति अपने स्मार्टफोन को दिन में 200 से 300 बार चेक करता है. यह आंकड़ा दिखाता है कि स्मार्टफोन कितनी बार हमारी दिनचर्या में शामिल हो चुका है.
आखिर क्यों डिजिटल डिवाइस पर आश्रित हो रहे हैं युवा
1. स्मार्टफोन की कीमत में कमी
स्मार्टफोन की कीमतें पिछले कुछ सालों में काफी कम हुई हैं, जिससे हर आय वर्ग के लोग इन्हें खरीद सकते हैं. इसके अलावा वैश्विक स्तर पर इंटरनेट की पहुंच बढ़ी है. जर्नल ऑफ साइकोलॉजिकल रिसर्च की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2023 में लगभग 5.3 बिलियन लोग इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे स्मार्टफोन का महत्व और बढ़ गया है. मोबाइल डेटा की लागत में कमी भी इस प्रवृत्ति को बढ़ावा देती है.
2. सोशल मीडिया और ऐप्स
लोगों के स्मार्टफोन की लत का सबसे बड़ा कारण सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और विभिन्न ऐप्स का उदय भी माना जा रहा है. पिछले कुछ सालों में व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम , और टिकटॉक जैसे सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म ने स्मार्टफोन का उपयोग बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इन प्लेटफार्मों पर खुद को एक्टिव रखने के लिए लोग नियमित रूप से अपने स्मार्टफोन्स का उपयोग करते हैं.
इसके अलावा ई-कॉमर्स, ऑनलाइन बैंकिंग, और टेलीमेडिसिन जैसी सेवाओं के कारण स्मार्टफोन का उपयोग और भी बढ़ा है. लोग अब अपने स्मार्टफोन्स के माध्यम से खरीदारी, पैसे भेजना और डॉक्टर से परामर्श लेना पसंद करते हैं. शिक्षा के क्षेत्र में भी स्मार्टफोन्स ने क्रांतिकारी बदलाव लाए हैं. ऑनलाइन पाठ्यक्रम और शैक्षणिक ऐप्स के कारण छात्र और युवा अधिक स्मार्टफोन का उपयोग कर रहे हैं.
ज्यादा स्मार्टफोन या डिजिटल डिवाइस का इस्तेमाल क्यों हानिकारक
शोधकर्ताओं का मानना है कि लगातार स्मार्टफोन के उपयोग से मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. एक अध्ययन में पाया गया कि जो लोग अधिक समय तक अपने स्मार्टफोन का उपयोग करते हैं, उनमें चिंता, अवसाद, और तनाव की समस्या अधिक होती है. एक अन्य अध्ययन में यह भी बताया गया है कि स्मार्टफोन का ज्यादा उपयोग नींद में भी खलल डाल सकता है, जो मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है.
शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रभाव
स्मार्टफोन के लगातार उपयोग से शारीरिक स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ता है. लंबे समय तक स्क्रीन के सामने बैठने से आंखों में तनाव, सिरदर्द, और शारीरिक गतिविधियों की कमी होती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, आजकल के युवा 60% समय अपनी डिजिटल उपकरणों पर बिताते हैं, जिससे उनकी शारीरिक गतिविधियों में कमी आती है.
भारत में 4 में से 3 लोग हैं ‘नोमोफोबिया’ से प्रभावित
फोन का मोबाइल की इस लत को ‘नोमोफोबिया’ कहा जाता है, जिसका अर्थ है ‘नो मोबाइल फोबिया’, यानी मोबाइल न होने का डर. हालांकि, यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि यह एक मानसिक विकार है या नहीं, लेकिन यह मोबाइल लत के अंतर्गत आता है, जो व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डालता है. समय के साथ, इसका असर रिश्तों पर भी पड़ने लगता है.
एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 4 में से 3 लोग नोमोफोबिया से कम या ज्यादा प्रभावित हैं. इनमें से कुछ ने यह स्वीकार किया है कि उन्हें इंटरनेट के खत्म होने, मोबाइल खोने, या बैटरी खत्म होने जैसी स्थितियों के कारण भावनात्मक परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
तो क्या हम वाकई स्मार्टफोन या डिजिटल डिवाइस से दूर रह सकते हैं?
इस सवाल के जवाब में दिल्ली यूनिवर्सिटी के साइकोलॉजी के प्रोफेसर मनोज श्रीवास्तव कहते हैं कि हां, हम अपने स्मार्टफोन से दूर रह सकते हैं, लेकिन इसके लिए कुछ कदम उठाने की जरूरत होती है. अगर किसी व्यक्ति को स्मार्टफोन से दूर रहना है तो सबसे पहले उन्हें इसका उपयोग करने के लिए एक निश्चित समय निर्धारित करने की जरूरत है, जैसे सुबह के समय या रात में सोने से पहले. इसके अलावा अपने घर में कुछ स्थानों को डिजिटल फ्री ज़ोन बनाएं, जैसे कि डाइनिंग टेबल या बेडरूम, ताकि आप इन जगहों पर फोन का उपयोग न करें.
प्रोफेसर आगे कहते हैं, ‘आजकल के युवा फोन या कंप्यूटर पर इतने ज्यादा निर्भर हो चुके हैं कि उन्होंने किताबें या अखबार पढ़ना ही छोड़ दिया है. ऐसे में अगर वो फोन में समय बिताने की जगह किताबें पढ़ने, खेल खेलना, या बाहर घूमने जैसी ऑफलाइन गतिविधियों करते हैं तो फोन से दूर रहेंगे.
उन्होंने आगे कहा कि मेरी सलाह है कि कोई भी व्यक्ति पहले दिन ही खुद को फोन से दूर रखने की कोशिश न करें. डिजिटल डिटॉक्स करने की योजना बनाएं, जहां आप फोन का उपयोग न करें. अपने फोन की नोटिफिकेशन बंद कर दें, ताकि बार-बार फोन चेक करने की आदत कम हो सके.
Pew Research Center की एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, जो लोग अपने स्मार्टफोन का उपयोग सीमित करते हैं, वे अधिक खुश और संतुष्ट होते हैं। स्मार्टफोन से दूरी बनाने से व्यक्ति अपने परिवार और दोस्तों के साथ बेहतर समय बिता सकता है, जो सामाजिक संबंधों को मजबूत करता है.